कोविड-19 को लेकर नया खुलासा, ठोस सतहों पर कई घंटों, कई दिन तक ऐसे जिंदा रहता है ये घातक वायरस

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Updated Nov 25, 2020 | 21:00 IST

पूरी दुनिया के लिए 'जी का जंजाल' बन चुका कोरोना वायरस पतली तरल परतों से चिपककर कई घंटों और कई दिनों तक जिंदा रहता है। आईआईटी-बंबई के अनुसंधानकर्ताओं ने इस वायरस को लेकर नई जानकारी सामने लाई है।

कोविड-19 को लेकर नया खुलासा, ठोस सतहों पर कई घंटों, कई दिन तक ऐसे जिंदा रहता है ये घातक वायरस
कोविड-19 को लेकर नया खुलासा, ठोस सतहों पर कई घंटों, कई दिन तक ऐसे जिंदा रहता है ये घातक वायरस  |  तस्वीर साभार: AP, File Image

मुंबई : आईआईटी-बंबई के अनुसंधानकर्ताओं के एक अध्ययन में कहा गया है कि कोरोना वायरस पतली तरल परतों से चिपककर सतह पर जीवित बना रहता है। इससे इस बारे में जानकारी मिलती है कि दुनियाभर के लिए 'जी का जंजाल' बना यह घातक विषाणु ठोस सतहों पर कई घंटे और कई दिन तक कैसे अस्तित्व में बना रहता है।

अध्ययन रिपोर्ट पत्रिका 'फिजिक्स ऑफ फ्लूइड्स' में प्रकाशित हुई है। इसमें नए कोरोना वायरस के लंबे समय तक जीवित बने रहने के कारकों संबंधी जानकारी दी गई है। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि विभिन्न सतहों पर कोरोना वायरस के जीवित बने रहने संबंधी जानकारी कोविड-19 पर नियंत्रण में मदद कर सकती है। उन्होंने कहा कि हालिया प्रयोगों में पाया गया है कि सांस के जरिए निकले सामान्य कण जहां कुछ सेकेंड के भीतर सूख जाते हैं, वहीं सार्स-कोव-2 वायरस के अस्तित्व में रहने का मामला घंटों के क्रम से जुड़ा है।

...इसलिए घंटों जीवित रह पाता है कोरोना वायरस

अनुसंधानकर्ताओं ने उल्लेख किया कि किस तरह नैनोमीटर- तरल परत 'लंदन वान डेर वाल्स फोर्स' की वजह से सतह से चिपकती है और इसी कारक की वजह से कोरोना वायरस घंटों तक जीवित रह पाता है। 'लंदन वान डेर वाल्स फोर्स' परमाणुओं और अणुओं के बीच दूरी निर्भरता प्रतिक्रिया है जिसका नाम डच वैज्ञानिक जोहनेस डिडेरिक वान डेर वाल्स के नाम पर रखा गया है।

बल के इस सिद्धांत में परमाणुओं, अणुओं, सतहों और अन्य अंतर-आण्विक बलों के बीच आकर्षण-विकर्षण शामिल है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बंबई के प्रोफेसर अमित अग्रवाल ने कहा कि पतली परत संचरण का हमारा मॉडल दिखाता है कि सतह पर पतली तरल परत का मौजूद बना रहना या सूखना घंटों और दिनों के क्रम पर निर्भर है जो विषाणु सांद्रण के मापन के समान ही रहा है।

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