नई दिल्ली: आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित 5 राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए देश में मंडल, कमंडल की राजनीति फिर से तूल पकड़ सकती है। और उसका आधार जातिगत जनगणना बनने वाली है। जिसमें न केवल विपक्षी दल बल्कि भाजपा के सहयोगी दल भी ओबीसी की जनगणना जातियों के आधार पर करने की तैयारी में हैं। बढ़ती मांग और समर्थन को देखते हुए अब सत्तारूढ़ भाजपा इसका तोड़ सामाजिक आर्थिक आधार पर जनगणना को बनाने की तैयारी में है।
भाजपा की क्या है प्लानिंग
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 20 जुलाई 2021 को लोकसभा में दिए जवाब में कह चुके हैं "फिलहाल केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती का कोई आदेश नहीं दिया है। पिछली बार की तरह ही इस बार भी जनगणना में एससी और एसटी को ही शामिल किया गया है।" सााफ है कि सरकार फिलहाल इस तरह की कोई जनगणना नहीं कराना चाहती है। लेकिन जिस तरह पार्टी के भीतर और समर्थक दलों से जातिगत जनगणना की मांग उठ रही है, उसे देखते हुए भाजपा लंबी अवधि की रणनीति पर काम कर रही है।
सूत्रों के अनुसार नई रणनीति सामाजिक आर्थिक आधार पर जनगणना पर फोकस रहेगी। एक वरिष्ठ नेता का कहना है "देखिए साल 2011 में मनमोहन सिंह सरकार के समय में सामाजिक-आर्थिक आधार पर सर्वेक्षण किया गया था। सरकार उसके आधार पर गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगों को योजनाओं के जरिए लाभ पहुंचा रही है। उज्जवला, प्रधान मंत्री आवास जैसे सफल योजनाओं को सफलता पूर्वक चला रही है। साफ है कि ऐसे सर्वेक्षण लोगों तक लाभ पहुंचाने में काफी फायदेमंद हो सकते हैं। " ऐस में जातिगत जनगणना को 2021 में कराने से अच्छा है कि इस आधार पर लोगों को जोड़ा जाय।
ओबीसी के अंदर जातियों का विभाजन हो सकता है नुकसान देह
पार्टी के अंदर इस बात का भी स्पष्ट रुप से मानना है कि जातिगत जनगणना से ओबीसी के अंदर भी विभाजन हो सकता है। भाजपा के लिए ओबीसी एक बड़ा वोट बैंक है। ऐसे में वह नहीं चाहेगी कि विपक्षी दल बंटवारे की राजनीति कर उसके वोट बैंक में सेंध लगाए। इसलिए आने वाले समय में पार्टी पूरे ओबीसी वर्ग की गणना के लिए रास्ता तैयार कर सकती है। लेकिन उसके अंदर विभाजन के लिए नहीं तैयार होगी। मंडल कमीशन के अनुसार देश में करीब पौने चार हजार जातियां हैं।
सहयोगी दलों को भरोसे में लेने की तैयारी
जिस तरह से बिहार के मुख्य मंत्री और जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार ने खुलकर जातिगत जनगणना का समर्थन किया है और उसको लेकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। उसे भाजपा सतर्क हो गई है। सूत्रों के अनुसार भाजपा जनता दल (यू), उत्तर प्रदेश में अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल, आरपीआई नेता राम दास अठावले आदि से भी इस संबंध में जल्द बैठक करेंगी। जिससे कि आगे की रणनीति का रास्ता मिल कर तैयार हो सके।
किस बात का है डर
असल में अगर जातिगत जनगणना होती है तो इस बात का डर है कि कहीं मौजूदा आंकलन की तुलना में ओबीसी की संख्या में बढ़ोतरी या कमी न हो जाय। तो यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। और आरक्षण की नई मांग खड़ी हो सकती है। 2022 में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर में विधान सभा चुनाव और 2024 में लोक सभा चुनाव हैं। भारतीय जनता पार्टी किसी हालत में नहीं चाहती है कि चुनाव में जाति का मुद्दा खड़ा हो जाय। क्योंकि 1990 में तत्कालीन प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ा वर्ग पर गठित बी.पी.मंडल आयोग की कुल 40 सिफारिशों में से एक सिफारिश को जब लागू किया और उसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण मिलने की व्यवस्था हुई । मंडल कमीशन की रिपोर्ट (1979 में पेश की गई थी) के अनुसार देश में 52 फीसदी ओबीसी जातियां थी। उस एक फैसले ने पूरे भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को ही बदल कर रख दिया।
आरएसएस भी करता रहा है विरोध
भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी शुरू से जातिगत जनगणना के खिलाफ रुख रहा है। पूर्व सह-सर कार्यवाह भैय्या जोशी ने 2011 की जनगणना के समय कहा था कि हम वर्ग के आधार पर जनगणना के विरोधी नहीं है। लेकिन जाति के आधार पर जनगणना के समर्थक नही हैं। क्योंकि जाति आधारित जनगणना, बाबासाहेब अंबेडकर के जाति विहीन समाज के विचार के खिलाफ है। जाहिर है भाजपा जातिगत जनगणना का स्वीकार अपने हिंदुत्व के एजेंडे को कमजोर नहीं करना चाहती है।
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