मुंबई: 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले को लेकर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्वर राकेश मारिया ने अपनी किताब ‘लेट मी से इट नाउ’ में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। मारिया के मुताबिक, आईएसआई ने इस हमले को हिंदू आतंकवाद से जोड़ने की पूरी साजिश रची थी। अपनी इसी साजिश को अमलीजामा पहनाने के लिए कसाब के हाथ में न केवल कलावा बांधा गया था बल्कि उसे बेंगलुरु निवासी समीर चौधरी के नाम का आई कार्ड भी दिया गया था।
27 सितंबर 2008 को बनी थी योजना
राकेश मारिया ने अपनी किताब खुलासा किया था कि मुंबई हमले की योजना 27 सितंबर 2008 को बनाई गई थी उस दिन रमजान के उपवास का 27 वां दिन था। हालांकि, बाद में इसे 26 नवंबर के लिए स्थगित कर दिया गया था । किताब के कुछ अंशों के अनुसार, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई), और लश्कर ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के गिरोह को कसाब को खत्म करने का जिम्मा सौंपा था, जो 26/11 हमले के बाद जिंदा पकड़ा गया था और जेल में बंद था।
हिंदू आतंकवाद साबित करने की थी योजना
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर ने किताब में यह भी दावा किया गया है, 'यदि सब कुछ योजना के अनुसार होता, तो कसाब चौधरी के रूप में मर जाता और मीडिया हमले के लिए 'हिंदू आतंकवादियों' को दोषी ठहराती। अखबारों में बड़ी बड़ी सुर्खियां बनतीं जिनमें दावा किया जाता कि किस प्रकार हिंदू आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला किया। शीर्ष टीवी पत्रकार उसके परिवार और पड़ोसियों से बातचीत करने के लिए बेंगलुरु पहुंच जाते। लेकिन अफसोस, ऐसा नहीं हो सका वह पाकिस्तान में फरीदकोट का अजमल आमिर कसाब था।'
कसाब को दिए इतने पैसे
मारिया ने पुस्तक में उल्लेख किया कि जब मुंबई पर हमला करने के लिए कसाब को मिशन पर भेजे जाने से पहले एक हफ्ते की छुट्टी और 1.25 लाख रुपये दिए गए थे। कसाब ने वह पैसे अपनी बहन की शादी के लिए अपने परिवार को दे दिए थे।
कसाब को हुई थी फांसी की सजा
आपको बता दें कि मुंबई आतंकी हमले में मुंबई पुलिस के 16 तथा दो राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) कमांडो ऑपरेशन के दौरान शहीद हो गए थे। 11 जगहों पर लगभग 60 घंटे तक ऑपरेशन चला था। पच्चीस वर्षीय कसाब, जो 26/11 हमले के दौरान मुंबई पुलिस द्वारा पकड़ा गया एकमात्र जिंदा आतंकी थी उसे भारतीय कोर्ट की सजा के बाद पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में गुप्त रूप से फांसी दी गई थी। कसाब को एक अज्ञात स्थान पर दफनाया गया था।
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