नई दिल्ली: अयोध्या राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है। अपने ऐतिहासिक फैसले में करीब 130 साल से चले आ रहे इस संवेदनशील विवाद का हल कर दिया। कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करते हुये केन्द्र सरकार को निर्देश दिया। वहीं अदालत ने ‘सुन्नी वक्फ बोर्ड’ को मस्जिद के निर्माण के लिये पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का आदेश दिया।
लेकिन इस फैसले से एक शख्स की चर्चा खूब हो रही है और वो शख्स है गोपाल सिंह विशारद का। इस लंबी कानूनी प्रक्रिया में सर्वोच्च अदालत ने गोपाल सिंह विशारद को वहां पूजा करने का अधिकार दिया लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि गोपाल सिंह अब इस दुनिया में नहीं है और उनकी मौत को 33 साल बाद आया है।
कौन थे गोपाल सिंह विशारद?
इस मामले में चार सिविल मुकदमें दायर किए गए थे जिसमें से एक गोपाल सिंह विशारद ने भी किया था। गोपाल सिंह के निधन के बाद उनके कानूनी वारिसों ने उनके केस की पैरवी की। दरअसल 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद हिंदू महासभा ने 1950 में फैजाबाद कोर्ट में मुकदमा दायर करते हुए रामलला के दर्शन और पूजन का व्यक्तिगत अधिकार मांगा था। विशारद ने मुकदमा दायकर करते हुए कहा था कि उन्हें दर्शन और पूजन का अधिकार दिया जाए।
1986 में विशारद का देहांत हो गया। उनकी मौत के बाद उनके बेटे ने उनका प्रतिनिधित्व किया और वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे विशारद की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और बाद में रंजीत सिंह ने बहस की थी और मांग करते हुए कहा था कि विशारद रामलला का उपासक है और पूजा करना उसका कानूनी अधिकार है जो जारी रहना चाहिए। शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर दिए अपने फैसले के साथ-साथ गोपाल सिंह विशारद को भी पूजा का अधिकार दे दिया।
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