नई दिल्ली: पिछलो तीन दिनों से समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव सुर्खियों में हैं। पहले उन्होंने शनिवार को बसपा के 6 निलंबित विधायक और एक भाजपा के विधायक को सपा में शामिल कराया, उसके बाद रविवार को सरदार पटेल के जन्मदिन (31 अक्टूबर) के मौके पर, उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना पर बयान देकर राजनीति गरमा दी । फिर सोमवार को बयान दे दिया कि वह 2022 का विधान सभा चुनाव खुद नहीं लड़ेंगे। साफ है कि अखिलेश एक रणनीति के तहत सुर्खियों में बने रहना चाहते हैं। आखिर वह इसके जरिए क्या हासिल करना चाहते हैं। अखिलेश यादव 2022 के विधान सभा चुनावों में मतदाताओं को भाजपा के खिलाफ बस एक चेहरे की याद दिलाना चाहते हैं। लेकिन मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी और प्रियंका गांधी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में फिर से जमीन तलाशती कांग्रेस के रहते ऐसा संभव हो पाएगा।
भाजपा विरोधियों के लिए सपा एक मात्र विकल्प
असल में समाजवादी पार्टी की पूरी कोशिश है कि वह, भाजपा विरोधी वोटरों को भरोसा दिला सके कि अखिलेश यादव ही भाजपा को हराने में सक्षम हैं। इसलिए उनकी कोशिश अपना दायरा बढ़ाने की है। इसलिए वह दूसरे दलों के असंतुष्ट नेताओं को पार्टी में शामिल कर रहे हैं। शनिवार को बसपा के 6 निलंबित विधायक मुजतबा सिद्दीकी ,असलम राइनी, असलम अली चौधरी, हाकिम लाल बिंद , हरगोविंद भार्गव और सुषमा पटेल और भाजपा विधायक राकेश राठौड़ सपा में शामिल हुए।
इसके पहले कांग्रेस के हरेंद्र मलिक की सपा में घर वापसी हुई थी। इसके अलावा पूर्व मंत्री लालजी वर्मा और राम अचल राजभर बसपा का दामन छोड़ समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल हो गए। इसी तरह अगस्त में बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिब्कातुल्लाह अंसारी अपने समर्थकों के साथ सपा में शामिल हुए थे। बलिया से पूर्व बसपा नेता अंबिका चौधरी ने भी सपा में घर वापसी कर ली थी। जाहिर है अखिलेश यादव सपा-बसपा-भाजपा के नेताओं को अपने साथ जोड़कर सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस कर रहे हैं।
पूरब से पश्चिम तक सोशल इंजीनियरिंग की कोशिश
इसी सोशल इंजीनियरिंग के तहत उन्होंने ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है। जो कि पूर्वांचल में राजभर समुदाय में मजबूत पकड़ रखती है। इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी ने पश्चिमी यूपी में महान दल और राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन कर जाट वोट और मौर्य वोटों को एक साथ लाना चाहते हैं।
अखिलेश बनाम सपा हुआ तो क्या फायदा
अगर अखिलेश यादव 2022 का चुनाव भाजपा बनाम सपा करने में सफल हो जाते हैं, तो उन्हें सबसे बड़ा फायदा मुस्लिम वोटों का हो सकता है। प्रदेश में करीब 19 फीसदी मुस्लिम आबादी है। क्योंकि पार्टी को इसी बात का डर है कि अगर बसपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम में मुस्लिम वोट बंट गए तो सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को ही होने वाले है। द्विध्रुवीय चुनाव पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ शशिकांत पांडे टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं ' देखिए अभी यह कहना जल्दीबाजी होगी, कि यूपी के चुनाव द्विध्रुवीय हो गए हैं। लेकिन एक बात तो साफ है कि विपक्ष के रुप में अखिलेश यादव खास रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से कई नेताओं ने सपा का हाथ थामा है। इसमें भी कई क्षेत्रीय स्तर पर काफी ताकतवर नेता हैं।'
मायावती को नहीं कर सकते दरकिनार
भले ही मायावती की तुलना में अखिलेश यादव कहीं ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। लेकिन यह बात भी समझनी होगी कि मायावती का अपना वोट बैंक हैं। पिछली बार 20 फीसदी वोट बसपा को मिले थे। ऐसे में इस वोट बैंक में अखिलेश यादव के लिए सेंध लगाना इतना आसान नहीं होगा। साथ ही मायावती खुद 2007 में किए गए सोशल इंजीनियरिंग के सफल प्रयोग को इस बार दोहरा रही हैं। इसमें न केवल वह ब्राह्मण वोटों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही हैं। बल्कि युवाओं को जोड़ने के लिए अपने भतीजे आकाश को आगे कर दिया है।
प्रियंका भी सक्रिय
पिछले चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी, इस बार प्रियंका गांधी के नेतृत्व में अपनी खोई जमीन को फिर से वापस लेने की रणनीति के तहत काम कर रही है। प्रियंका ने इसके लिए 40 फीसदी महिला प्रत्याशी उतारने, लड़कियों को स्कूटी,स्मार्टफोन देने के साथ मतदाताओं को लुभाने के लिए कई अहम ऐलान किए हैं। साथ ही पहले अकेले चुनाव लड़ने की बात करने वाली पार्टी अब छोटे दलों के साथ गठबंधन की बात कर रही है। इसी कड़ी में सोमवार को राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख जयंत चौधरी के साथ प्रियंका गांधी की मुलाकात भी कई सियासी मायने रखती है। साफ है कि अखिलेश के लिए राह इतनी आसान नहीं है। लेकिन फिलहाल उनका दांव भारी दिख रहा है।
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