केंद्र सरकार द्वारा सितंबर, 2020 में अमल में लाए गए 3 कृषि कानूनों पर किसानों के आंदोलन का हल निकालने के लिए , सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त की गई कमेटी के सदस्य और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल जयसिंग घनवट ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की अपील की है। घनवट का कहना है कि कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किसानों के हितों के लिए जो सिफारिशें की हैं वह सरकार को भेजी जाएं और इसे सार्वजनिक किया जाए, क्योंकि इसी उद्देश्य के लिए कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी ने 19 मार्च 2021 को अपनी सिफारिशें सौंप दी है। घनवट का मानना है, रिपोर्ट को जितनी जल्द सार्वजनिक किया जाएगा और उस पर चर्चा होगी, उतनी जल्द किसान आंदोलन का समाधान निकलेगा। इस मुद्दे पर अनिल जयसिंग घनवट से टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल ने बात की है। पेश हैं उसके प्रमुख अंश-
पत्र लिखने की जरूरत क्यों पड़ी ?
हमारी कमेटी का गठन इसलिए किया गया था क्योंकि जो किसान आंदोलन सड़कों पर चल रहा है। वह जल्द से जल्द खत्म किया जाय। किसानों को नए कानून को लेकर जो चिंताएं थी, उसे सुनकर एक ऐसी रिपोर्ट तैयार की जाय, जो सभी की चिंताओं को दूर कर सके। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2 महीने का समय दिया था। इसी आधार पर कमेटी ने 19 मार्च 2021 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट सौंपे हुए 5 महीने से ज्यादा का समय हो चुका है । इधर किसान आंदोलन लगातार बढ़ता जा रहा है। किसान सड़कों पर बैठें हैं, कोई तो हल निकलना चाहिए। जिस मकसद से कमेटी बनाई गई थी, वह आज पूरा नहीं हो पा रहा है। रिपोर्ट पर सुनवाई होनी चाहिए। देश मुश्किल में हैं, किसान मुश्किल में है। उन्हें कितने दिन बैठाकर रखा जा सकता है। नए कानूनों के अमल पर कोर्ट ने स्टे लगा कर यह कमेटी बनाई थी। इस मामले को गंभीरता को देखते हुए इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। अगर कमेटी के सुझावों पर चर्चा नहीं होगी, संबंधित पक्षों की चिंताओं को दूर नहीं किया जाएगा, तो कृषि सुधार नहीं हो पाएंगे। आज भी स्टॉक लिमिट लग रही है। आयात-निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। तो फिर सुधारों का मकसद बेमानी हो जाएगा।
पत्र लिखने के बाद कोई जवाब आया ?
अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। कमेटी की सिफारिशों की जहां तक बात है तो वह गोपनीय है। चूंकि मामला न्यायालय में है,इसलिए उसके बारे में नहीं बताया जा सकता है। इसलिए मैं कह रहा हूं कि रिपोर्ट सौंपने के बाद आगे की कार्रवाई होनी चाहिए। तभी इस मसले का हल, जल्द से जल्द निकल पाएागा।
संयुक्त किसान मोर्चा कानून रद्द करने की मांग कर रहा है ?
देखिए पंजाब-हरियाणा पूरा देश नही है। देश के दूसरे हिस्सों के किसानों की क्या राय है, उसका भी तो प्रतिनिधित्व होना चाहिए। जिन कानूनों की वजह से लाखों किसानों ने आत्महत्या की है, वहीं कानून रहेंगे तो किसान मरते रहेंगे। इस समय रिफॉर्म की जरूरत है, दुनिया कहां जा रही है, हम क्या वहीं अटके रहेंगे। हम पिछले 40 सालों से मार्केट फ्रीडम की मांग कर रहे हैं। हम सरकार के रूख का समर्थन नहीं कर रहे हैं, सरकार हमारी मांग का समर्थन कर रही है। लेकिन कानून में कुछ खामियां हैं। नए कानूनों में कानूनी प्रक्रिया, आवश्यक वस्तु अधिनियम एक्ट को लेकर कुछ मुद्दे हैं, जो हमें मंजूर नहीं है, उन्हें दूर करना चाहिए। लेकिन इस आधार पर कृषि सुधारों का विरोध नहीं किया जाना चाहिए।
क्या MSP की गारंटी जरूरी है ?
देखिए एमएसपी पर केवल गेहूं और चावल की ही ज्यादा से ज्यादा खरीद क्यों होनी चाहिए? क्या दूसरी फसल उगाने वाले किसान नहीं है। जहां तक सभी फसलों को एमएसपी पर खरीदने की बात है। तो हमें इस हकीकत को समझना चाहिए, क्या ऐसा करने के लिए हमारे पास इंफ्रास्ट्रक्चर है या उतना पैसा है ? ऐसे में अगर सभी फसलों को एमएसपी पर खरीदा जाएगा, तो पूरा बजट ही उसमें खर्च हो जाएगा। फिर बाकी चीजों के लिए पैसा कहां से आएगा। दूसरी बात यह समझनी चाहिए देश को 41 लाख टन बफर स्टॉक की जरूरत और गोदामों में 110 लाख टन स्टॉक है। अनाज गोदामों में सड़ रहा है। क्योंकि उनको रखने के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर नही है। खराब अनाज एल्कोहल फैक्ट्रियों को कम कीमत पर बेचा जा रहा है। टैक्सपेयर का पैसा बर्बाद हो रहा है।
RSS का किसान संगठन भारतीय किसान संघ लाभ कारी मू्ल्य की मांग कर रहा है ?
देखिए उन्हें अर्थशास्त्र की समझ नही हैं। जिस फॉर्मूले की वह बात कर रहे हैं, उससे क्या खरीद की जा सकती है? पिछले साल कपास , अरहर , मूंग, सोयबाीन एमएसपी से ज्यादा कीमत पर बिके हैं। उन फसलों की कीमतें कब गिरी जब सरकार ने दखल दिया। अगर सरकार का हस्तक्षेप हट जाय और किसानों को मुक्त बाजार मिल जाए तो फसलों के दाम कभी बहुत नीचे नहीं जाएंगे। सरकार को केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिन फसलों का उत्पादन कम होता है, उनके आयात मूल्य एमएसपी के उपर रहने चाहिए। इसके अलावा किसी दखल की जरूरत नहीं है।
क्या संयुक्त किसान मार्चे राजनीति कर रहा है ?
किसान नेता अड़ियल रवैया अपनाए हुए है, उसे बदलना चाहिए। किसान कहते हैं कि कानून पर चर्चा नहीं करनी है। तो उन्हें कमेटी की रिपोर्ट पर तो चर्चा करनी चाहिए। उसमें जो अच्छा है उसे स्वीकार करना चाहिए, जो गलत है उसमें सुधार करना चाहिए। इसलिए रिपोर्ट सार्वजनिक होनी चाहिए। एक चीज और समझनी चाहिए कि जितने किसान विरोध करने के लिए बैठे हैं, उससे ज्यादा सुधार का समर्थन करने वाले किसान अपने खेतों में है। लेकिन हम किसान-किसान के बीच झगड़ा नहीं चाहते हैं। जहां तक राजनीति की बात है तो हमें नहीं पता है कि वह क्या कर रहे हैं, लेकिन किसी को भी किसानों की ताकत का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
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