आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा हो गया है। आम चुनाव 2019 में उनकी लहर ने भाजपा को 303 के आंकड़े तक पहुंचाया और उसके बाद से 'मोदी सरकार 2.0' ने कई चुनौतियों का सामना किया है और सालों से चली आ रही कई समस्याओं का हल भी निकाला है। अगर आप 2014 से अब तक के सफर को देखें तो नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के जरिए भारत में कई योजनाओं को हरी झंडी दिखाई। इन योजनाओं और तमाम तरह की पहल का दायरा गांव से लेकर शहरों तक रहा। इन्हीं सबके बीच एक ऐसे मंत्रालय को भी सबने उभरते हुए देखा जो कभी सिर्फ एक विभाग मात्र हुआ करता था। ये है आयुष मंत्रालय।
क्या है 'आयुष'
1995 में जब देश में कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार थी तब एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में भारतीय जनता पार्टी उठ ही रही थी। उस दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय में एक अंग जोड़ा गया और ये था इंडियन मेडिसिन एंड होम्योपैथी (ISM and H) विभाग। इसका मकसद था भारत की पुरानी चिकित्सीय पद्धति को पहचान दिलाना, इस पर ज्यादा से ज्यादा से रिसर्च होना और इसका विकास होना। साल 2003 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार सत्ता में थी तब इस विभाग का नाम बदलकर 'आयुष' रख दिया गया। AYUSH का अर्थ था- Ayurveda, Yoga, (Naturopathy), Unani, Siddha और Homeopathy.
साल 2014 में लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर केंद्र में भाजपा सरकार आई और इस बार मुखिया थे नरेंद्र मोदी। साल 2003 में जिस मकसद के साथ अटल जी ने इस विभाग को महत्वता देते हुए इसका नाम आयुष रखा था, इस बार उसको एक कदम और आगे ले जाने की बारी थी। सत्ता में आने के कुछ ही महीनों बाद 9 नवंबर 2014 को मोदी सरकार ने AYUSH को एक विभाग के दर्जे से बाहर निकाला और इसे एक मंत्रालय बना डाला। एक ऐसा कदम जिससे आयुष कहीं विभागों की धुंध में खो ना जाए। इसके लिए एक अच्छा-खासा बजट पास हुआ ताकि भारत के स्वर्णिम इतिहास में लोगों ने चिकित्सा के क्षेत्र में जो अद्भुत काम किया है उसको दुनिया भी जाने और माने।
योग दिवस पर देशवासियों के साथ योग करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
क्या हुआ असर
आयुष मंत्रालय ने आम तौर पर मोदी सरकार की कुछ अन्य योजानाओं के साथ कदम मिलाते हुए भारत के ग्रामीण इलाकों पर ध्यान दिया। इसका खास मकसद था आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी के जरिए उन जटिल बीमारियों का इलाज करना जिसमें कई बार समय लग जाता है, ये सस्ता जरिया है इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के लिए ये अच्छा विकल्प बना। इसके अलावा योगा का प्रचार-प्रसार 2014 से लेकर अब तक जारी है।
आयुष मंत्रालय आए दिन अपनी योजनाएं अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से तैयार करता रहता है क्योंकि एक सर्वे में देखा गया कि भारत में अलग-अलग जगह, अलग-अलग विकल्पों की मांग है। अगर दक्षिणी क्षेत्रों में आयुर्वेद की मांग ज्यादा है तो हैदराबाद की तरफ युनानी पहली पसंद है, जबकि बंगाल और ओडिशा की तरफ होम्योपैथी की पकड़ है। धीरे-धीरे ये मंत्रालय आयुर्वेद और योग को ऐसे स्तर पहुंचाने में सफल दिख रहा है जिससे लोगों का फायदा मिलना शुरू हुआ है।
आयुष मंत्री श्रीपद नाइक के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'आयुर्वेद के मास्टर हीलर्स' के नाम पर टिकट जारी करते हुए
मोदी सरकार 2.0 के दौरान कोरोना काल में अहम भूमिका
अब तक आयुष मंत्रालय पर्दे के पीछे अपना काम भारत के ग्रामीण इलाकों में तेजी से बढ़ा रहा था और शहरों में भी इसका प्रचार हो रहा था। लेकिन कोरोना वायरस महामारी ने इस मंत्रालय के ऊपर अहम जिम्मेदारी डाली और इसे अपनी भूमिका दिखाने का मौका भी मिल रहा है। AYUSH का सबसे बड़ा मकसद लोगों की प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को मजबूत करना है। इसके लिए आयुष में ऐसी-ऐसी दवाएं मौजूद हैं जो ना सिर्फ बीमारियों से लड़ने की शक्ति देती हैं बल्कि इनमें साइड इफेक्स भी ना के बराबर होते हैं।
चाहे वो योग हो या फिर पौधों से निर्मित दवाईयां, आपकी रसोई में मौजूद छोटी-छोटी चीजों से काढ़ा तैयार करके परिवार को अंदर से मजबूत करना हो या फिर गरम पानी पीने और अन्य जरूरी चीजों के प्रति लोगों का जागरुक करना, इन सभी चीजों का कोरोना काल में आयुष ने जमकर प्रचार किया है। इससे उन चिकित्सकों को भी नई उड़ान मिली जिन्हें अपना हुनर कहीं गुम होता दिखने लगा था। इस मंत्रालय की चर्चा विदेशी मीडिया में भी जमकर हुई और केमिकल से निर्मित दवाइयों से हटकर अब विदेशी भी आयुर्वेद को वैसे ही अपनाना चाहते हैं जैसे कि उन्होंने योग को अपनाया। एक विभाग से एक मंत्रालय तक का सफर, अब आयुष के जरिए लोगों को अपने देश की 'खुद' की विरासत को संभालने का एक मौका मिला है।
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