नई दिल्ली: मथुरा कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें कृष्ण जन्मभूमि से सटी मस्जिद को हटाने की अपील की गई थी। श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से दायर याचिका में 13.37 एकड़ कृष्ण जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा किया गया था। इस फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट जाने का फैसला किया है। कोर्ट ने कहा कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत सभी धर्मस्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली रखी जानी है। इस कानून में सिर्फ अयोध्या मामला अपवाद था। मथुरा सिविल कोर्ट ने कहा याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करने के पर्याप्त आधार नहीं हैं।
याचिका में कहा गया था कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से गलत है। इसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच पांच दशक पूर्व हुए समझौते को अवैध बताते हुए उसे निरस्त करने और मस्जिद को हटाकर पूरी जमीन मंदिर ट्रस्ट को सौंपने की मांग की गई थी। लखनऊ की रहने वाली रंजना अग्निहोत्री और अन्य कई लोगों ने मिलकर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को जमीन देने को गलत बताते हुए सिविल जज सीनियर डिवीजन छाया शर्मा की कोर्ट में दावा पेश किया था।
कृष्ण जन्मभूमि का मामला कोर्ट में जाने पर बीजेपी नेता विनय कटियार ने कहा था कि मथुरा और काशी को भी अयोध्या में राम जन्मभूमि के बाद मुक्त कराने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, यदि आवश्यक हुआ तो ईदगाह अतिक्रमण को हटाने और कृष्ण जनभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए एक आंदोलन शुरू किया जाएगा।'
दशकों पुराना है विवाद
मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और ईदगाह मस्जिद का विवाद छह दशक पुराना है। साल 1944 में कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि खरीदी गई। वर्ष 1958 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ बनाया गया। इसके बाद 1967 में सेवा संघ ने केस दायर कर मंदिर परिसर पर अपने अधिकार का दावा किया। सन 1968 में समझौता हुआ था। तब आपस में जमीन का बंटवारा हो गया था। कोर्ट में दायर अर्जी में 1968 के फैसले को चुनौती दी गई। इसमें श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदबाग प्रबंध समिति के बीच हुए एक भूमि समझौते में सुधार करने की मांग की गई।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।