नई दिल्ली. निर्भया के दरिंदों की फांसी एक बार फिर टल गई है। पटियाला हाउस कोर्ट ने 1 फरवरी के डेथ वारंट पर रोक लगा दी है। वहीं, इस बार एक नया डेथ वारंट जारी नहीं किया गया है। ऐसे में दरिंदों की फांसी का इंतजार भी बढ़ गया है। आपको बता दें कि साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने शत्रुघ्न चौहान केस में कुछ गाइडलाइन दी थी। ये फैसला इन दरिंदों की लाइफलाइन बना हुआ है।
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने शत्रुघ्न चौहान केस के फैसले के मुताबिक दया याचिका में देरी को आधार बनाते हुए आरोपी की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है। इसके अलावा आरोपी के सारे कानूनी हक खत्म होने के बाद से फांसी तक उसे कम से कम 14 दिन का वक्त देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में ये भी कहा था कि राष्ट्रपति को दया याचिका खारिज करने का कारण भी बताना होगा। राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका को खारिज करने के लिए बताए गए इस कारण को भी सुप्रीम में चुनौती दी जा सकती है। वहीं, फांसी के बाद लाश का पोस्टमॉर्टम करना जरूरी है।
तिहाड़ जेल की ओर से पेश अभियोजन पक्ष के वकील ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि दोषियों में से एक विनय शर्मा की दया याचिका लंबित है और अन्य दोषियों को फांसी दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि बाकी दोषियों को फांसी पर चढ़ाने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है।
किस दरिंदे के पास क्या विकल्प
आपको बता दें कि मुकेश,विनय और अक्षय की रिव्यू पिटिशन और क्यूरेटिव पेटिशन दोनों ही खारिज हो चुकी है। वहीं,पवन गुप्ता के दोनों ही विकल्प क्यूरेटिव पिटिशन और दया याचिका अभी बची हुई है। घटना के दौरान पवन के नाबालिग होने की याचिका को कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है।
राष्ट्रपति ने मुकेश की दया याचिका को भी खारिज कर दिया है। मुकेश ने इसे सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी थी, जिसे खारिज कर दिया गया है। मुकेश के बाद अब विनय ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल की है। इस पर अभी फैसला होना बाकी है।
ये केस भी बना है लाइफलाइन
मुकेश, अक्षय, पवन और विनय के खिलाफ हाईकोर्ट में लूट और अपहरण का मामला भी लंबित है। दरअसल निर्भया के साथ बर्बरता से पहले इन सभी ने मिलकर एक मजदूर को लूटा था। इस मामले पर इन्हें निचली अदालत ने दस साल की सजा सुनाई है। इसके खिलाफ इन सभी ने हाईकोर्ट में अपील की है।
आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने शत्रुघ्न चौहान केस में जारी गाइडलाइन पर पुनर्विचार करने की अर्जी दायर की थी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- ये फैसला दोषी को ध्यान में रखते हुए दिया गया है। इसमें पीड़ित, उनके परिवार और समाज के दृष्टिकोण से विचार करना महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया है।
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