नई दिल्ली: 16 दिंसबर, 2012 की घटना को देश शायद कभी नहीं भूलेगा, जब देश की राजधानी में एक चलती बस में निर्भया से छह लोगों ने गैंगरेप किया। इस जघन्य कृत्य को अंजाम देने के बाद दोषियों ने अधमरा कर रेप पीड़िता और उसके साथी को चलती बस से फेंक दिया गया था, जिससे दोनों को गंभीर चोट लगी। इस घटना के बाद पूरा देश आक्रोश में आ गया था और देशभर में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए। देश के गुस्से को देखते हुए बाद में पीड़िता निर्भया को इलाज के सिंगापुर भेज दिया जहां उसकी मौत हो गई। इन सबके बीच पुलिस ने निर्भया के दोषियों को भी अरेस्ट कर लिया और 7 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार दोषियों को आज दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया।
एक आरोपी ने कर ली थी आत्महत्या
इस मामले में 6 आरोपी गिरफ्तार किए गए थे। मुख्य आरोपी राम सिंह ने 2013 में तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी। उसके बाद अगस्त 2013 में नाबालिग आरोपी को जुवेनाईल कोर्ट ने तीन साल की सजा सुनाई थी जो बाद में सजा खत्म करने के बाद रिहा हो गया। इस मामले में तेजी से कानूनी कार्रवाई भी हुई लेकिन कानूनी पेचिदगियां इतनी थी की फांसी के फंदे पर लटकाने में दोषियों को आठ साल लग गए।
2013 में पहली बार सुनाई थी फांसी की सजा
मामले में दिल्ली की साकेत कोर्ट ने चारों दोषियों अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और मुकेश सिंह को 2013 में सजा सुना दी थी जिसके बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट का रूख किया। 2014 मार्च में हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखा लेकिन आरोपी इसके बाद सुप्रीम कोर्ट चले गए। सुप्रीम कोर्ट में भी आरोपियों ने तमाम दांवपेंच चले लेकिन फांसी की सजा टालने में नाकाम रहे और 5 मई 2017 को अदालत ने फांसी की सजा पर मुहर लगा दी।
आरोपियों ने बचने की हरसंभव की कोशिश
मामला इसके बाद भी नहीं रूका आरोपियों ने वो हर तिकड़म भिड़ाई जिससे वो फांसी की सजा को टालने में कामयाब हो सके और कुछ हद तक वो इसमें कामयाब भी रहे। यूं कहें कि इस दौरान आरोपियों ने कानून का मजाक बनाकर रख दिया था। आरोपी तीन बार डेथ वारंट को टालने में भी कामयाब रहे लेकिन कहते हैं ना कि हर बुराई का अंत होता है वहीं हुआ। पहले पुनर्विचार याचिका फिर सरकार से सिफारिश और राष्ट्रपति से सिफारिश के बाद अंतत: 20 मार्च की वह सुबह आई जब चारों दोषियों को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।
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