नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बनी एनडीए सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा करने जा रही है। बीते एक साल में मोदी सरकार 2.0 की उपलब्धियों की बात करें तो संविधान के अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून, बैंकों का विलय सहित कई ऐसे फैसले रहे, जिन्हें सरकार तमाम विरोधों के बावजूद अपनी प्रमुख उपलब्धियों के तौर पर गिनाती है। हालांकि विदेशों और पड़ोसी मुल्कों से भारत के संबंधों पर एक नजर डालें तो शुरुआती छह माह जहां बेहद गतिशील नजर आते हैं, वहीं बाद के 6 महीनों में इस पर कोरोना वायरस संक्रमण की छाया साफ नजर आती है।
मोदी सरकार 2.0 में भारतीय विदेश नीति की बात करें तो सत्ता में वापसी के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत दे दिए थे कि उनकी सरकार की नीति 'नेबरहुड-फर्स्ट' यानी पड़ोसी मुल्कों को तरजीह को समर्पित रहेगी। इसकी बानगी तब भी देखने को मिली थी, जब पीएम मोदी ने अपने दूसरे शपथ-ग्रहण समारोह में BIMSTEC देशों के नेताओं को आमंत्रित किया था, जिसमें बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान शामिल हैं। इससे पहले जब 2014 में पीएम मोदी ने पहली बार केंद्र की सत्ता संभाली थी तो उन्होंने SAARC देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया था।
बीते कुछ समय में भारत सरकार ने अपनी विदेशी नीति में BIMSTEC को प्रमुखता दी है तो इसकी एक बड़ी वजह पाकिस्तान के प्रति निराशा भी है। साल 2014 में जब पीएम मोदी ने अपने शपथ-ग्रहण समारोह में SAARC देशों के नेताओं को आमंत्रित किया था तो उसमें पाकिस्तान की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी शामिल हुए, लेकिन पाकिस्तान के साथ भारत का तालमेल तमाम कोशिशों के बाद भी दुरुस्त नहीं हो सका, जिसके बाद मोदी सरकार ने SAARC की बजाय BIMSTEC की ओर ध्यान देना शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान नहीं है।
यह संगठन यूं तो दो दशक से भी ज्यादा पुराना है, पर चर्चा में बीते कुछ वर्षों में आया है। बिम्सटेक के देशों में दुनिया की कुल जनसंख्या का लगभग 21 प्रतिशत हिस्सा रहता है, जबकि इन देशों का कुल जीडीपी 2.5 ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा है। इस संगठन के देशों के साथ अपने रिश्तों को बढ़ावा देने के भारत के रुख से जहां साफ है कि उसने पाकिस्तान के साथ तालमेल कर कुछ हासिल करने की उम्मीद छोड़ दी है, वहीं इसे पाकिस्तान को अलग-थलग करने की नीति के तौर पर भी देखा जा रहा है, जिसके साथ भारत के आतंकवाद सहित कई मुद्दों को लेकर टकराव की स्थिति बरकरार है।
पीएम मोदी ने दोबारा सत्ता संभालने के बाद अपने पहले विदेश दौरे के तौर पर मालदीव और श्रीलंका को चुनकर भी ये साबित कर दिया कि उनकी सरकार पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंधों को तवज्जो देते हुए आगे बढ़ने की इच्छुक है। इस बीच चीन के साथ भी रिश्ते एक ऊंचाई तक गए, जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग पीएम मोदी के साथ अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए अक्टूबर 2019 में तमिलनाडु के मामल्लापुरम पहुंचे। यूं तो यह एक साल पहले अप्रैल 2018 में चीन के वुहान में हुई पीएम व राष्ट्रपति शी की पहली अनौपचारिक शिखर बैठक का ही अगला चरण था, लेकिन दोनों देशों के संबंधों में इसका कूटनीतिक महत्व काफी गहरा है।
चीन का वही वुहान शहर आज आज दुनियाभर में कोरोना वायरस के कारण सुर्खियों में है, जहां इस घातक संक्रमण का सबसे पहले मामला दिसंबर 2019 में सामने आया था। इसके बाद से अंतरराष्ट्रीय राजनीति की तस्वीर ही बदल गई है। अमेरिका जहां 'वुहान वायरस' और 'चाइनीज वायरस' का जिक्र कर बार-बार चीन के खिलाफ हमलावर तेवर अपनाए हुए हैं, समूची दुनिया को अपनी चपेट में लेने वाले इस घातक वायरस के कारण भारतीय विदेश नीति भी काफी हद तक प्रभावित हुई है। न केवल चीन के साथ रिश्ते इन दिनों उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहे हैं, बल्कि पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश व नेपाल के साथ भी कई मुद्दों पर मतभेद बने हुए हैं।
मोदी सरकार 2.0 के पहले कार्यकाल के शुरुआती 6 महीनों की बात करें तो न केवल पड़ोसी मुल्कों, बल्कि अमेरिका के साथ भी इसके रिश्ते नई ऊंचाइयों को छूते नजर आए। लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी करने वाले पीएम मोदी का सितंबर 2019 का दौरा ऐतिहासिक बन गया, जब डलास में आयोजित 'हाउडी मोदी!' कार्यक्रम में भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जुगलबंदी को चीयर करने के लिए 50 हजार की भीड़ एकजुट हुई। अमेरिका में हुए इस कार्यक्रम की सफलता ही थी कि डोनाल्ड ट्रंप इसके 5 महीने बाद ही फरवरी 2020 में अपने पूरे परिवार के साथ भारत पहुंचे, जहां पीएम मोदी के गृह नगर अमदाबाद में 1,00,000 से ज्यादा लोगों की भीड़ ने उनका जोरदार स्वागत किया। भारत में अपने जोरदार स्वागत से डोनाल्ड ट्रंप अभिभूत नजर आए, जिसका जिक्र उन्होंने कई बार किया। आपसी रिश्तों को मजबूत बनाने में डलास और अहमदाबाद के इन कार्यक्रमों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विगत एक साल में कई इस्लामिक देशों से भी भारत की नजदीकियां बढ़ी हैं, जो पाकिस्तान के साथ इन देशों के रिश्तों को देखते हुए काफी अहम हैं। अभी हाल ही में भारत को इस संबंध में एक बड़ी कामयाबी तब मिली, जब मालदीव ने इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) में 'इस्लामोफोबिया' का हवाला देकर भारत को घेरने की पाकिस्तान की कोशिशों को नाकाम कर दिया और भारत का मजबूती से बचाव किया। मालदीव ही नहीं, इस मसले पर सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और ओमान ने भी भारत का साथ दिया, जिसे इन देशों के साथ भारत के बढ़ते व्यापारिक रिश्ते और इस्लामिक देशों में भारत की बढ़ती अहमियत के तौर पर देखा जा सकता है।
विगत एक साल में जहां विदेशी मोर्चे पर इन्हें मोदी सरकार की उपलब्धियों के तौर पर गिना जा सकता है, वहीं विगत कुछ समय में कई देशों के साथ भारत के रिश्ते तल्ख भी हुए हैं, जिनमें चीन, बांग्लादेश और नेपाल भी शामिल है, जिसके साथ भारत के घनिष्ठ संबंध रहे हैं। ऐसे में जबकि पूरी दुनिया कोरोना संक्रमण से जूझ रही है, भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव की स्थिति बनी हुई है, जबकि पीपीई किट और रैपिड टेस्ट किट के मसले ने भी चीन से रिश्तों में खटास पैदा की। दरसअल, भारत ने देश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच चीन से बड़ी मात्रा में पीपीई किट और रैपिड टेस्ट किट का आयात किया था, लेकिन इन्हें तय मानकों पर खरा नहीं पाया गया और ऑर्डर कैंसिल कर दिए गए। अब लद्दाख में दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। हालांकि तनाव कम करने की कोशिशें कूटनीतिक व सैन्य दोनों स्तरों पर जारी हैं।
नेपाल से भारत के रिश्ते फिलहाल कालापानी और लिपुलेख मुद्दे पर तनावपूर्ण नजर आ रहे हैं, जिसके साथ भारत की वर्षों की मित्रता रही है। नेपाल के रुख में बदलाव की एक बड़ी वजह चीन के साथ उसकी बढ़ती नजदीकियों को माना जा रहा है। विशेषकों का यह भी कहना है कि चीन नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाते हुए भारत पर दबाव बनाना और उसके लिए चुनौतियां खड़ी करना चाहता है। हालांकि नेपाल के साथ रिश्तों में तल्खी के बीच चीन का यह बयान काफी मायने रखता है कि भारत और नेपाल के बीच जो भी मसले हैं, वे द्विपक्षीय हैं और इसमें कोई टिप्पणी कर वह जटिलताओं को बढ़ावा देने का इच्छुक नहीं है। बहरहाल, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत के साथ टकराव की स्थिति में अगर नेपाल का झुकाव चीन की ओर और बढ़ता है तो यह कूटनीतिक व सामरिक रूप से भारत के हित में नहीं होगा।
पड़ोसी मुल्कों से भारत के संबंधों का जब उल्लेख हो रहा है तो इसमें बांग्लादेश का जिक्र भी प्रासंगिक होगा, जिसके साथ भारत के संबंध आम तौर पर मधुर रहे हैं। हालांकि बांग्लादेश से संबंधों में अब भी तल्खी उस तरह की नहीं है, जैसी कि नेपाल या चीन के साथ सीमा विवाद के मुद्दे पर हालिया टकराव के कारण बढ़ी है, पर नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के मुद्दे पर भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में एक दूरी जरूर देखी जा रही है। बहरहाल, तमाम चुनौतियों के बावजूद कोरोना काल में भी विदेशी मोर्चे पर मोदी सरकार 2.0 की एक साल की उपलब्धियों को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
(डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।)
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।