नई दिल्ली: अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद, जम्मू और कश्मीर में एक बार फिर सियासी पारा गरम हो रहा है। इस बार परिसीमन आयोग वजह बना है। आयोग ने जम्मू और कश्मीर विधानसभा में 7 सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। इनमें 6 जम्मू और 1 कश्मीर में बढ़ाए जानें का प्रस्ताव है। लेकिन इस प्रस्ताव ने राज्य के पारंपरिक दलों में बेचैनी खड़ी कर दी है। उन्होंने भाजपा पर यह आरोप लगा दिया है कि वह हिंदुओं के प्रभाव वाले जम्मू में सीटें बढ़ाकर सत्ता में आना चाहती है।
संशोधन के बाद जम्मू और कश्मीर विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी। जिसमें 90 सीटों में से 43 जम्मू में होंगी, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी। जिसमें से 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान है। जबकि 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव है।
30 साल से लंबित थी मांग
अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित करने का सबसे ज्यादा फायदा गुज्जर, बकरवाल को मिलने वाला है। ट्राइबल रिसर्च एंड कल्चरल फाउंडेशन के जनरल सेक्रेटरी जावेदी राही ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि 30 साल से इस फैसले का इंतजार था। इसके जरिए गुज्जर और बकरवाल समुदाय के विकास में मदद मिलेगी। अभी तक जम्मू और कश्मीर में अनुसूचित जन जातियों के लिए सीटें आरक्षित नहीं थी।
साल 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में 14.93 लाख के करीब जनजातियां थी। जिसमें से लद्धाख होने के बाद संख्या कम हो जाएगी। नए जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग, बड़गाम, पुलवामा और कुपवाड़ा जिसमें गुज्जर और बकरवाला जनजातियां रहती है। जबकि लद्दाख क्षेत्र में बाल्टी, बेडा, बोट आदि जनजातियां रहती हैं।
राजनीतिक दल क्यों कर रहे है विरोध
नई सीटों के प्रस्ताव पर विपक्षी दलों ने कड़ा ऐतराज जताया है। नेशनल कान्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि मैं बेहद निराश हूं। कमीशन भाजपा का पॉलिटिकल एजेंडा पूरा कर रहा है। जो डेटा था उसको भी ध्यान में नहीं रखा गया। हमें ये कबूल नहीं है। पूर्व मंत्री और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चीफ सज्जाद गनी लोन ने कहा है कि परिसीमन कमीशन की सिफारिशें हमें कतई मंजूर नहीं हैं। ये उन लोगों के लिए बड़ा झटका है जो लोकतंत्र में यकीन करते हैं। ऐसी ही प्रतिक्रिया पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी दी है।
कश्मीर में देश के साथ नहीं हुआ था परिसीमन
असल में धारा 370 के पहले जम्मू और कश्मीर में लोकसभा सीटों के लिए परिसीमन का देश के दूसरे राज्यों के साथ किया जाने का अधिकार था। लेकिन राज्य में विधानसभाओं के परिसीमन का अधिकार जम्मू और कश्मीर के संविधान के अनुसार वहां के कानून के आधार पर किया जा सकता था। इस वजह से जब पूरे देश में 2002-2008 में परिसीमन हुआ तो राज्य में परिसीन की कवायद नहीं हो पाई। लेकिन अनुच्छेद 370 हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद अब यह अधिकार केंद्र के पास आ गया। जिसके आधार पर परिसीमन किया जाएगा। आयोग जनसंख्या प्रतिनिधित्व के आधार पर सीटों का निर्धारण करता है।
अभी किसका कितना प्रतिनिधित्व
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2001 की जनगणना के आधार पर राज्य की 44 फीसदी आबादी जम्मू क्षेत्र और करीब 55 फीसदी आबादी कश्मीर क्षेत्र में रहती है। और 2011 में भी आबादी की हिस्सेदारी में खास बदलाव नहीं आया है। इस आधार पर कश्मीर में 55 फीसदी आबादी के पास 46 सीटें हैं और जम्मू की 44 फीसदी आबादी के पास 37 सीटें हैं। नए सिफारिशों के बाद यह आकड़ां 47 और 43 का हो जाएगा।
क्या है सियासी मायने
लद्दाख अब केंद्र शासित प्रदेश हो चुका है, तो पीओके के अलावा जम्मू और कश्मीर में सरकार का भविष्य 90 सीटें तय करेंगी। और राज्य में जिसे 45 सीटें मिल जाएंगी। उसकी सरकार बन जाएगी। विपक्षी दलों को यही डर है कि भाजपा जम्मू क्षेत्र में मजबूत है, इसलिए वहां सीटें बढ़ने और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण देने से उसके लिए चुनावों में जीत हासिल करना आसाना हो जाएगा।
2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 28 सीटें, भाजपा को 25 सीटें, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलीं थी। भाजपा को केवल जम्मू क्षेत्र से जीत मिली थी, जहां हिंदुओं का प्रभाव है। वहीं उसे कश्मीर घाटी में एक भी सीट नहीं मिली थी। इसी तरह पीडीपी को केवल कश्मीर घाटी से सीटें मिली थी। साफ है कि भाजपा ने जम्मू की 37 में से 25 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं पीडीपी 46 में से 28 सीटें मिली थीं। ऐसे में नए बदलाव से विपक्षी दलों को अपना प्रभाव कम होने का डर सता रहा है।
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