GOVT VS FARMER: क्या किसान आंदोलन जनवरी 4 को खत्म हो जाएगा?​

देश
बीरेंद्र चौधरी
बीरेंद्र चौधरी | सीनियर न्यूज़ एडिटर
Updated Jan 01, 2021 | 15:19 IST

किसान पिछले एक महीने से भी अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर अपना आंदोलन कर रहे हैं। छठे दौर की बातचीत के बाद अब कुछ हल निकलने के आसार दिख रहे हैं।

GOVT VS FARMER Will the farmers agitation end on January 4
GOVT VS FARMER: क्या किसान आंदोलन जनवरी 4 को खत्म हो जाएगा? 
मुख्य बातें
  • नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आंदोलन अभी तक है जारी
  • किसान संगठनों और सरकार के बीच हो चुकी है 6 दौर की बातचीत
  • 30 दिसम्बर 2020 को 6 वें दौर की बातचीत में सरकार और किसान नेताओं के बीच दो मुद्दों पर बनी सहमति

नई दिल्ली: भारत में पिछले 35 दिनों से किसान आंदोलन जारी है। पहली बार 30 दिसम्बर 2020 को 6 वें दौर की बातचीत में  सकारात्मक सन्देश और बॉडी लैंग्वेज दोनों ही देखने को मिलाी। इस दौरान किसान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल के साथ चाय पीते हुए नजर आए और साथ में मंत्रियों ने लंगर का खाना भी खाया। माहौल को सौहार्दयपूर्ण बनाने के लिए मंत्रियों ने किसान नेताओं द्वारा लंगर से लाया हुआ  भोजन किया, तो दूसरी तरफ किसान नेताओं ने पहली बार सरकारी चाय भी पी। 5  घंटों  की वार्ता के बाद भारत सरकार के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि बातचीत सौहार्दयपूर्ण माहौल में हुई। बातचीत के 4  मुद्दे थे जिसमें से 2 मुद्दे  पर  सकारात्मक परिणाम रहे और बचे 2 मुद्दे पर अगले 7 वें दौर यानि 4 जनवरी 2021 को वार्ता होगी। साथ ही किसान नेताओं ने भी तकरीबन सरकारी बात को ही दोहराया ।

सवाल उठता है कि आखिर ये चार मुद्दे हैं क्या?

पहला मुद्दा , भारत सरकार द्वारा बनाए गए 3  कृषि कानूनों को वापस लिया जाए क्योंकि ये किसानों के हित में नहीं है और कृषि के निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं। इनसे होल्डर्स और बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा।

दूसरा मुद्दा ,  एक विधेयक के जरिए किसानों को लिखित में आश्वासन दिया जाए कि एमएसपी और मंडी  सिस्टम खत्म नहीं होगा।

तीसरा मुद्दा , किसान केंद्र सरकार के बिजली कानून 2003 की जगह लाए गए बिजली (संशोधित) बिल 2020 का विरोध कर रहे हैं।   प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि इस बिल के जरिए बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण किया जा रहा है। इस बिल से किसानों को सब्सिडी या फ्री बिजली सप्लाई की सुविधा खत्म हो जाएगी।

चौथा मुद्दा , एक प्रावधान को लेकर है जिसके तहत खेती का अवशेष यानि पराली जलाने पर किसान को 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।  किसान इसे भी खत्म करने की मांग कर रहे हैं ।  साथ ही किसानों का ये भी मांग  हैं कि पंजाब में पराली जलाने के चार्ज लगाकर गिरफ्तार किए गए किसानों को छोड़ा जाए। 

यानि  छठे दौर की वार्ता में सरकार और किसानों के बीच तीसरे और चौथे मुद्दे पर सहमति बन गयी है।  बचे पहले और दूसरे मुद्दे पर वार्ता होगी 4 जनवरी 2021 को। 

अब समझिए बचे 2 मुद्दे में पेंच क्या है ?

पहला मुद्दा , किसानों की मांग है कि सरकार तीनों केंद्रीय कृषि कानून वापस ले या इसे निरस्त करे।  क्या सरकार इन  तीनों कानून को वापस लेगी? सरकार के बॉडी लैंग्वेज से तो ऐसा नहीं लगता है।  हाँ सरकार कुछ संशोधन करने को  तैयार जरूर है जैसा कि सरकार ने संकेत भी दिया है। इसी जुड़ा सवाल है कि क्या किसान संशोधन मात्र से संतुष्ट हो जाएंगे ? इसका उत्तर तो 4 जनवरी की वार्ता के गर्भ में छिपा है जो उसी तारीख को पता चलेगा। 

दूसरा मुद्दा , किसानों की मांग है कि एमएसपी को कानूनी दर्जा दिया जाए क्योंकि किसानों का मानना है कि सरकार धीरे धीरे एमएसपी की व्यवस्था को ख़त्म कर देगी।  केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि सरकार एमएसपी को ख़त्म नहीं करेगी बल्कि पहले की तरह ही जारी रहेगी।  बल्कि मंत्री  ने ये कहा है कि सरकार एमएसपी  को लेकर लिखित गारंटी देने तक तो तैयार है लेकिन सरकार इसे क़ानूनी अमलीजामा पहनाने को तैयार नहीं दिख रही है। इसी से जुड़ा सवाल है कि क्या किसान लिखित गारंटी से मान जाएंगे? इसका उत्तर भी 4 जनवरी को ही मिलेगा। 

अब सवाल उठता है कि क्या किसान आंदोलन जनवरी 4 को खत्म हो जाएगा ? इसका उत्तर है: पहला,  यदि सरकार और किसान 4 मुद्दे में से 2 मद्दे पर सहमति बना सकते हैं तो बचे 2 मुद्दे पर सहमति क्यों नहीं बन सकती। दूसरा,  दोनों पक्षों को लचीला व्यवहार रखना होगा अन्यथा सारे प्रयास व्यर्थ हो जायेंगे। तीसरा , दोनों पक्षों  को झुकने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि बातचीत का मकसद समझौता है और समझौता तब होगा जब दोनों पक्ष अपनी जगह से थोड़ा दाएँ बाएँ खिसकेंगे। एक कहावत है कि ताली दोनों हाथों  से बजती है एक हाथ से नहीं। इसीलिए दोनों हाथों को ताली बजाने  के लिए तैयार रखना होगा। चलिए इंतज़ार करते हैं 4 जनवरी का और देखते हैं कि किसान आंदोलन ख़त्म होता है या नहीं। 

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