अनिल कुमार।
उत्तर प्रदेश में ज्यादातर विधायक योगी आदित्यनाथ की सरकार से नाराज हैं। नाराजगी में पत्र लिखकर सोशल मीडिया पर भी डाल रहे हैं और उस पत्र को आधार बनाकर मीडिया का एक वर्ग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुर्सी हर दिन छीनता रहता है। यह विधायक इसलिये नहीं नाराज हैं कि उन्होंने जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्साधिकारी को किसी अस्पताल में आक्सीजन प्लांट लगाने को कहा और इन्होंने उनकी बात को तवज्जो नहीं दी। यह विधायक इसलिये भी नाराज नहीं हैं कि इन्होंने जनता से जुड़ी किसी समस्या के समाधान के लिये शासन को पत्र लिखा और उस पर कोई सुनवाई या कार्रवाई नहीं हुई! बल्कि यह विधायक इसलिये नाराज हैं कि इनकी सरकार होने के बाद भी यह अपने चहेते डीएम, एसपी, सीओ, एसडीएम, थानेदार की नियुक्ति नहीं करा सके।
खनन, टेंडर और ठेके अपने लोगों को नहीं दिला सके। ज्यादातर विधायक इसलिये भी नाराज हैं कि टिकट पाने और चुनाव जीतने के लिये जितनी बड़ी धनराशि खर्च की उतना भी कमाना मुश्किल हो गया। इन विधायकों को एक ऐसे अदद मुख्यमंत्री की दरकार थी, जो खुद भी कमाये और इन्हें भी कमाई करने में अपना सहयोग दे। योगी इस मानक पर तो बिल्कुल खरे नहीं उतरे और वह इस काम के लिये घृणा के पात्र भी हैं। भाजपा कार्यकर्ता भी नाराज है कि वह सपाइयों-बसपाइयों की तरह थानेदारों को गाली नहीं दे सका, कहीं जमीन कब्जा नहीं करा सका, अपराधियों की पैरवी नहीं कर सका! इसी का परिणाम है कि सरकार के अच्छे कामों को संगठन जनता तक पहुंचाने में पूरी तरह असफल रहा है, क्योंकि तमाम लोग नाराज हैं।
दरअसल, योगी आदित्यनाथ पूरी तरह पॉलिटिकल व्यक्ति नहीं हैं। पॉलिटिकल होते तो पिछले मुख्यमंत्रियों की तरह अपराधियों के खिलाफ बयानबाजी करके चुपचाप सरकार चलाते, और अपराधियों को जेलों से खुलकर अपराध करने की छूट देते, लेकिन उन्होंने बयानबाजी करने की बजाय अपराध और अपराधियों को नेस्तनाबूद करने की गैरराजनीतिक सोच अख्तियार किया। राजनीतिक व्यक्तियों की तरह कथनी-करनी में भेद नहीं होने के चलते ही अपराधियों की गोली का जवाब गोली से देने तथा अपराध की बदौलत खड़े आर्थिक साम्राज्य को तहस-नहस करने की रणनीति पर काम किया। आज उनके इस एप्रोच का असर है कि यूपी में संगठित अपराध की कमर टूट चुकी है। इतनी बड़ी उपलब्धि संगठन और कार्यकर्ता जनता तक नहीं पहुंचा सके, क्योंकि वह सरकार से नाराज हैं। नाराजगी का कारण जनहित के मुद्दे नहीं बल्कि खुद की आर्थिक मजबूती देने की वह आदिम मानसिकता है, जो योगी आदित्यनाथ के बागडोर संभालने से पहले सभी सत्ताधारी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में पाई जाती रही है।
कोरोना की पहली लहर को संभालने के बाद दूसरी लहर में शुरुआती अफरातफरी के बाद उत्तर प्रदेश अब यह लड़ाई भी जीतने की कगार पर है। 24 करोड़ आबादी वाले यूपी, जो जागरूकता, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के स्तर में दिल्ली, महाराष्ट्र, केरल जैसे राज्यों से पीछे है, में 17 लाख लोग संक्रमित हुए। इसके विपरीत 12.32 करोड़ वाले महाराष्ट्र में 58 लाख, 4 करोड़ जनसंख्या वाले केरल में 25 लाख तथा 1.87 करोड़ जनसंख्या वाले दिल्ली में 14 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हुए। वह दिल्ली सबसे बेहाल रही, जिसके सीएम अरविंद केजरीवाल दावा करते थे कि यहां की चिकित्सा व्यवस्था इतनी उच्चस्तरीय है कि बिहार से लोग इलाज कराने यहां आते हैं। यूपी और योगी की सबसे बड़ी बिड़म्बना यह है कि उनकी कैबिनेट में लीड करने वालों की बजाय आज्ञाकारी एवं गणेश परिक्रमा करने वाले नेताओं एवं मंत्रियों की भरमार है।
कोविड की दूसरी लहर के दौरान एक भी मंत्री या विधायक जनता के बीच नहीं निकला। दो डिप्टी सीएम भी खामोश रहे। मंत्रियों ने घरों से बाहर निकलना जरूरी नहीं समझा, इसके उलट कोरोना निगेटिव होते ही योगी फिर से काम में जुट गये। जाहिर है जो काम करेगा, गलती भी उसी से होगी। योगी ने भी अधिकारियों पर अत्यधिक विश्वास करने की गलती इस दौरान की, लेकिन उनकी मंशा पर सवाल नहीं है। योगी ने धरातल पर उतर कर काम किया तो उनके मंत्री-विधायक सोशल मीडिया पर वोकल होकर जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। वह केवल पत्र लिखते रहे, योगी कोरोना महामारी काल में भी शहर-गांवों की खाक छानते रहे।
महामारी की शुरुआत में मची अफरातफरी से उनकी छवि को धक्का लगा, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत के बूते डैमेज कंट्रोल कर लिया। उनकी मेहनत और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की कोशिश ने जनता के बीच सरकार की सकारात्मक छवि पेश की। विपक्ष के नेता और यूपी में सरकार बनाने की दावेदार समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कोरोना काल में अपने संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ तक जाना गंवारा नहीं किया, जबकि योगी ने इस विषम स्थिति में भी राज्य को मथ डाला।
यूपी बड़ा राज्य है और केंद्र की चाभी इसी के पास है। बंगाल की हार और यूपी पंचायत चुनावों में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने से भाजपा हाईकमान और संघ यूपी में 2022 के चुनाव को लेकर चिंतित है। सरकार और संगठन के बीच तालमेल की कमी की जानकारी उन्हें भी है। भाजपा ने इन दोनों पर भरोसा करते हुए बंगाल में बड़ी जिम्मेदारी दी थी। संघ सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले भी पंचायत चुनाव के परिणाम से चिंतित हैं, क्योंकि जनता के बीच सरकार के कामकाज को लेकर नाराजगी नहीं है बल्कि संगठन का निष्क्रिय होना उनके लिये परेशानी का सबब है। संगठन योगी सरकार के कामों को जनता तक पहुंचाने में अब तक लापरवाह रहा है।
संगठन मंत्री बीएल संतोष यूपी सरकार और यूपी भाजपा के बीच के असंतोष को दूर करने की कवायद में जुटे हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर माहौल अपने पक्ष में करने की हिदायत भी यूपी भाजपा के नेताओं को दी गई है। हर संभावित रणनीति अख्तियार करने का निर्देश दिया गया है। हाईकमान मानता है कि यह जीत इसलिये भी जरूरी है ताकि विधानसभा चुनाव में जाने से पहले कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा रहे। अगले कुछ दिनों में योगी मंत्रिमंडल के विस्तार के साथ खाली पड़े निगम एवं सरकारी इकाईयों में कार्यकर्ताओं की तैनाती संभावित है।
मीडिया का एक वर्ग भले ही पिछले डेढ़ साल से हर रोज योगी की कुर्सी छीन ले रहा हो, लेकिन यूपी भाजपा को भी यह स्पष्ट संकेत दे दिया गया है कि उन्हें 2022 का विधानसभा चुनाव मोदी-योगी के चेहरे पर ही लड़ना होगा। संघ और भाजपा हाईकमान इस बात से मुत्तमईन है कि योगी के दामन पर भ्रष्टाचार का एक दाग नहीं लगा है, जबकि उनके ज्यादातर मंत्री जनता की सुविधा बढ़ाने से ज्यादा ध्यान अपनी खुद की और परिवार की निजी हैसियत बढ़ाने में जुटे हुए हैं। चार साल में योगी खुद को कठोर प्रशासक के साथ हिंदुत्व के ब्रांड के रूप में स्थापित करने में सफल रहे हैं। उनकी यह छवि भाजपा के लिये भीड़ जुटाऊ लीडर की है।
अपनी कार्यपद्धति, साफगोई और ईमानदार शैली से योगी भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से मीलों आगे हैं। वह वर्तमान स्थिति में भाजपा के टॉप के पांच नेताओं में शुमार हैं। यूपी के बाहर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बाद योगी आदित्यनाथ की ही मांग है। योगी के पास खोने के लिये कुछ नहीं है। जिस तरीके से उन्होंने गोरखपुर क्षेत्र से इंसेफेलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी का समूल नष्ट किया, उसी तरह वह यूपी से उन बीमारियों का नाश करने में जुटे हुए हैं, जो इस प्रदेश के विकास में बाधक हैं। जनता के लिये योगी संवेदनशील मुख्यमंत्री साबित हुए हैं। योगी ने गरीब तबके के साथ अनाथ बच्चों की परवरिश को लेकर जो संवेदना दिखाई है, उसका भी जनता में सकारात्मक प्रभाव है।
(लेखक अनिल कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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