नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर पहले से ज्यादा खतरनाक है। दरअसल इस दफा कोरोना की जद में वो लोग ज्यादा आ रहे हैं जिनमें किसी तरह का लक्षण नहीं दिखाई दे रहे हैं। कोरोना का मुकाबला करने के लिए भारत में कोवैक्सीन और कोविशील्ड इस्तेमाल में लाई जा रही है। इसके साथ ही एक और खुशखबरी यह है कि रूस की वैक्सीन स्पूतनिक वी को इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए डीसीजीआई ने भी मंजूरी दे दी है।
कौन वैक्सीन कितनी प्रभावी
भारत बायोटेक की Covaxin ने फेज 3 क्लिनिकल ट्रायल में 81 फीसद प्रभावी थी। जबकि सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की Covishield की एफेकसी 62 फीसद दर्ज हुई थी। हालांकि डेढ़ डोज देने पर प्रभाव क्षमता में 90 फीसद का इजाफा हुआ। फेज 3 ट्रायल के अंतरिम नतीजों में स्पूतनिक वी वैक्सीन करीब 92 फीसद प्रभावी है।
तीनों वैक्सीन क्यों एक दूसरे से अलग
स्पूतनिक वी के निर्माताओं का कहना है कि इसे भी 2-8 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच स्टोर किया जा सकता है. यह वैक्सीन भी दो डोज में दी जाती है। कोविशील्ज की दो डोज के बीच का अंतराल चार से आठ हफ्तों की का है और इसे इसे स्टोर करने के लिए सब जीरो तापमान (शून्य से कम) की जरूरत नहीं है।कोवैक्सीन की दो डोज 4-6 हफ्तों के अंतराल पर दी जाती है। इसे भी 2-8 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान पर स्टोर कर सकते हैं।
स्पूतनिक के बारे में है यह दावा
नवंबर 2020 में सॉवरेन वेल्थ फंड का दावा था कि स्पूतनिक वी 92 फीसद प्रभावी है। इसके अलावा वैक्सीन बनाने वाले अलेक्जेंडर गेन्सबर्ग ने दावा किया था कि उनकी वैक्सीन दो साल तक कारगर रहेगी। इसके लिए उन्होंने बाकायदा डेटा भी साझा किया था। स्पुतनिक वी को गेमालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बनाया है।अब सवाल यह है कि जब दूसरी वैक्सीन की इफिकैसी 90 फीसद के आस पास है और उसे एक साल के लिए प्रभावी बताया जा रहा है तो स्पूतनिक अलग क्यों हैं। ये वैक्सीन दो एडेनोवायरस वेक्टर से बनी है यानी कोवीशील्ड जैसी ही है।कोवीशील्ड में चिम्पांजी में मिलने वाले एडेनोवायरस का इस्तेमाल किया है। रूसी वैक्सीन में दो अलग-अलग वेक्टरों को मिलाकर इस्तेमाल किया गया है।