नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल में अपनी जीत का परचम का लहराने के बाद तृणमूल कांग्रेस (TMC) की प्रमुख ममता बनर्जी पहली बार दिल्ली पहुंची हैं। अपने पांच दिनों की इस यात्रा के दौरान उनका विपक्ष के नेताओं के साथ मुलाकात और बैठकों का सिलसिला जारी है। बुधवार को मुख्यमंत्री ममता की मुलाकात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से हुई। इसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उनसे मिलने के लिए पहुंचे। केजरीवाल-ममता की यह मुलाकात टीएमसी प्रमुख के भतीजे अभिषेक बनर्जी के आवास पर हुई।
विपक्ष का मजबूत मोर्चा तैयार करने की कवायद में ममता
मंगलवार को ममता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलीं और कथित पेगासस जासूसी मामले पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की। ममता की दिल्ली यात्रा सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बनी हुई है। राजनीतिक विश्लेषक इसे 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। जानकारों का कहना है कि ममता बनर्जी मोदी सरकार को संसद से सड़क तक घेरने के लिए विपक्ष का एक मजबूत मोर्चा तैयार करने की कोशिश में हैं। इस सिलसिले में वह विपक्ष के तमाम कद्दावर नेताओं से मिल रही हैं। सोनिया गांधी से मुलाकात के पहले उन्होंने पेगासस मसले पर केंद्र सरकार पर हमला बोला।
मुलाकातों के निकाले जा रहे सियासी मायने
राजनीति में दिखने और दिखाने के एक मायने होते हैं। ममता की इन राजनीतिक मुलाकातों के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। समझा जा रहा है कि बंगाल चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में अपनी बड़ी भूमिका के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर रही हैं। वह विपक्ष का एक ऐसा मोर्चा तैयार करना चाहती हैं जो अगले ढाई साल में मोदी सरकार का संसद से सड़क तक डटकर मुकाबला करे। ममता कहीं न कहीं इसमें अपनी अहम भूमिका देख रही हैं।
नेतृत्व को लेकर साफ जवाब नहीं दे रहीं ममता
हालांकि, विपक्षी मोर्चे का चेहरा बनने को लेकर वह साफ-साफ कोई जवाब नहीं दे रही हैं। मीडियाकर्मियों से बातचीत में ममता ने कहा, 'मैं कोई राजनीतिक ज्योतिषी नहीं हूं। यह बहुत कुछ स्थिति पर निर्भर करेगा। विपक्षी मोर्चे का नेतृत्व अगर कोई और करे तो इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। जब इस बारे में चर्चा होगी तो हम इस पर फैसला करेंगे। मैं किसी पर कोई चीज थोप नहीं सकती।' मोर्चे का अगुवाई करने के सवाल पर ममता बने कहा, 'मैं बिल्ली के गर्दन में घंटी बांधने में सभी राजनीतिक दलों की मदद करना चाहती हूं। मैं नेता बनना नहीं चाहती, मैं एक साधारण कार्यकर्ता बने रहना चाहती हूं।'
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