मंकी पॉक्स के बढ़ते मामलों को लेकर लोगों की चिंता बढ़ गई है। बीते दिनों WHO ने भी इसे ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है। लेकिन क्या है यह मंकी पॉक्स वायरस, कितना खतरनाक है यह वायरस और क्या है इसके उपचार। इन तमाम सवालों को लेकर संवाददाता प्रेरित कुमार ने वरिष्ठ डॉक्टर अंशुमान कुमार से बातचीत की।
पॉक्स जहां भी जिस बीमारी के साथ जुड़ता है उसका हिंदी मतलब चेचक होता है। यानी कि स्किन पर फोड़े-फफोले जैसे दाग होते हैं। इसके साथ और भी कई लक्षण होते हैं। अभी मंकीपॉक्स है, इसके अलावा स्मॉल पॉक्स, चिकन पॉक्स जैसे कई सारे पॉक्स वायरस है। हालांकि इंटरनेशनल स्टैंडिंग 2015 में तय किया गया था कि किसी भी वायरस को किसी जगह, जॉग्राफी, जानवर, खाने, देश के नाम पर नहीं रखा जाएगा। लेकिन संयोग से मंकीपॉक्स नाम 1958 के वक्त रखा गया था। आइडियली इसे चेंज कर देना चाहिए। और मंकीपॉक्स की जगह कुछ और नाम देना चाहिए। खास करके अब 75 देशों में यह बीमारी फैल चुकी है।
यह एक अर्थोपॉक्स ग्रुप का वायरस है। इसमें स्क्रीन पर फफोले, बुखार, गले में गिल्टी आदि होता है। अगर ज्यादा कॉम्प्लिकेशन ना हो तो इससे ज्यादा इस वायरस में और कुछ नहीं होता है। इस वायरस के दो स्ट्रेन पाए जाते हैं। एक वेस्ट अफ्रीकन और दूसरा कॉन्गो बेसिन स्ट्रेन होता है। जो स्ट्रेन अभी इंडिया में और बाकी देशों में फैल रहा है उसमें मौत का आंकड़ा नहीं देखा गया है। अगर व्यक्ति को मंकीपॉक्स हुआ है और उसे फेफड़े की या कोई और बीमारी है तो सम्भवतः निमोनिया से उसकी मौत हो सकती है। लेकिन सिर्फ मंकीपॉक्स मौत की वजह नहीं हो सकता।
1958 में पहली बार मंकी पॉक्स वायरस डिटेक्ट हुआ। लेकिन इक्का-दुक्का मामले आए इसलिए इसे जूनोटिक डिजीज कहते थे। मतलब जंगली जानवरों से फैलने वाली बीमारी। कोरोना वायरस जब आया तो कई देशों ने WHO को कहा कि आपने ग्लोबल इमरजेंसी घोषित करने में काफी देर कर दी। और दूसरा पहलू यह है की पहली बार इतने कम समय में ये वायरस 75 देशों में फैल चुका है। इसलिए एहतियात के तौर पर WHO ने इस बीमारी को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया है।
यह वायरस जंगली जानवरों से फैलता है। जो इस तरह के पॉक्स वायरस को कैरी करके चलता है। और वह जानवर किसी इंसान के संपर्क में आता है। उसके बाद उस संक्रमित इंसान के जरिए बाकी इंसानों से अलग-अलग तरह के संपर्क जरिए यह वायरस फैलता है। जैसे किसी दूसरे के तौलिए का इस्तेमाल करने से या जहां कहीं आप बैठे हैं वहां उस वायरस के अवशेष से, या सेक्सुअल कॉन्टैक्ट बनाने से फैलता है।
अभी तक इस वायरस का कोई भी डेफिनिटिव इलाज नहीं आया है। यानी कोई ऐसा एंटीवायरल थेरेपी नहीं आया है जो इस वायरस को मार सके। इसका सिन्ड्रोमेटिक इलाज किया जाता है। जैसे चेचक के दौरान अगर बुखार है तो बुखार की दवाई, अगर पसीने आ रहे हैं डिहाइड्रेशन है तो पानी चढ़ाना होता है। या केअर सपोर्ट के लिए उसे आईसीयू में भर्ती करते हैं। यह सेल्फ हीलिंग डिजीज है। जो एक समय के बाद बॉडी का इम्यून इस पर हावी होता है और इस वायरस को खत्म कर देता है।