25 जून का दिन आते ही 46 साल पहले का वो दृश्य नजर आता है जब एकाएक विपक्षी दलों के नेताओं को जेलों में ठूसा जाने लगा। प्रेस की आजादी पर कड़ा प्रहार किया गया। जो लोग सरकार की हां में हां नहीं मिलाते थे उनकी मंजिव पहले से जेल तय कर दी गई थी। आजादी की लड़ाई के दौरान जिन लोगों ने अपनी जवानी कुर्बान कर दी वो तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को षड़यंत्रकारी नजर आने लगे थे। ऐसे में यह विचार कौंधता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि इंदिरा गांधी को लगने लगा था कि अब अनुच्छेद 352 लागू करने का समय आ चुका है।
आपातकाल के उपबंधों पर नहीं थी एका
देश की आजादी के बाद संविधान सभा में जब कुछ खास उपबंधों पर चर्चा हो रही थी तो विवाद और विचार आपातकाल के उपबंध को लेकर हुआ। ज्यादातर लोगों का मानना था कि जिस दमनकारी सत्ता के खिलाफ लड़ाई लड़ कर हम सब खुली हवा में सांस ले रहे हैं क्या उन सांसों को फिर से कैद करने के लिए आपातकाल के उपबंध हथियार नहीं बनेंगे। इस सवाल के जवाब में तर्क दिया गया है अंग्रेज सिर्फ इस देश के दोहन के लिए आए थे। उन्हें भारतीयों से रीत प्रीत नहीं थी। लेकिन अब जब हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं और हम लोगों में से ही कोई शासन करेगा तो वो शासक नहीं बल्कि सेवक के भाव से करेगा। लेकिन वो मिथ 1975 में आकर टूट गया।
आपातकाल के 12 बड़े तथ्य
आज भी आपातकाल पर होता है वाद विवाद
लोकतंत्र की मजबूती के लिए आपात उपबंधों को अच्छा नहीं माना जाता है। डॉ अंबेडकर ने कहा का कि संविधान का कोई भी उपबंध खराब नहीं है। लेकिन जब कार्यपालिका में बैठ हुए शख्स का दिमाग निरंकुश हो जाएगा तो वो लोकतंत्र के लिए काला अध्याय ही साबित होगा। करीब 46 साल बाद भी इस बात पर चर्चा होती है कि क्या इंदिरा गांधी के पास उसके अलावा कोई रास्ता नहीं था। हर एक राजनीतिक दल जब सत्ता में रहते हैं तो वो अपने सभी कृत्यों का विधि सम्मत ठहराते हैं। लेकिन विपक्ष में रहने के दौरान उन्हें सरकारी कारनामों में फांसीवाद की झलक दिखने लगती है।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।