नई दिल्ली। देश इस समय कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। अनदेखे दुश्मन के खिलाफ लड़ाई में सोशल डिस्टेंसिंग, लॉकडाइउन, ग्लव्स, मॉस्क और सैनिटाइजर जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है। आज के हालात में विरोध के सुर कम हैं, हालांकि विपक्ष समय समय पर केंद्र सरकार पर आरोप लगा रहा है मसलन किट्स की कमी है, राज्यों के पास फंड की कमी है। कांग्रेस भी इस तरह के आरोप लगाती है लेकिन कभी कभी ऐसा लगता है कि आरोप लगाने के पहले कांग्रेस सांसद तथ्यों की अनेदेखी कर देते हैं।
क्या यूं ही बोल जाते हैं राहुल गांधी
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट के जरिए कहा कि एत तरफ मजबूरों के पेट में चावल नहीं है, वो खाद्यान्न के लिए लाइनों में लगे रहते हैं। लेकिन उनके हिस्से का चावल कहीं और जा रहा है। वो कहते हैं कि एफसीआई के गोदामों में जो चावल है इसे केंद्र सरकार हैंड सैनिटाइजर बनाने के लिए बड़े उद्योग घरानों को दे रही है और इस तरह से उनकी झोली भर रही है। लेकिन राहुल गांधी शायद 20 अप्रैल के एनबीसीसी के फैसले को या तो पढ़े नहीं, या तो पढ़ कर उसे भूल गए या उसे समझ नहीं पाए
NBCC के फैसले का मजमून
20 अप्रैल को पेट्रोलियम और नेचुरल गैस विभाग की तरफ से यह बताया गया कि एफसीई के गोदामों चावल की सरप्लस मात्रा को हैंड सैनिटाइजर बनाने के लिए दिया जा सकता है। इसके लिए नेशनल पॉलिसी ऑन बॉयोफ्यूल 2018 का जिक्र किया गया। पॉलिसी के पैरा 5.3 में जिक्र है कि यदि कृषि और किसान कल्याणा विभाग इस अनुमान पर पहुंचता है कि किसी एग्रीकल्चर वर्ष में खाद्यान्नों का उत्पादन अनुमान से ज्यादा है तो सरपल्स खाद्यान्न को नेशनल बॉयोफ्यूल कोआर्डिनेश कमेटी की संस्तुति के आधार पर एथेनॉल बनाने के लिए दे सकता है।
20 अप्रैल को इस संबंध में एनबीसीसी की बैठक पेट्रोलियम मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान की अध्यक्षता में हुई। उस बैठक में फैसला किया गया कि एफसीआई के गोदामों में चावल अतिरिक्त मात्रा में उपवलब्ध है लिहाजा उसे एथेनॉल आधारित हैंड सैनिटाइजर के उत्पादन के लिए दिया जा सकता है। अब यहां सवाल है कि आरोप लगाने से पहले क्या राहुल गांधी को यह जानकारी नहीं थी। अगर उन्हें जानकारी नहीं थी तो कोई पार्टी सतही आरोप लगा सकती है. और यदि उन्हें यह सबकुछ पता था क्या वो सिर्फ गरीबों की गरीबी का मु्ददा बनाकर राजनीति कर रहे हैं।
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