'सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं', कोर्ट का बड़ा फैसला, खारिज की दंपति की याचिका

Judgement on religious conversion: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्‍वपूर्ण फैसले में कहा कि महज शादी के लिए किए जाने वाले धर्म परिवर्तन को स्‍वीकार नहीं किया जा सकता।

'सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं', कोर्ट का बड़ा फैसला, खारिज की दंपति की याचिका
'सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं', कोर्ट का बड़ा फैसला, खारिज की दंपति की याचिका  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि महज शादी के लिए किए धर्म परिवर्तन को स्‍वीकार नहीं किया जा सकता
  • याची ने धर्म परिवर्तन कर शादी की थी और कोर्ट में अर्जी देकर पुलिस प्रोटेक्‍शन की गुहार लगाई थी
  • कोर्ट ने इस मामले में 2014 के एक आदेश का हवाला देते हुए हस्‍तक्षेप करने से इनकार कर दिया

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि महज शादी के लिए धर्म परिवर्तन को वैध नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने यह टिप्‍पणी एक दंपति की याचिका को खारिज करते हुए की है, जिन्‍होंने शादी के बाद सामने आ रही परेशानियों को देखते हुए पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। लड़की ने धर्म परिवर्तन कर यह शादी की और दंपति ने यह कहते हुए कोर्ट में पुलिस प्रोटेक्‍शन के लिए गुहार लगाई थी कि उन्‍हें परिजनों की ओर से धमकाया जा रहा है और उनका शादीशुदा जीवन खतरे में है।

कोर्ट ने हालांकि दंपति की रिट याचिका खारिज करते हुए मामले में हस्‍तक्षेप से इनकार कर दिया और कहा कि सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन को वैध नहीं ठहराया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने दिया। इस मामले में सामने आया है कि लड़की ने 29 जून, 2020 को हिन्दू धर्म स्वीकार किया और एक महीने बाद 31 जुलाई 2020 को शादी कर ली। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि धर्म परिवर्तन शादी के लिए किया गया और इस तरह के धर्म परिवर्तन को जायज नहीं कहा जा सकता। 

कोर्ट ने दिया 2014 के आदेश का हवाला

कोर्ट ने हालांकि दंपति की रिट याचिका खारिज करते हुए मामले में हस्‍तक्षेप से इनकार कर दिया, पर उन्हें संबंधित मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर होकर बयान दर्ज कराने की अनुमति दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में 2014 के ऐसे ही एक आदेश का भी जिक्र किया, जिसमें हिन्दू लड़की ने धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से शादी की थी। कोर्ट ने कहा था कि इस्लाम के बारे में जाने बिना और बगैर आस्था के धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं किया जा सकता। 

कोर्ट ने तब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक अदेश का भी हवाला दिया था और कहा था कि किसी भी दूसरे धर्म को कबूलने को लेकर लडकी/लड़के के फैसले को तभी मान्‍य ठहराया जा सकता है, जब उसे उस धर्म में आस्‍था हो और उसने बिना किसी दबाव के अच्‍छी तरह सोच-व‍िचार कर स्‍वेच्‍छा से इस तरह का फैसला लिया हो। अब कोर्ट ने उसी फैसले को आधार बनाकर ताजा मामले में मुस्लिम से हिन्दू बनकर शादी करने वाली याची की अर्जी खारिज करते हुए मामले में दखल देने से इनकार कर दिया।

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