क्या है ये 'तब्लीगी जमात' जिससे जुड़ गया है 'कोरोना वायरस विवाद,निजामुद्दीन मरकज में होता क्या है, जानें ये सब

दिल्ली में तब्लीगी जमात का नाम इस वक्त कोरोना वायरस फैलाने के लिए प्रमुखता से सामने आ रहा है, दरअसल इसका काम विशेषकर इस्लाम के मानने वालों को धार्मिक उपदेश देना होता है।

Tablighi Jamaat
तब्लीग का काम करते समय जमात के सदस्यों को छोटे-छोटे समूहों में बांट दिया जाता है 

नयी दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस से हुई कुल 39 में से एक चौथाई मौतों को नयी दिल्ली के निजामुद्दीन में इस्लामी प्रचारकों के आयोजन से जोड़ा रहा है, जिसके बाद तब्लीगी जमात के आयोजक विभिन्न दिशा-निर्देशों के कथित उल्लंघन को लेकर अधिकारियों के निशाने पर आ गए हैं। 

तब्लीगी जमात क्या है? तब्लीगी जमात की शुरुआत लगभग 100 साल पहले देवबंदी इस्लामी विद्वान मौलाना मोहम्मद इलयास कांधलवी ने एक धार्मिक सुधार आंदोलन के रूप में की थी। 

पूरी तरह से गैर-राजनीतिक इस जमात का मकसद पैगंबर मोहम्मद के बताये गए इस्लाम के पांच बुनियादी अरकान (सिद्धातों) कलमा, नमाज, इल्म-ओ-जिक्र (ज्ञान), इकराम-ए-मुस्लिम (मुसलमानों का सम्मान), इखलास-एन-नीयत (नीयत का सही होना) और तफरीग-ए-वक्त (दावत व तब्लीग के लिये समय निकालना) का प्रचार करना होता है।

तब्लीगी जमात के इज्तिमे में शिरकत करने वालों में फिलिपीन के नागरिक समेत अबतक 10 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जा चुके हैं, जबकि मरकज में ठहरे 285 लोगों को संदिग्ध रोगी मानकर अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

दुनियाभर में एक प्रभावशाली आध्यात्मिक आंदोलन के रूप में मशहूर जमात का काम अब पाकिस्तान और बांग्लादेश से होने वाली गुटबाजी शिकार हो गया है।

कैसे काम करती हैं तब्लीगी जमातें? 
दक्षिण एशिया में मौटे तौर पर तब्लीगी जमातों से 15 से 25 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। जमात सदस्य केवल मुसलमानों के बीच काम करते हैं और उन्हें पैगंबर मोहम्मद द्वारा अपनाए गए जीवन के तरीके सिखाते हैं।

तब्लीग का काम करते समय जमात के सदस्यों को छोटे-छोटे समूहों में बांट दिया जाता है। हर समूह का एक मुखिया बनाया जाता है, जिसे अमीर कहते हैं। ये समूह मस्जिद से काम करते हैं। चुनिंदा जगहों पर मुसलमानों की बीच जाकर उन्हें इस्लाम के बारे में बताते हैं।

कोरोना और तब्लीगी जमात का संबध
मार्च की शुरुआत में निजामुद्दीन इलाके में स्थित बंगले वाली मस्जिद में जमातियों का इज्तिमा हुआ। यहीं पर जमात का मरकज यानी केन्द्र स्थित है। बताया जा रहा है कि इस इज्तिमे में इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, नेपाल, म्यांमा, बांग्लादेश, श्रीलंका और किर्गिस्तान से आए 800 के अधिक विदेशी नागरिकों ने शिरकत की।

सरकार के अनुसार एक जनवरी के बाद से 70 देशों से 2 हजार से अधिक विदेशी जमात की गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिये भारत आ चुके हैं। इनमें से एक हजार से अधिक विदेशी लॉकडाउन के चलते निजामुद्दीन में ही फंस गए। इनमें से कई के पास छह महीने का पर्यटन वीजा है।

विवाद तब खड़ा हुआ जब इज्तिमे में शिकरत कर तेलंगाना जा रहे एक इंडोनेशियाई नागरिक की मौत हो गई। वह 18 मार्च को कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया । गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को प्रचारकों को लेकर 21 मार्च को सतर्क किया।

जमात का दावा है कि निजामुद्दीन मरकज में लगभग 2,500 सदस्य थे। 22 मार्च को अचानक जनता कर्फ्यू की घोषणा हुई, इसके बाद दिल्ली सरकार ने भी ऐसा ही कदम उठाया। आखिरकार प्रधानमंत्री ने 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान कर दिया, जिसके चलते बड़ी संख्या में जमात के सदस्य मरकज में ही फंसे रह गए जबकि 1,500 लोग वहां से चले गए।

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