Rat Fever: केरल में 'रैट फीवर' के कहर से जान गंवा रहे हैं लोग, जानें इस बीमारी के लक्षण और बचने के उपाय

हेल्थ
Updated Sep 04, 2018 | 11:36 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

What is rat fever, symptoms and treatment: केरल में आई भयानक बाढ़ के चलते हजारों लोग रैट फीवर की चपेट में जान गंवा चुके हैं। रैट फीवर किस वजन से फैलता है और इससे बचने के क्‍या उपाय हैं, जानें। 

What is rat fever symptoms prevention and treatment
What is rat fever symptoms prevention and treatment  |  तस्वीर साभार: Thinkstock

What is rat fever, symptoms and treatment (रैट फीवर): केरल में आई भीषण बाढ़ के चलते वहां रैट फीवर का प्रकोप काफी बढ़ गया है। इससे मरने वालों की संख्‍या तेजी से बढ़ रही है जिसकी वजह से वहां पर हाई अलर्ट लागू कर दिया गया है। चूहे से फैलने वाले इस बुखार को लेप्टोस्पायरोसिस (Leptospirosis) भी कहते हैं। 

बाढ़ के दौरान मलेरिया, डेंगू, बुखार और हैजा जैसी बीमारियों के साथ इस बीमारी के फैलने का खतरा सबसे ज्‍यादा बढ़ जाता है। इस मामले में डॉक्‍टर्स लोगों को सावधानी बरतने की सलाह देते हैं मगर आइये उससे पहले जान लेते हैं कि आखिर ये रैट फीवर है क्‍या और इससे बचाव के क्‍या उपाय हैं। 

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क्या है रैट फीवर (लेप्टोस्पायरोसिस) ( What is Rat Fever ) 
यह रोग जीवाणु से फैलता है, जो इंसानों के साथ-साथ जानवरों को भी प्रभावित करता है। ये बीमारी लैप्टोस्पायर नाम के बैक्टीरिया की वजह से होती है, जो जानवरों के मूत्र के जरिये फैलता है। ये जीवाणु कई सप्ताह से लेकर महीनों तक जीवित रह सकते हैं। 

इन कारणों से फैलता है रैट फीवर (Rat Fever Causes)
संक्रमित चूहों के मूत्र में ढेर सारे बैक्‍टीरिया पाए जाते हैं जो पानी तथा हवा में मिल कर शरीर में प्रेवश करते हैं और बीमारी पैदा करते हैं। ये जीवाणु हमारी आंखों, नाक या मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं। खासतौर पर यदि शरीर में कोई घाव या कट है तो यह आसानी से शरीर में प्रवेश कर जाता है। 

क्‍या हैं लक्षण (Rat Fever Symptoms)

  • तेज बुखार
  • सिरदर्द
  • ठंड लगना 
  • मांसपेशियों में दर्द
  • उल्टी
  • पीलिया
  • लाल आंखें
  • शरीर में रैशेज होना
  • खांसी में खून निकलना

क्या है रैट फीवर का इलाज ( Rat Fever Treatment) 
इस बीमारी से बचने का सरल तरीका है कि आप इससे बचाव करें। गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को सही समय पर चिकित्सा परीक्षण कराने की सलाह दी जाती है।

शुरुआत में इसके लक्षण बिल्‍कुल आम दिखाई देते हैं इसलिए निदान करना मुश्किल होता है। मगर लक्षण बढ़ते ही 6-7 दिन दवाई लेने के बाद बीमारी को कम किया जा सकता है। 

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