नई दिल्ली। मैं लालकिला हूं, मेरा अस्तित्व 17वीं सदी से जुड़ा हुआ है। हिंदुस्तान पर मुगलिया बादशाह शाहजहां का राज था जिसे स्वर्णकाल माना जाता था। मेरे आंगन में षड़यंत्र रचे गए बादशाहों को गिराने और उठाने का और एक दिन मैं गोरों के हाथ यानि अंग्रेजी साम्राज्य की गाथा का गवाह बन गया। मेरे परकोटे से अंग्रेजी हुकुमत अपने बुलंदी का संदेश देती थी। लेकिन सच ही कहा गया है कि सत्ता और ताकत एक जैसी सदैव के लिए बनी रहती है,जैसे मौसम बदलता है उसी तरह सरकारें भी बदल जाती हैं।
17वीं सदी से आज तक की सफर गाथा
मैं बादशाहत की गाथा का भी गवाह हूं तो एक ऐसी सत्ता का भी गवाह बना जिसके बारे में कहा जाता था कि सूरत कभी अस्त नहीं होता। मैंने घात प्रतिघात के साथ हिंदुस्तान की विकास गाथा का गवाह बना। अंग्रेजों के शासन में वैसे तो मैं विद्रोही इमारत के तौर पर देखा जाता था। लेकिन अंग्रेजों को भी पता था कि मेरा वजूद हिंदुस्तानियों के दिल और दिमाग में किस तरह कायम है।
परकोटे के लिए आंगन से सियासत
अंग्रेजी शासन के खिलाफ जब संघर्ष की शुरुआत हुई तो मैं मूकदर्शक गवाह बना। आजादी के मतवाले अपनी धून में मस्त थे मकसद सिर्फ इतना था कि हिंदुस्तान को किसी तरह से अंग्रेजों की दास्तां से आजाद कराना था। एक लंबे संघर्ष के बाद वो दिन आया जब 15 अगस्त 1947 को मेरे परकोटे से यूनियन जैक उतर गया और तिरंगा लहराने लगा। मेरा महत्व सिर्फ यह नहीं है कि मैं सिर्फ एक इमारत हूं, मैं किसी सरकार की अतीत के अच्छे कामों और भविष्य की योजनाओं का गवाह बनता हूं।
1990 के दशक में भारत में कंप्यूटर क्रांति हुई और उसका असर देश के विकास पर साफ तौर पर दिखाई दिया। 1986 में नई शिक्षा नीति के जरिए ग्रामीण भारत में शिक्षा के स्तर को सुधारा गया तो 1990 के बाद का साल एक बड़े परिवर्तन का साक्षी बना जब भारत ने ग्लोबलाइजेशन और उदारीकरण के जरिए दिखा दिया कि वो मजबूत फैसले लेने में सक्षम है। साल 2000 के आते आते आईटी के क्षेत्र में जो विकास सामने नजर आया उससे साफ हो गया कि अमेरिका को भी भारत के टैलेंट को इस्तेमाल में लाना होगा। इसके साथ ही भारत में विश्वस्तरीय सड़कों की जाल बुनी गई जिसका जिसका फायदा वर्तमान पीढ़ी उठा रही है।
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