नई दिल्ली: अपने नए नक्शे से विवाद खड़ा करने वाले नेपाल के तेवर ढीले पड़ गए हैं। भारतीय क्षेत्र लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को अपने नए नक्शे में शामिल करने वाले नेपाल का कहना है कि इस मसले पर संसद में चर्चा के जरिए पहले 'आम सहमति' बनाई जाएगी और फिर इसके बाद संविधान में संशोधन किया जाएगा। जाहिर है कि भारत के कड़े तेवर के बाद नेपाल के सुर नरम पड़ गए हैं। अब वह इस मसले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश कर रहा है। दरअसल, भारतीय क्षेत्रों को अपने नए नक्शे में दर्शाने पर भारत की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया दी गई है। विदेश मंत्रालय कह चुका है कि कृत्रिम तरीके से अपने क्षेत्र को बढ़ाने वाले अवैध दावों से नेपाल को परहेज करना चाहिए।
बता दें कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गत आठ मई को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में 75 किलोमीटर लंबे कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग का लोकार्पण किया। इस मार्ग के शुरू हो जाने से यह यात्रा अब दो दिन में पूरी हो जाएगी। धारचूला से लिपुलेख को जोड़ने वाले इस मार्ग को सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने तैयार किया है। रक्षा मंत्री ने उम्मीद जताई कि इसके बन जाने से दुर्गम घाटी में विकास कार्यों को बढ़ावा मिलेगा।
दरअसल इस मार्ग के लोकार्पण के बाद नेपाल ने अपने नए नक्शो का विवाद खड़ा किया है। नेपाल ने अपने नक्शे में लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को दर्शाया है लेकिन ये तीनों इलाके पिथौरागढ़ के क्षेत्र में आते हैं। भारत लंबे समय से इन्हें अपना क्षेत्र मानता आया है। नेपाल की तरफ से पहले इस पर कभी दावा नहीं किया गया। राजनाथ सिंह जब गृह मंत्री थे तो इस सड़क निर्माण को अंतिम रूप देने के लिए कई बैठकें हुई थीं और इन बैठकों में करीब तीन बार नेपाल का शिष्टमंडल शामिल हुआ लेकिन तब उसकी तरफ से कोई आपत्ति नहीं जताई गई।
सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने कुछ दिनों पहले कहा कि नेपाल किसी के इशारे पर काम कर रहा है। जाहिर तौर पर उनका इशारा चीन की तरफ था। लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन की फौज आमने-सामने हैं। जाहिर है कि लद्दाख से लेकर कैलाश मानसरोवर तक भारत की विकास गतिविधियां चीन को पसंद नहीं आ रही हैं। वह नहीं चाहता कि एलएसी के पास भारत की स्थिति मजबूत हो। इसके लिए वह नेपाल को मोहरा बनाता रहा है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि हाल के वर्षों में चीन ने नेपाल में भारी निवेश किया है और वहां की सत्ता में अपना प्रभाव एवं दखल बढ़ाया है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी चीन के ज्यादा करीब मानी जाती है।
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