नई दिल्ली: कोरोना के बढ़ते संक्रमण की वजह से देश की स्वास्थ्य सुविधाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही है। कहीं अस्पतालों में बेड नहीं हैं तो कहीं ऑक्सीजन की दिक्कत हैं तो फिर कहीं वेंटिलेटर की कमी है। इतना ही नहीं रेमडेसिविर जैसे इंजक्शनों की किल्लत हो गई है और कई जगहों पर इसकी ब्लैक मार्केंटिंग हो रही है। बढ़ते कोरोना मामलों का असर टेस्टिंग क्षमता पर भी पड़ा है।
देश की टेस्टिंग क्षमता 15 लाख प्रतिदिन हैं। महानगरों में तो होम कलेक्शन के लिए पांच दिनों से अधिक की वेटिंग चल रही है। कई लोग ऐसे हैं जो टेस्ट कराना चाहते हैं लेकिन उसके लिए घर से बाहर निकलने की बजाय घर पर ही सैंपल देना चाहते हैं, पर दिक्कत ये है कि होम कलेक्शन के लिए लंबी वेटिंग है। ऐसे में लोगों के मन में तमाम तरह के सवाल भी हैं, कि उन्हें किस तरह की परिस्थितियों में आरटीपीसीआर टेस्ट कराना चाहिए। इन्हीं सवालों के जवाब हम आपको देने की कोशिश कर रहे हैं। तो आइए आपसे जुड़े कुछ सवालों के उत्तर यहां जानने की कोशिश करते हैं।
यदि आपको बुखार, बदन दर्द, खाने में कोई स्वाद नहीं तथा गंध का पता नहीं चल रहा है तथा सांस लेने में तकलीफ हो रही है तो आपको आरटीपीसीआर टेस्ट करा लेना चाहिए। नए लक्षणों में आंखों का पिंक होना, नाक बहना तथा सुनने संबंधी समस्या भी हो सकती है।
जो लोग वैक्सीन की दो डोज ले चुके हैं और उन्हें डोज लिए दो हफ्ते हो गए हैं। यदि ऐसे लोगों को कोई लक्षण महसूस नहीं हो रहै हैं, तो उन्हें टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है।
आरटीपीसीआर गोल्ड स्टैंडर्ड का टेस्ट है। वहीं रैपिड एंटीजैन टेस्ट (आरएटी )तुरंत रिपोर्ट देता है। यदि आरएटी की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो कंफर्म है कि कोविड है, लेकिन यदि आरएटी की रिपोर्ट निगेटिव आती है लेकिन लक्षण हैं तो फिर आरटीपीआर टेस्ट कराना चाहिए।
आरटी-पीसीआर (RT-PCR)टेस्ट में मरीज का कोरोना पॉजिटिव या नेगेटिव होना सायकल थ्रेशहोल्ड यानी सीटी (CT) वैल्यू के आधार पर तय होता है। यदि सीटी काउंट 35 से ऊपर है तो वह कोरोना नेगेटिव माना जाता है और इससे कम है तो पॉजिटिव माना जाता है। हालांकि कई जगहों पर इसे लेकर भी अलग नियम है। कई बार डॉक्टर कई मरीजों को सीटी स्कैन के लिए कहते हैं।
देखा जाए तो कोविड के कुछ स्टेज हैं जसे-I स्टेज के दौरान होम क्वारंटीन वाले मरीज आते हैं जो एसिम्प्टोमैटिक हैं और उनका चेस्ट स्कैन नॉर्मल है। इस दौरान हल्का बुखार, कफ, गले में हल्का दर्द या उल्दी जैसे लक्षण हो सकते हैं। स्टेज -II के दौरान लगातार बुखार, कफ और छाती में संक्रमण की शिकायत पर आइसोलेशन के साथ-साथ आईसीयू तक की नौबत आ सकती है। स्टेज- III के दौरान ज्याद हालात खराब होने पर हार्ट अटैक जैसी नौबत आ सकती है और मरीज को अस्पताल में वेंटिलेटर तक का सहारा लेना पड़ता है।
जी नहीं, यह केवल डॉक्टर की सलाह पर ही लिया जा सकता है। मरीज की हालत देखकर डॉक्टर इसे लेने की सलाह दे सकते हैं। और जब चेस्ट एक्सरे या सीटी स्कैन में इंफेक्शन दिखता है तथा वेटिंलेटर और ऑक्सीजन संबंधी दिक्कत होती है तो डॉक्टर तब इसका प्रयोग अपने हिसाब से करते हैं।
बचाव से ही आप अपनी सुरक्षा कर सकते हैं। कोई भी वैक्सीन से अधिक आप खुद सुरक्षित रहकर अपना बचाव कर सकते हैं। घर से बाहर निकलने पर हमेशा मास्क पहनें और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें।