Ayodhya: मोदी राज में पूरा हुआ भाजपा का एक और प्रमुख वादा, आज ही के दिन कश्मीर से खत्म हुई थी धारा 370

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Updated Aug 05, 2020 | 07:05 IST

भारतीय जनता पार्टी का एक और प्रमुख चुनावी मुद्दा पूरा होने जा रहा है। इस मुद्दे को लेकर बीजेपी अक्सर विपक्ष के निशाने पर भी रही। गौर करने वाली बात ये है कि पिछले साल आज ही के दिन कश्मीर से 370 खत्म हुई थी।

Ayodhya Ram Mandir Another major promise of BJP fulfilled during Modi regime
Ayodhya: मोदी राज में पूरा हुआ भाजपा का एक और प्रमुख वादा 
मुख्य बातें
  • अपने चुनावी वादों को लगातार पूरा करते रह रही है भाजपा
  • पिछले वर्ष 5 अगस्त, यानि आज की के दिन जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 खत्म हुआ था
  • तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष आडवाणी के नेतृत्व में 1990 में शुरू हुई ‘‘राम रथ यात्रा’’ के बाद बना राजनीतिक मुद्दा

नई दिल्ली: भाजपा को एक जमाने में अपने सहयोगियों को लुभाने के लिए एक बार अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण के विवादास्पद मुद्दे को पीछे छोड़ना पड़ा था, आज इसके निर्माण की शुरुआत अपने विरोधियों पर उसकी वैचारिक जीत के रूप में सामने आई है। यहां तक कि कई विपक्षी नेता भी इसका स्वागत कर रहे हैं। इत्तेफाक से जिस दिन मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिन्दुत्व के आंदोलन की अगुवाई करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की उपस्थिति में शिलान्यास करेंगे उसी दिन जम्मू एवं कश्मीर से धारा 370 को निरस्त करने की पहली वर्षगांठ भी है।

आज ही के दिन पूरा किया 370 को हटाने का वादा

पांच अगस्त के दिन ही एक साल पहले धारा 370 को समाप्त कर भाजपा ने विचारधारा से जुड़े अपने एक अन्य प्रमुख वादे को पूरा किया था। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बुधवार को होने वाले शिलान्यास में प्रमुख राजनीतिक उपस्थिति प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रहने वाली है। दोनों ही इसके लिए उपयुक्त हैं क्योंकि दोनों हिन्दुत्व के प्रति अपनी अटल निष्ठा के लिए जाने जाते हैं। याद दिलाते चले कि भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारी के नाते मोदी ने वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 में हुई ‘‘राम रथ यात्रा’’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जबकि आदित्यनाथ के गुरू स्वर्गीय महंत अवैद्यनाथ ने 1984 में बने साधुओं और हिन्दू संगठनों के समूह की अगुवाई कर मंदिर आंदोलन में अहम योगदान दिया था।

आस्था का मुद्दा

मान्यता के अनुसार जहां भगवान राम का जन्म स्थान है वहां मंदिर निर्माण के पक्ष में साल 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला देकर हिन्दू और मुस्लिम समूहों के बीच ऐतिहासिक विवाद का कानूनी पटाक्षेप किया वहीं मंदिर निर्माण की शुरुआत हिन्दूत्ववादी भावनाओं को आगे मजबूती देने का काम कर सकती है। भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘हमारे लिए अयोध्या का मुद्दा बहुत पहले ही राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया था। यह हमारे लिए हमेशा से आस्था का मुद्दा रहा है। सभी आम चुनावों में हमारे घोषणा पत्रों में राम मंदिर का निर्माण और धारा 370 को समाप्त करने का वादा हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अब जबकि दोनों वादे पूरे हो गए है, जाहिर तौर पर हम इसकी चर्चा करेंगे।’

1989 में पहली बार लिया गया संकल्प

वैसे तो राम मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन की संकल्पना 1984 में दिवगंत अशोक सिंघल के नेतृत्व में विश्व हिन्दू परिषद ने की थी और इसके लिए देश भर में साधुओं और हिन्दू संगठनों को एकजुट करने की शुरुआत हुई थी। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष आडवाणी के नेतृत्व में 1990 में शुरू हुई ‘‘राम रथ यात्रा’’ के बाद से यह मुद्दा राजनीतिक हलकों में छाया रहा। इसके बाद भाजपा खुलकर राम मंदिर के समर्थन में आ गई। साल 1989 में पालमपुर में हुए भाजपा के अधिवेशन में पहली बार राम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया गया।

आडवाणी की रथ यात्रा

आडवाणी ने अपनी प्रसिद्ध रथ यात्रा की शुरुआत गुजरात के सोमनाथ मंदिर से की थी। उनकी इस यात्रा को 1990 में प्रधानमंत्री वी पी सिंह के अन्य पिछड़ा वर्गो के आरक्षण के मकसद से शुरू की गई मंडल की राजनीति की काट के रूप में भी देखा जाता है। आडवाणी की यह यात्रा देश के प्रमुख शहरों से होकर गुजरी जिसने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। उनकी इस यात्रा के चलते साम्प्रदायिक भावनाएं भी भड़की और दंगे भी हुए। इन सबके बीच राम मंदिर का आंदोलन जोर पकड़ता गया।विवादित स्थल पर बाबारी मस्जिद के ढांचे को छह दिसम्बर 1992 को गिराए जाने के बाद भाजपा कुछ समय के लिए भारतीय राजनीति में अन्य दलों के लिए अछूत हो गई लेकिन इसके बावजूद उसे सत्ता में आने से नहीं रोका जा सका।

अछूत थी भाजपा?

राजनीतिक रूप से ‘अछूत’ होने के तमगे को हटाने के लिए भाजपा को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी को धारा 370 और समान नागरिकता संहिता सहित राम मंदिर के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा। नये सहयोगियों को साधकर 1989 से 2014 के गठबंधन युग में सत्ता में आने के लिए भाजपा के लिए यह आवश्यक था। साल 2014 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा के सत्ता में आने के बाद पार्टी ने अपने मूल मुद्दों को लेकर प्रतिबद्धता में दृढ़ता दिखाई। यह पहला मौका था जब 543 सदस्यीय लोकसभा में भाजपा को बहुमत मिला था। इस बार उसके ऊपर सहयोगियो का वैसा दबाव नहीं था जैसा कि वाजपेयी काल में गठबंधन के कारण हुआ करता था।

कांग्रेस ने भी की तारीफ

साल 2019 के चुनाव में भाजपा को पहले से भी बड़ा जनादेश मिला। इसके बाद पार्टी नई ऊर्जा से अपने मूल मुद्दों पर आगे बढ़ती दिखी। पहले जम्मू एवं कश्मीर से धारा 370 को निरस्त करना और राम मंदिर के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना यही दर्शाता है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि भगवान राम सबमें हैं और सबके हैं तथा ऐसे में पांच अगस्त को अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए होने जा रहा भूमि पूजन राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का कार्यक्रम बनना चाहिए।कांग्रेस की उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका ने एक बयान में कहा, ‘युग-युगांतर से भगवान राम का चरित्र भारतीय भूभाग में मानवता को जोड़ने का सूत्र रहा है। भगवान राम आश्रय हैं और त्याग भी। राम सबरी के हैं, सुग्रीव के भी। राम वाल्मीकि के हैं और भास के भी। राम कंबन के हैं और एषुत्तच्छन के भी। राम कबीर के हैं, तुलसीदास के हैं, रैदास के हैं। सबके दाता राम हैं।’

बीजेपी ने साधा निशाना

इससे पहले, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भी राम मंदिर का स्वागत किया। भाजपा नेता अमित मालवीय ने कहा कि शिलान्यास समारोह के मद्देनजर अब ‘मानसिक रूप से दिवालिए धर्मनिरपेक्ष’ नेता अचानक भगवान राम के प्रति श्रद्धा जता रहे हैं। उन्हें यह याद दिलाना जरूरी है कि भाजपा ही एकमात्र राजनीतिक दल है जिसके लिए भव्य राम मंदिर का निर्माण आस्था का विषय रहा है।
 

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