श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की मुखिया महबूबा मुफ्ती अभी हिरासत में ही रहेंगी। महबूबा की हिरासत तीन महीने के लिए और बढ़ा दी गई है। पूर्व मुख्यमंत्री पर जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत कार्रवाई हुई है। सरकार ने गत पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त किया। इस समय से ही महबूबा एवं घाटी के अन्य नेताओं को हिरासत में लिया गया। घाटी के प्रमुख नेताओं फारूक अब्दुल्ला एवं उमर अब्दुल्ला की रिहाई पहले ही हो चुकी है। इस बीच, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने शुक्रवार को पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन को हिरासत से रिहा कर दिया।
महबूबा 370 हटाए जाने का मुखर रूप से विरोध करती आई हैं। इन्होंने इस अनुच्छेद को लेकर केंद्र सरकार को चेताया भी था। राज्य से अनुच्छेद 370 हटने और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र-शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद केंद्र सरकार ने वहां के राजनीतिक दलों को मुख्य धारा की राजनीति में लाने के लिए कई प्रयास किए हैं। विकास एवं नई परियोजनाओं से स्थानीय लोगों का प्रशासन एवं मुख्य धारा की राजनीति में भरोसा बढ़ा है। मुख्य धारा की राजनीति में युवा बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। कुछ समय पहले विपक्ष के नेताओं ने घाटी के बड़े नेताओं की रिहाई की मांग केंद्र सरकार से की जिस पर केंद्र ने कहा कि इन नेताओं की रिहाई के बारे में फैसला स्थानीय प्रशासन करेगा।
सज्जाद लोन छह महीने तक एमएलए हॉस्टल में नजरबंद थे
अनुच्छेद 370 हटने के बाद पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन छह महीने तक एमएलए हॉस्टल में नजरबंद थे। इसके बाद उन्हें पांच फरवरी को चर्च लेन स्थित एक सरकारी मकान में शिफ्ट किया गया। सज्जाद लोन की रिहाई पर उमर अब्दुल्ला ने अपने एक ट्वीट में कहा, 'मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि लोन को अनुचित नजरबंदी से रिहा कर दिया गया है। मुझे यकीन है कि अन्य नेताओं की इसी तरह की अनुचित नजरबंदी भी समाप्त हो जाएगी और उन्हें रिहा कर दिया जाएगा।'
5 अगस्त को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था
भारत सरकार ने गत पांच अगस्त को ऐतिहासिक फैसला करते हुए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया। साथ ही जम्मू कश्मीर को विधानसभा के साथ और लद्दाख को बिना विधानसभा के केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया। सरकार का कहना है कि इस अनुच्छेद की वजह से राज्य में विकास की गति अवरुद्ध हुई और कहीं न कहीं इस अनुच्छेद से राज्य में आतंकवाद को बढ़ावा मिला। विपक्ष ने कहा कि सरकार ने जिस तरह से इस अनुच्छेद को समाप्त किया वह तरीका सही नहीं था।
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