नई दिल्ली : आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जारी संघर्ष पर भारत की करीबी नजर बनी हुई है। दोनों देशों के युद्ध में हवाई हमलों के ड्रोन फुटेज बड़ी संख्या में सामने आई है। हवाई हमलों में बड़ी संख्या ड्रोन के इस्तेमाल पर भारतीय सैन्य नेतृत्व की अपनी अलग सोच है। सेना के शीर्ष अधिकारियों का मानना है कि केवल यूएवी से लड़ाई नहीं जीती जा सकती लेकिन युद्ध या टकराव से पहले ड्रोन अहम भूमिका निभाते हैं।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक वायु सेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने इजरायली हारोप/हार्पी सुसाइड ड्रोन का हवाला देते हुए कहा कि भारत के पास भी इस तरह की क्षमता मौजूद है लेकिन यूएवी बहुत संवेदनशील होते हैं और संघर्ष के दौरान इनका इस्तेमाल हथियारों के मिश्रण के साथ होना चाहिए।
अभियान में सभी ड्रोन सफल नहीं हो पाते
रिपोर्ट के अनुसार, 'युद्ध के समय हमले के लिए जब ड्रोन का इस्तेमाल करना होता है तो इनकी भूमिका सीमित रखी जाती है। दुश्मन की जवाबी कार्रवाई में इनके नीचे गिरने की आशंका बनी रहती है जबकि अभियान में कुछ ही सफल हो पाते हैं। आपके पास ड्रोन के साथ अन्य हथियारों का मिश्रण होना चाहिए। केवल यूएवी के हमलों से लड़ाई नहीं जीती जा सकती।'
टकराव या संघर्ष से पहले ड्रोन की भूमिका अहम
वायु सेना प्रमुख ने कहा आर्मेनिया-अजरबैजान का टकराव देखने में दिलचस्प है। उन्होंने कहा कि इस युद्ध को कवर करने में मीडिया की भूमिका को करीबी से देखा जा रहा है। भदौरिया ने कहा कि ड्रोन्स की अपनी एक सीमा होती है लेकिन किसी संघर्ष से पहले उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।
अमेरिका से ड्रोन खरीदना चाहता है भारत
बता दें कि भारत तीन अरब डॉलर की लागत से 20 एमक्यू9 यूएवी खरीदने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत कर रहा है। इस पर वायु सेना प्रमुख ने कहा कि इस तरह के रक्षा सौदे से पहले अपनी वित्तीय हालत देखने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'ड्रोन्स की लागत एक मुद्दा है लेकिन क्षमता की अपनी एक कीमत होती है। इस रक्षा सौदे पर आगे बढ़ने से पहले हम इन सभी पहलुओं को देखेंगे।'
आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जारी है युद्ध
आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच 27 सिंतबर से शुरू हुए टकराव ने युद्ध का रूप ले लिया है। दोनों देशों के बीच 1991 से 1994 के बीच हुई लड़ाई में करीब 30,000 लोगों की जान गई। नगोरनो-काराबाख क्षेत्र अजरबैजान के तहत आता है लेकिन इस पर स्थानीय आर्मीनियाई बलों का नियंत्रण है। यह 1994 में खत्म हुए युद्ध के बाद इस इलाके में सबसे गंभीर संघर्ष है।
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