नई दिल्ली: बीते महीने 27 मई को भारतीय वायुसेना ने स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस की दूसरी स्क्वाड्रन 'फ्लाइंग बुलेट्स' का संचालन शुरु कर दिया। इस दौरान वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने स्वदेशी विमान पर उड़ान भरी और एफओसी (फाइनल ऑपरेशनल क्लीयरेंस) वाले विमानों को ऑपरेशनल करने की प्रक्रिया शुरु की। ये वो विमान है जो लड़ाई की परिस्थितियों के लिए पूरी तरह से तैयार हैं और जिनकी तैनाती पाकिस्तान से सटी सीमा पर किए जाने की संभावना है। इससे पहले बनाई गई तेजस की पहली स्क्वाड्रन में आईओसी (इनीशियल ऑपरेशनल क्लीयररेंस) वैरिएंट वाले विमान ही शामिल थे।
इस मौके पर एक बार फिर कई हल्कों में तेजस की काबिलियत को लेकर बात हुई और जब भी ऐसा होता है तो इसे दुनिया के अन्य चर्चित फाइटर जेट, मुख्यत: अमेरिका के एफ-16 और स्वीडन की 'साब' कंपनी के ग्रिपेन से तौलकर देखा जाता है।
तेजस से भारत के बेहद पुराने हो चुके मिग-21 विमानों को बदलने की योजना है और वैसे तो तेजस के अलावा किसी अन्य विमान से मिग-21 को बदलने की कोई संभावना नहीं है। तेजस मार्क-1ए के 84 विमानों के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को जल्द ऑर्डर भी मिलने वाला है लेकिन फिर भी... आइए एक नजर डालते हैं मिग-21 की जगह इन तीनों विमानों के विकल्प पर और समझते हैं भारत के लिए कौन सा विमान सबसे बेहतर साबित हो सकता है।
(Photo- तेजस फाइटर जेट)
किसमें कितना है दम: अगर तेजस ग्रिपेन और एफ-16 की तुलना करें तो तेजस इनमें सबसे हल्का और छोटा लड़ाकू विमान है लेकिन आधुनिकता के मामले में यह इन दोनों से कई मोर्चों पर आगे नजर आता है क्योंकि यह बाकी दोनों की अपेक्षा नया है। हालांकि अगर प्रदर्शन की बात करें तो इन दोनों को हथियार ले जाने की क्षमता और रेंज के मामले में बढ़त हासिल है लेकिन तेजस में लगातार सुधार किया जा रहा है।
किसी दूसरे देश को अगर इन तीनों विमानों में से किसी एक को चुनना हो तो वह जरूर ग्रिपेन या एफ-16 को चुन सकता है लेकिन भारत के लिए तेजस को ज्यादा संख्या में खरीदना और इन एफ-16 या ग्रिपेन को न चुनने को कई विशेषज्ञ बेहतर विकल्प बताते हैं और इसके कुछ कारण भी हैं।
लगातार दुरुस्त होता स्वदेशी लड़ाकू विमान: सबसे महत्वपूर्ण बात जो किसी दूसरे देश के बजाय स्वदेशी फाइटर जेट को खरीदने पर जोर देती है वह है कि जब स्वदेशी प्लेटफॉर्म को बढ़ावा दिया जाता है तो इसमें जरूरत के मुताबिक बदलाव और लगातार सुधार किए जा सकते हैं जबकि विदेशी फाइटर जेट में निर्धारित क्षमता मिलती है जिसकी मरम्मत और अपग्रेड के लिए लगातार दूसरे देश पर निर्भर रहना पड़ता है।
तेजस के साथ भी ऐसा ही है इसकी रेंज, कलाबाजी करने की काबिलियित और सटीक हमला व घातक हथियार ले जाने की क्षमता में इजाफा हो रहा है और आईओसी से एफओसी तक के तेजस में ही काफी बदलाव आ चुका है। जबकि तेजस मार्क-1ए और भी बेहतर होने जा रहे हैं।
(Photo- ग्रिपेन फाइटर जेट)
तेजस ने रखी भविष्य की नींव: भारत भविष्य में तेजस के मार्क-2 और AMCA (एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) जैसे बेहद आधुनिक अगली पीढ़ी के विमान विकसित करने पर काम कर रहा है और इन विमानों तक पहुंचने का रास्ता तेजस से ही होकर गुजरता है। एचएएल इसी विमान पर आधुनिक तकनीक विकसित करने और उन्हें लगातार बेहतर करते हुए विश्व स्तरीय बनाने की ओर आगे बढ़ रहा है।
अगर एफ-16 या ग्रिपेन को ज्यादा संख्या में खरीद लिया जाता है तो एक ही कैटेगिरी के विमान होने की वजह से तेजस के भविष्य पर संकट खड़ा हो सकता है। बीते समय में इजरायल जैसे कुछ देशों में इस तरह के उदाहरण देखने को भी मिले हैं जहां विदेशों पर निर्भरता के चलते उनके अपने फाइटर जेट प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सके। ऐसे में तेजस के साथ देश में लड़ाकू विमान निर्माण का ढांचागत विकास हो रहा है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि वायुसेना सिर्फ एचएएल और स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए इस विमान को अपना रही है बल्कि उसकी सभी जरूरतों को पूरा करते हुए तेजस विमानों का निर्माण किया जा रहा है और इसे उड़ाने वाले पायलट कहते आए हैं कि तेजस अपनी श्रेणी के किसी भी फाइटर जेट पर लड़ाई में भारी पड़ेगा।
(एफ-16/एफ-21 फाइटर जेट/ Photo Credit - Getty Images)
ग्रिपेन और एफ-21 के दावों में कितनी सच्चाई: ग्रिपेन और एफ-16 के बारे में उन्हें बनाने वाली कंपनियां कई बातें कह सकती हैं लेकिन सच्चाई को ध्यान में रखना बेहद जरूरी हो जाता है और सच्चाई ये है कि लॉकहीड मार्टिन जिस एफ-21 (एफ-16 का अपग्रेड वर्जन) और साब जिस ग्रिपेन-ई की बात कर रहे हैं वह अभी भी कागजों पर ही हैं। वास्तव में ग्रिपेन-ई एक प्रोटोटाइप है और एफ-21 का तो वास्तव में किसी ने देखा भी नहीं है, ऐसे में इन विमानों की काबिलियत को समय से पहले आंकना जल्दबाजी होगी।
क्या वाकई बेहतर हैं ग्रिपेन और एफ-16: जवाब है ऐसा पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। सबसे पहले तो इन विमानों की तुलना ही काफी हद तक बेमानी है क्योंकि तेजस हल्की श्रेणी का विमान है लेकिन फिर भी इसमें कई ऐसी खूबियां हैं जो इसे बाकी दोनों विमानों से आगे खड़ा करती हैं।
तेजस बनाने में दोनों ही विमानों ज्यादा (लगभग 70 फीसदी) कार्बन कंपोजिट मटीरियल का इस्तेमाल हुआ है जो इसे ज्यादा हल्का, कलाबाजी में सक्षम और रडार की पकड़ के लिए मुश्किल फाइटर जेट बनाता है। इसका 98 किलो न्यूटन थ्रस्ट वाला इंजन ग्रिपेन से बेहतर है और स्वदेशी फ्लाईवाई वायर सिस्टम के चलते उड़ाने में बेहद आसान है।
तेजस ने अब तक हजारों उड़ानें भरी हैं और एक भी बार दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ है जबकि ग्रिपेन के साथ ऐसा नहीं है। ग्रिपेन और एफ-16 दोनों से ही यह विमान ज्यादा आधुनिक है। ग्रिपेन और एफ-16 समय के साथ परिपक्व हो चुके हैं और इनमें हथियार ले जाने की क्षमता और रेंज जैसी कुछ चीजें बेहतर हैं लेकिन तेजस में जिस गति से सुधार हो रहे हैं आने वाले समय इसके दोनों विमानों से आगे निकलने की संभावना है। दूसरे शब्दों में इसे भविष्य का फाइटर जेट भी कहा जा सकता है।
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