देश में 'दिल्ली मॉडल' का नरेटिव खड़ा करना चाहते हैं अरविंद केजरीवाल, रामलीला मैदान से मिले संकेत  

देश
आलोक राव
Updated Feb 16, 2020 | 15:37 IST

Arvind Kejriwal swearing : भाषण में केजरीवाल ने अपने राजनीतिक भविष्य के संकेत दिए। वह भारत के युवाओं की चिंता करते हुए दिखाई दिए। जाहिर है कि वह अपनी चुनावी सफलता को अब दिल्ली तक नहीं रोकना चाहते।

Arvind Kejriwal wants to create Delhi Model narrative in India
अरविंद केजरीवाल ने तीसरी बार दिल्ली के सीएम के रूप में ली शपथ। 
मुख्य बातें
  • दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, 62 सीटों पर लहराया है जीत का परचम
  • भारतीय जनता पार्टी को आठ सीटों पर जीत मिली है जबकि कांग्रेस इस बार भी नहीं जीत पाई एक भी सीट
  • अब आप को दिल्ली राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाना चाहेंगे केजरीवाल, अन्य राज्यों में विस्तार के लिए उठा सकते हैं कदम

नई दिल्ली : रामलीला मैदान में अरविंद केजरीवाल ने रविवार को तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राम लीला मैदान तो वही है, केजरीवाल भी वहीं हैं और दिल्ली की जनता भी वही है लेकिन इस बार केजरीवाल के सुर बदले हुए मिले। 'इंसान से इंसान का हो भाईचारा' की जगह 'हम होंगे कामयाब' ने ले ली। इस बार सिर से टोपी उतर गई और माथे पर तिलक आ गया। भाषण में दिल्ली के साथ-साथ पूरे भारत की चिंता देखी गई। इस बदलाव के कई राजनीतिक मायने हैं।  

भाषण में केजरीवाल ने अपने राजनीतिक भविष्य के संकेत दिए। वह भारत के युवाओं की चिंता करते हुए दिखाई दिए। जाहिर है कि वह अपनी चुनावी सफलता को अब दिल्ली तक नहीं रोकना चाहते बल्कि उसे देश के अन्य राज्यों तक फैलाना चाहते हैं। वह तेजी के साथ अपनी पार्टी को अन्य राज्यों में ले जाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि दिल्ली की इस सफलता की गूंज अन्य राज्यों में भी फैले। वह यह भी चाहते हैं कि दिल्ली की शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली एवं पानी की चर्चा ज्यादा से ज्यादा हो ताकि अन्य प्रदेशों में उनकी राजनीतिक जमीन का विस्तार जल्द से जल्द हो सके।  

राजनीति में नरेटिव बहुत मायने रखता है। जनता के बीच यदि यह नरेटिव बन जाए कि अमुक पार्टी की सरकार अच्छा काम कर रही है तो चुनावों में उस पार्टी की सफलता की राह आसान हो जाती है। गुजरात में विकास का नरेटिव बना और इस नरेटिव ने नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने में एक अहम भूमिका निभाई। केजरीवाल भी कुछ इसी तरह की नरेटिव खड़ा करना चाहते हैं। चूंकि अन्य राज्यों में आप का संगठन या तो कमजोर है या अत्यंत शुरुआती चरण में है। एक बार आप के पक्ष में सकारात्मक राजनीति का नरेटिव बन जाने पर किसी भी राज्य में आप के विस्तार में मदद मिलेगी।

केजरीवाल ने अपने भाषण में कहा है कि वह दिल्ली को दुनिया के सबसे बेहतरीन शहरों में शुमार करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने सभी राजनीतिक दलों के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई है। चुनावी सफलता के बाद उन्होंने सभी गिलवे-शिकवे बुलाकर दिल्ली के लिए काम करने की बात कही है। केजरीवाल ने दिल्ली के विकास के लिए केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सहयोग एवं आशीर्वाद मांगा है। साथ ही खुद को दिल्ली का बेटा बताते-बताते यह कहना भी नहीं भूले कि जब तक भारत के युवा को अच्छी शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलेंगी तब तक तिरंगा आसमान में शान के साथ नहीं लहराएगा। जाहिर है वह आप को राष्ट्रीय स्तर की एक पार्टी के रूप में उभारना चाहते हैं। इसके लिए वह अपनी सकारात्मक राजनीति को आगे रखना चाहते हैं।

केजरीवाल को पता है कि यूपी और बिहार जैसे राज्यों में एक बड़ी आबादी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए सरकारी स्कूलों एवं अस्पतालों पर निर्भर है। इन राज्यों में बिजली और पानी प्रमुख मुद्दे हैं। दिल्ली की मुफ्त बिजली-पानी एवं शिक्षा, स्वास्थ्य का कामकाज उनके लिए इन राज्यों में एक बड़ा समर्थन पैदा कर सकता है। बिहार में नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में केजरीवाल की नजर कहीं न कहीं यहां के चुनाव पर है।  

राजनीति में कुछ भी मुफ्त नहीं होता। सरकारें अपने फैसले को वोट बैंक की राजनीति से भी आंकती हैं। जनता विकास पसंद करती है। विकास के साथ-साथ उसे कुछ रियायत भी मिलती जाए तो सरकार की लोकप्रियता जनता के बीच और बढ़ जाती है। केजरीवाल अपनी लोकप्रियता को आगे बरकरार रखना चाहेगी। तीसरी बार सीएम बन जाने के बाद केजरीवाल के सामने अपने किए हुए वादों को पूरा करने की चुनौती है। उनके तमाम वादों में एक वादा यह भी है कि वह अगले पांच सालों में यमुना को इस कदर स्वच्छ कर देंगे कि उसमें डुबकी लगाई जा सके। 

अपनी पार्टी को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाना और उसे राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाना अच्छी बात है। सकारात्मक राजनीति का स्वागत होना चाहिए। केजरीवाल और उनकी पार्टी के सामने राजनीति को एक नया दिशा देने का मौका है। इस अवसर का लाभ उन्हें उठाना चाहिए। साथ ही उन्हें इस बात को भी ध्यान रखना होगा कि दिल्ली का अपना एक अलग सामाजिक ताना-बाना है। यह एक छोटा राज्य है। यहां के मतदाता अलग तरीके से सोचते हैं। बिहार या अन्य हिंदी भाषी राज्यों की अपनी एक अलग सामाजिक संरचना एवं बनावट है। यहां क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय दलों की अपनी ताकत है। इनके बीच अपने लिए राजनीतिक जमीन की तलाश कर पाना आम आदमी पार्टी के लिए असंभव तो नहीं लेकिन चुनौतीपूर्ण जरूर है। 

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर