नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच एलएसी पर पिछले काफी समय से तनाव बन हुआ है। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच 10 सितंबर को मॉस्को में हुई बैठक और मंगलवार को सैन्य कमांडरों के बीच हुई बैठक में दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से धीरे-धीरे डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया को शुरू करने पर सहमति जताई। टाइम्स ऑफ इंडिया के सूत्रों के मुताबिक सैनिकों के पीछे हटने का फैसला चीनी नेतृत्व की राजनीतिक मंशा और एलएसी की स्थितियों पर निर्भर करेगा। वहीं भारत भी चीन की हर हरकत पर नजर रखे हुए हैं हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार है।
महत्वपूर्ण कदम
पूर्वी लद्दाख में अधिक सैनिकों को मोर्चे पर भेजने से रोकने, एक दूसरे से 'सुरक्षित ’दूरी पर सैनिकों को रखने और वास्तविक समय के संचारों को फिर से आगे बढ़ाने के महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं जिन पर पिछले काफी समय से रोक लगी हुई थी। इसका उद्देश्य एलएसी पर निर्माण को रोकना जो सैनिकों के पीछे हटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। भारत तब तक कब्जा की हुई अहम चोटियों से पीछे नहीं हटेगा जब तक चीन अपने कदम वापस नहीं खीचेंगा।
भारत भी मजबूत स्थिति में
भारत लगातार अप्रैल वाली यथास्थिति बनाए रखने पर जोर देता रहेगा, लेकिन अब यह प्रक्रिया और अधिक जटिल हो गई है, क्योंकि भारतीय बलों ने दक्षिणी बैंक पंगोंग त्सो में रणनीतिक ऊंचाइयों को कब्जे में ले लिया है और उत्तरी किनारे पर हालात बदल गए हैं। इससे न केवल गलावन की स्थिति बदल गई है बल्कि यह अप्रैल के मुताबिक ‘यथास्थिति’ के अनुरूप भी नहीं है।
हालात स्थिर
मौजूदा आमने-सामने होने तक, भारतीय सैनिकों फिंगर 4-8 पर गश्त करते थे, लेकिन 29-30 अगस्त को कई ऑपरेशनों के बाद दक्षिण किनारे के स्थित कई चोटियों पर कब्जा कर चीन के मुकाबले खुद को मजबूत कर लिया। सूत्रों के मुताबिक, मंगलवार की बैठक काफी सकारात्मक थीं। एक सूत्र ने बताया कि हालात अभी स्थिर हैं लेकिन जब तक असहमति ना हो जाए तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता। भविष्य में दोनों देशों के बीच बातचीत पर आगे की प्रकिया तय होगी।
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