सदियों पुराना है मास्‍क का इतिहास, प्रदूषण, जहरीली गैस के साथ-साथ महामारी से बचाने में भी कारगर

कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव में मास्‍क को काफी अहम समझा जा रहा है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि इसका इस्‍तेमाल कब से हो रहा है और इसका इतिहास कितना पुराना है।

सदियों पुराना है मास्‍क का इतिहास, प्रदूषण, जहरीली गैस के साथ-साथ महामारी से बचाने में भी कारगर
सदियों पुराना है मास्‍क का इतिहास, प्रदूषण, जहरीली गैस के साथ-साथ महामारी से बचाने में भी कारगर  |  तस्वीर साभार: AP, File Image

नई दिल्‍ली : दुनियाभर में कोरोना के कहर के बीच मास्‍क इन दिनों 'न्‍यू नॉर्मल' हो गया है, जिसे महामारी से बचाव में कारगर समझा जा रहा है। हाल ही में एक अध्‍ययन में बताया गया है कि उचित तरीके से बनाया गया कई परतों वाला मास्क इसे पहनने वाले व्यक्ति से निकलने वाले 84 प्रतिशत कणों को रोक देता है, इस तरह का मास्क पहने दो लोग संक्रमण के प्रसार को 96 फीसदी तक कम कर सकते हैं।

मास्‍क की अहमियत को बताने वाला ऐसे और भी कई रिसर्च सामने आ चुके हैं। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि मास्‍क का इतिहास कितना पुराना है? मास्‍क का इतिहास सदियों पुराना है, जो वर्षों से इंसान को प्रदूषण, जहरीली गैस और महामारियों से बचाता रहा है। बताया जाता है जहरीली गैस, प्रदूषण, महामारी, संक्रमण से बचाव के लिए मास्क का इस्तेमाल सैकड़ों साल से होता आ रहा है।

बीमारी, प्रदूषण से बचाने में कारगर

मास्‍क का इस्‍तेमाल 14वीं सदी में ब्लैक डेथ प्लेग के दौर में भी खूब हुआ, जो यूरोप से फैला था। खास तौर पर डॉक्‍टर्स विशेष किस्‍म की मास्‍क का इस्‍तेमाल करते थे। 18वीं सदी में जब औद्योगिक क्रांति हुई, तब मास्‍क ने इंसानों को फैक्‍ट्र‍ियों से निकलने वाली जहरीली गैसों से बचाया। मास्‍क ने घरों में कोयले से जलने वाले चूल्‍हों के निकलने वाले धुएं से भी राहत दी।

औद्योगिक क्रांति के बाद यूरोप के कई देशों में 19वीं सदी तक प्रदूषण का स्‍तर काफी बढ़ गया था। प्रदूषण के स्‍तर में बढ़ोतरी के लिए यातायात सहित कई कारणों को जिम्‍मेदार ठहराया गया। डीजल-पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड, बारीक रबर के कण और धातु के महीन कण लोगों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य संकट पैदा कर रहे थे। ऐसे में इन सबसे बचाव के लिए लोग एंटी-पॉल्यूशन मास्क का इस्‍तेमाल करने लगे।

विश्‍वयुद्ध के दौरान भी हुआ था इस्‍तेमाल

दुनिया में प्रथम और द्वितीय विश्‍वयुद्ध के दौरान भी मास्‍क का खूब इस्तेमाल हुआ। प्रथम विश्व युद्ध जब समाप्ति की ओर था, 1918 में स्पेनिश फ्लू महामारी शुरू हो गई थी। इससे बचाव के लिए डॉक्टर्स, नर्स और अन्‍य हेल्‍थवर्कर्स के लिए मास्‍क पहनना जरूरी हो गया था। आम लोगों को भी मास्‍क इस्‍तेमाल करने की सलाह दी गई। उस वक्‍त का हाल कुछ उसी तरह का था, जैसा कि आज कोविड-19 महामारी के कारण पैदा हुआ है।

मास्‍क का इस्‍तेमाल द्वितीय विश्‍वयुद्ध के दौर में भी बढ़ गया था, जब रासायनिक हथियारों के इस्‍तेमाल से हवा दमघोंटू हो गई थी। उस वक्‍त कई देशों की सरकारों ने अपने सैनिकों और लोगों से जहरीली गैस से बचाव के लिए मास्‍क पहनने को कहा था। आज एक बार फिर कोरोना वायरस महामारी के दौर में इसे अहम समझा जा रहा है और विशेषज्ञ लोगों से लगातार मास्‍क पहनने तथा सोशल डिस्‍टेंसिंग के नियमों का पालन करने की अपील कर रहे हैं।

क्‍या कहता है हालिया रिसर्च

अमेरिका के जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों समेत विशेषज्ञों ने अपने हालिया अध्‍ययन में कहा है कि मास्क बनाने में इस्तेमाल सामग्री, इसकी कसावट और इसमें इस्तेमाल की गई परतें कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रसार को रोकने में प्रभावी हो सकती हैं। 'एयरोसोल साइंस एंड टेक्नोलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में विभिन्न किस्म के पदार्थों से अत्यंत छोटे कणों के निकलने के प्रभाव के बारे में जानने का प्रयास किया गया।

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