नई दिल्ली: 15 जून 2021 को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने एक बड़ा ही निर्णायक फैसला लिया और मुख्यमंत्री कार्यालय से एक ट्वीट आया, ‘यानी आंध्र प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया है कि इसी साल 2021 -2022 के सत्र से राज्य के सभी सरकारी , प्राइवेट और गैर वित्त पोषित कॉलेजों में डिग्री की पढाई अनिवार्य रूप से इंग्लिश मीडियम में ही की जाएगी।’ माने दूसरा विकल्प नहीं होगा।
एक बात और जानना जरुरी है कि जगन सरकार कॉलेज ही नहीं बल्कि स्कूलों की पढाई का मीडियम भी इंग्लिश ही करना चाहती , इसके लिए आंध्र सरकार 2019 में बकायदा सभी स्कूलों को, अंग्रेज़ी पर शिफ्ट होने का आदेश दिया था लेकिन वो मामला सुप्रीम कोर्ट में क़ानूनी दाव पेंच में फंसा हुआ है। कहते हैं न कि यदि इरादा बुलंद हो तो आपको कोई रोक नहीं सकता और वही हुआ और अब सरकार ने राज्य के सभी कॉलेजों को आदेश दे दिया है कि इसी सत्र से पढाई का माध्यम अनिवार्य रूप से सिर्फ इंग्लिश होगा।
रिस्की फैसला
जगन सरकार ने आखिर ऐसा निर्णय क्यों लिया क्योंकि आंध्र प्रदेश की भाषा तेलुगु की जगह इंग्लिश को चुनना बड़ा निर्भीक और रिस्की निर्णय है। चूँकि लोकतंत्र है तो वोट की चिंता तो होनी चाहिए और क्यों न हो? सभी पार्टियों को होती है। बहरहाल ये निर्णय क्यों लिया लिया गया इसका उत्तर दे रहे हैं : आंध्र प्रदेश स्टेट काउंसिल ऑफ हायर एजुकेशन के चेयरमैन प्रो. हेमा चंद्रा रेड्डी का कहना है कि तेलुगू मीडियम वाले 60 से 70 फीसदी छात्र ग्रेजुएशन या कॉलेज लेवल पर ख़ुद से इंग्लिश मीडियम चुनते हैं। बाक़ी छात्र ऐसा नहीं कर रहे हैं, तो इसके पीछे सिर्फ उनकी झिझक है चाहे उसका कारण एक नई भाषा के सीखने का डर हो या कुछ और।’
प्रोफेसर रेड्डी का ये भी कहना है कि , ‘तमाम पीजी और रिसर्च प्रोग्राम्स (भाषा-आधारित शोध विषयों के अलावा) अंग्रेज़ी में हैं, ऐसे में अगर छात्र सिर्फ तेलुगू में पढ़ाई करते हैं, तो उसका सामना कैसे कर पाएंगे?’ हम नहीं चाहते कि छात्र रोज़गार के मामले में, सिर्फ तेलुगू प्रांतों तक सीमित होकर रह जाएं- हम चाहते हैं कि वो बाहर काम करें, हो सके तो विदेशों में भी. बल्कि आंध्र में हमारे पास पर्याप्त उद्योग नहीं हैं कि हम अपने युवाओं को समायोजित कर पाएं. बंटवारे के बाद हमने अपनी राजधानी भी तेलंगाना को गंवा दी।’
सर्वे में निकली ये बात
बल्कि आंध्र प्रदेश के एक अधिकारी का कहना है कि जब इस मुद्दे एक स्टडी कराई तो पता चला कि 90 प्रतिशत से अधिक पेरेंट्स, अंग्रेज़ी मीडियम के साथ सहज थे। इतना ही नहीं आंध्र प्रदेश सरकार ने इसी साल जनवरी में क्रैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के साथ एक समझौता किया है। इस समझौते के तहत कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और आंध्र प्रदेश के अरबन डेवलेपमेंट डिपार्टमेंट के बीच इंग्लिश प्रोफिशिएंसी में सुधार के लिए एक एग्रीमेंट हुआ है जिसमें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय अंग्रेजी लैंग्वेज प्रोफिशिएंसी में सुधार के लिए म्यूनिसिपल डिपार्टमेंट के तहत शिक्षकों और छात्रों को ट्रेनिंग दिया जाएगा।
विपक्ष की आलोचना
लेकिन जगन सरकार के इस निर्णय को विपक्षी दलों और आलोचकों ने निंदा करते हुए कहा कि पढाई के मीडियम का चुनाव छात्रों पर छोड़ दिया जाना चाहिए, कि वो अपनी शिक्षा का माध्यम किसे चुनते हैं। विपक्षी दल तेलुगु देशम का कहना है कि ‘क्या हमारे पास पर्याप्त टीचर-ट्रेनिंग कॉलेज हैं, जो अंग्रेज़ी में पढ़ाने वाले लेक्चरर्स की, इस नई मांग को पूरा कर सकें…जब तक इन सभी बाधाओं को, सार्थक तरीक़े से दूर नहीं किया जाएगा, तब तक रातों-रात अंग्रेज़ी मीडियम पर शिफ्ट होने का ये फैसला, ठीक से लागू नहीं किया जा सकेगा’. अन्य विपक्षी दल का कहना है कि बजाय मातृभाषा तेलुगु को बढ़ावा देने के एक विदेशी भाषा को बढ़ावा दिया जा रहा है।
बाजार की मांग हैं अंग्रेजी
अब हम आते हैं अपने सवाल पर और आप से सीधा पूछना चाहते हैं कि क्या आप अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाना चाहते हैं ? मैंने कोई सर्वे तो नहीं किया है लेकिन मेरा दृढ़ विश्वास है कि आज भारत में किसी माता पिता से पूछिए कि वो अपने बच्चे को किस मीडियम से पढ़ाना चाहते हैं तो आपको अधिकांश उत्तर मिलेगा इंग्लिश मीडियम का। ऐसा क्यों ? वो इसलिए कि जब हमारे बच्चे पढाई ख़त्म करके नौकरी के बाजार में पहुंचते हैं तो उन्हें पता चलता है कि इंग्लिश मीडियम में पढ़े लिखे बच्चे सबसे आगे होते हैं और अन्य भाषा में पढ़े बच्चे नौकरी के रेस में पीछे छूट जाते हैं। इतना ही नहीं जब नॉन इंग्लिश मीडियम बच्चे हायर स्टडीज में जाते हैं तो पढ़ने के बजाय वो इंग्लिश सीखने में लग जाते हैं वहां भी वो इंग्लिश मीडियम बच्चे से पिछड़ जाते हैं।
मैं खुद एक उदाहरण हूं
और इसका उदहारण मैं स्वयं हूँ। बिहार के छोटे से गाँव से हिंदी मीडियम में पढ़कर जे एन यू पहुंचा तो देखा कि इंग्लिश मीडियम पढ़कर आने वाले छात्र विषय की पढाई कर रहे थे और हम पहली बार अपने छात्र जीवन में इंग्लिश सीखने का प्रयास कर रहे थे। शुरूआती कुछ महीने तो अपनी झिझक दूर करने और अंग्रेजी सीखने में निकल गए। इंग्लिश मीडियम से नहीं पढ़ने का खामियाजा हम आज भी सहन कर रहे हैं। क्या आप चाहते हैं हमारे बच्चे आगे भी वही खामियाजा भुगतते रहें। और असली सवाल है कि इसका अंजाम कौन भुगतता है - हमारे युवा छात्र या राजनीति।
और सरकारें दिखा पाएंगी हिम्मत
इसलिए मेरा मानना है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी का निर्णय बड़ा ही साहसी और भविष्यगामी है। होना तो ये चाहिए कि भारत के अन्य राज्यों को भी जगन सरकार के निर्णय को लागू करना चाहिए यदि आप अपने बच्चों का भविष्य उज्जवल करना चाहते हैं। बच्चों के भविष्य के साथ राजनीति करना अनुचित होगा। आप भी विचार कीजिए।
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