Magh month and health: माघ महीने में क्‍यों नहीं खाना चाहिए मूली-धनिया, जानें आयुर्वेद में क्‍यों है मना

आयुर्वेद और ज्योतिष एक दूसरे से जुड़ें हुए हैं। आयुर्वेद खानपान की प्रकृति और ज्योतिष धार्मिकता के आधार पर खानपान की मनाही करता है। माघ मास में आयुर्वेद और ज्यातिष दोनों में ही मूली और धनिया खाना वर्जित है।

 radish and coriander
radish and coriander   |  तस्वीर साभार: Instagram
मुख्य बातें
  • माघ में सेहत के लिए नुकसानदाय है मूली-धनिया
  • माघ में ज्योतिष में मूली-धनिया शराब तुल्य होता है
  • आयुर्वेद में ठंडी प्रकृति के कारण खाने की मनाही है

आयुर्वेद मौसम के अनूकुल खानपान का निर्देश देता है और ज्योतिष भी खानपान को धार्मिकता के लिहाज से जोड़ कर देखता है। दोनों में ही खाने पीने के तरीकों को स्वस्थ्य और सुख से जोड़ा गया है। माघ महीने में खानपान को लेकर बहुत सारी पाबंदियां और निर्देश दिए गए हैं। इस महीने में आयुर्वेद और ज्योतिष दोनों ही मूली और धनिया खाने से पहरेज करने को कहते हैं। हालांकि दोनों में इसके पीछे अलग-अलग कारण बताए गए हैं।

11 जनवरी से माघ का महीना शुरू हो गया है। ज्योतिष में जिस तरह से कार्तिक का महीना विशेष पुण्यदायी होता है, माघ भी वैसा ही माना गया है। माघ में दान-पुण्य और पूजा-पाठ के अलावा खाने-पीने को लेकर बहुत से निर्देश दिए गए हैं। 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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इसलिए वर्जित है मूली और धनिया
ज्योतिष के लिहाज से माघ महीने में मूली और धनिए का सेवन करना बेहद अशुभ माना गया है। मूली को शराब के समान माघ महीने में माना गया है। यही कारण है कि मूली और धनिया को दान या पूजा में प्रयोग करना ईश्वर को नाराज करता है। माघ मास में मूली और धनिया के सेवन धन हानि और शांति भंग करने वाला होता है। 
आयुर्वेद के लिहाज से मूली और धनिया माघ में न खाने के कारण स्वास्थ्य से जुड़े हैं। मूली की प्रकृति ठंडी होती है और ये पानी से भरी होती है। वहीं धनिया की पत्तियां माघ में मूली के साथ खाना जहर समान होता है। ये सेहत को बेहद नुकसान पहुंचाते हैं। कफ, पेट में कृमि, जुकाम और वायर फीवर का कारण बन सकते हैं मूली और धनिया। 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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सेहत से ही जीवन होता है सुखी
आयुर्वेद और ज्योतिष दोनों में ही माघ में मूली और धनिया न खाने के पीछे कारण स्वास्थ्य से ही जुड़ा है। ज्योतिष धर्म और ईश्वर से जोड़ कर खानपान के नियम बनाए गए हैं। वहीं आयुर्वेद भी खानपान की प्रकृति के आधार पर ही नियम बनाए हैं। दोनों में ही सेहत को सुखी जीवन का आधार माना गया है। इसलिए दोनों में ही इसे खाना वर्जित किया गया है। 

 

 

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