'सगे चाचा-ताऊ, मामा-बुआ और मौसी के बच्चों के बीच शादी वैध नहीं', अदालत का बड़ा फैसला

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Updated Nov 20, 2020 | 19:13 IST

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्‍वपूर्ण फैसले में सगे चाचा-ताऊ, मामा-बुआ और मौसी के बच्चों के बीच शादी गैरकानूनी करार देते हुए कहा कि इन्‍हें किसी भी सूरत में वैध नहीं ठहराया जा सकता।

'सगे चाचा-ताऊ, मामा-बुआ और मौसी के बच्चों के बीच शादी वैध नहीं', अदालत का बड़ा फैसला
'सगे चाचा-ताऊ, मामा-बुआ और मौसी के बच्चों के बीच शादी वैध नहीं', अदालत का बड़ा फैसला  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि सगे चाचा-ताऊ, मामा-बुआ और मौसी के बच्चों के बीच शादी गैरकानूनी होती है
  • अदालत का यह आदेश एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें याचिकाकर्ता ने चचेरी बहन से शादी की बात कही थी
  • लड़की की उम्र अभी 17 साल है, याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी जब वह 18 साल की हो जाएगी, वे शादी कर लेंगे

चंडीगढ़ : पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि सगे चाचा-ताऊ, मामा-बुआ और मौसी के बच्चों के बीच शादी गैरकानूनी होती है। अदालत ने गुरुवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अपने पिता के भाई की बेटी से शादी करना चाहता है, जो उसकी रिश्ते की बहन है और ऐसा करना अपने आप में गैरकानूनी है।

न्यायाधीश ने कहा, 'इस याचिका में दलील दी गई है कि जब भी लड़की 18 साल की हो जाएगी तो वे शादी करेंगे, लेकिन तब भी यह गैरकानूनी है।' मामले में 21 वर्षीय युवक ने 18 अगस्त को लुधियाना जिले के खन्ना शहर-2 थाने में भारतीय दंड संहिता की धाराओं 363 और 366ए के तहत दर्ज मामले में अग्रिम जमानत का अनुरोध करते हुए पंजाब सरकार के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया।

याचिकाकर्ता ने दी थी 'लिव-इन' में रहने की दलील

राज्य सरकार के वकील ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए दलील दी थी कि लड़की नाबालिग है और उसके माता-पिता ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी कि उसके और लड़के के पिता भाई हैं।

युवक के वकील ने न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान से कहा कि याचिकाकर्ता ने भी जीवन और स्वतंत्रता के लिए लड़की के साथ आपराधिक रिट याचिका दाखिल की है। इसके अनुसार, लड़की 17 साल की है और याचिकाकर्ता ने याचिका में दलील दी थी कि दोनों 'लिव-इन' रिश्ते में हैं। लड़की ने अपने माता-पिता द्वारा दोनों को परेशान किए जाने की आशंका जताई थी।

अदालत ने 7 सितंबर को याचिका का निपटारा कर दिया था। राज्य को निर्देश दिया गया था कि यदि युवक और लड़की को किसी तरह के खतरे की आशंका है तो सुरक्षा प्रदान की जाए। हालांकि न्यायाधीश ने स्पष्ट कर दिया कि यह आदेश याचिकाकर्ताओं को कानून के किसी तरह के उल्लंघन की स्थिति में कानूनी कार्रवाई से नहीं बचाएगा।

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