नई दिल्ली: देश के 750 से अधिक वकीलों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एसए बोबडे को पत्र लिखा है, इसमें 'हाल की न्यायपालिका को धमकाने और डराने की प्रवृत्ति' पर चिंता व्यक्त की गई है। वकीलों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में लिखा है, 'हम वकील हाल के समय में उभरी हुई प्रवृत्ति के संबंध में अपनी चिंताओं को दर्ज करना चाहते हैं। न्यायपालिका को धमकाया और भयभीत किया गया है। भारत ने उन न्यायाधीशों के खिलाफ संस्थागत व्यवधानों के हमलों की एक श्रृंखला देखी है जो उनके साथ सहमत होने और उनके साथ खींची जाने वाली रेखा को देखने के लिए तैयार नहीं हैं।'
वकीलों ने दावा किया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब वकीलों की राजनीतिक इच्छाओं को अदालत के फैसलों द्वारा पूरा नहीं किया जाता है, तो वे अपमानजनक टिप्पणी करके अदालत को दोषी ठहराते हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ न्यायाधीशों के लिए भी अपमानजनक भाषा, दुर्भावनापूर्ण हमले और अपमानजनक टिप्पणी हो रही हैं।
772 वकीलों ने कहा है, 'न्यायपालिका को अपने कर्तव्यों और कार्यों को प्रभावी ढंग से निभाना है तो न्यायालय की गरिमा और अधिकार की रक्षा करना आवश्यक है।' "संस्थागत व्यवधानों" का उल्लेख करते हुए हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा कि न्यायपालिका की नींव न्याय देने की क्षमता में लोगों का विश्वास है। पत्र में कहा, 'हम आपसे आग्रह करते हैं कि न्यायिक प्रणाली की छाप को बरकरार रखें और हमारे लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ की रक्षा करें। हमें पूरी उम्मीद है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे व्यक्तियों से एक अनुकरणीय तरीके से निपटाया जाए।'
अशोक गहलोत ने भी जताई चिंता
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी न्यायपालिका की साख को लेकर उठाए जा रहे सवालों को गंभीर चिंता का विषय बताते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के हित में नहीं है। गहलोत ने एक ट्वीट में कहा,'हाल ही में कुछ प्रतिष्ठित वकीलों व बुद्धिजीवियों ने न्यायपालिका की साख को लेकर सवाल उठाए हैं जो कि हम सभी के लिए गंभीर चिंता का विषय है। मेरी राय में यह लोकतंत्र के हित में नहीं है। देश के उच्चतम न्यायालय को भारतीय संविधान का संरक्षक व अभिभावक माना जाता है। लोग न्यायपालिका को बड़े विश्वास से देखते हैं और उनकी इसमें बड़ी आस्था है।'
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