कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जहां एक तरफ सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क प्रभावी हैं वहीं, वैक्सीन भी अचूक हथियार है, इस समय दुनिया के अलग अलग देशों में कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पुतनिक वी, फाइजर माडर्ना, एस्ट्राजेनेका जैसी वैक्सीन का इस्तेमा किया जा रहा है जिसे सुरक्षित बनाए रखने के लिए कम तापमान की जरूरत होती है। लेकिन इंडियन इंस्ट्टीयूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने स्टार्ट अप फर्म मिनवैक्स के साथ मिलकर ऐसी वैक्सीन तैयार की है जिसके लिए कम तापमान की जरूरत नहीं है। चूहों पर इसका प्रयोग किए गया और नतीजे बेहतर मिलने का दावा किया गया है।
क्या है वार्म वैक्सीन
दरअसल ज्यादातर वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए कम तापमान यानी 2 से आठ डिग्री तापमान की जरूरत होती है। कुछ वैक्सीन के लिए माइनस 70 डिग्री तक तापमान की आवश्यता होती है। लेकिन आईआईएससी द्वारा तैयार की वैक्सीन को 37 डिग्री सेल्सियस पर एक महीने और और 100 डिग्री सेल्सियस पर करीब डेढ़ घंटे तक प्रभावी रही। शोधकर्ताओं को कहना है कि ऐसी वैक्सीन जो ज्यादा तापमान पर भी प्रभावी रहे उसे वार्म वैक्सीन कहते हैं।
क्या कहना है शोधकर्ताओं का
मेलबर्न के सीएसआईआरओ के ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर डिजीज प्रीपेअर्डनेस के शोधकर्ताओं ने कहा कि टीका लगाए जाने के बाद लिए गए चूहों के रक्त के नमूनों की जांच की गई। इन चूहों को पूरी दुनिया में फैल रहे डेल्टा वेरिएंट समेत कोरोना वायरस के अलग अलग वैरिएंट से संक्रमित कराया गया। प्रोजेक्ट लीडर डॉ. एसएस वासन कहते हैं कि मिनवैक्स का टीका पाए चूहों ने कोरोना वायरस के सभी स्वरूपों के खिलाफ ताकतवर प्रतिरोध क्षमता दिखाई दी। हमारा डेटा दिखाता है कि मिनवैक्स ने ऐसे एंटिबॉडी बनाए जो अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा समेत सभी वेरिएंट्स को खत्म करने में कामयाब रहीं हैं।
इस साल के अंत तक ह्यूमन ट्रायल
सीएसआईआरओ के हेल्थ एंड बायोसिक्यॉरिटी डाइरेक्टर डॉ. रॉब ग्रेनफेल के मुताबिक कोविड के खिलाफ लड़ाई में वैज्ञानिकों का सहयोग जरूरी है। सस्ती वैक्सीन और इलाज उपलब्ध करवाने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग बेहद जरूरी है। सीएसआईआरओ इससे पहले दो अहम कोविड वैक्सीनों का परीक्षण कर चुका है। बताया जा रहा है कि मिनवैक्स द्वारा बनाई गई वैक्सीन का मानव परीक्षण इस साल के अंत तक शुरू हो सकता है।