लेह में लोगों ने नीमा तेंजिन को दी श्रद्धांजलि, लगे 'भारत माता की जय' के नारे Video

Tributes to Nyima Tenzing: भारत चीन तनाव के बीच एलएसी पर कुछ दिनों पहले शहीद हुए नीमा तेंजिन को लेह में लोगों श्रद्धांजलि अर्पित की। वह 'स्पेशल फ्रंटियर फोर्स' के कंपनी लीडर थे।

लेह में लोगों ने नीमा तेंजिन को दी श्रद्धांजलि, LAC पर हुए थे शहीद
लेह में लोगों ने नीमा तेंजिन को दी श्रद्धांजलि, LAC पर हुए थे शहीद  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • लेह में लोगों ने 'स्पेशल फ्रंटियर फोर्स' के जवान नीमा तेंजिन को श्रद्धांजिल दी
  • भारत-चीन तनाव के बीच नीमा तेंजिंन पिछले दिनों एलएसी पर शहीद हो गए थे
  • तेंजिन का अंतिम संस्‍कार तिब्बती-बौद्ध परंपराओं के अनुसार किया गया

लेह : पूर्वी लद्दाख में वास्‍तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ तनाव के बीच भारत ने पिछले दिनों महत्‍वपूर्ण रणनीतिक सफलता हासिल की थी। भारतीय सेना ने पैंगोंग सो के आसपास स्थित सभी 'रणनीतिक बिंदुओं' पर सैनिकों और हथियारों की तैनाती बढ़ाते हुए यहां एकतरफा यथास्थिति बदलने के चीन प्रयास को विफल कर दिया। इसी दौरान 'स्पेशल फ्रंटियर फोर्स' के एक जवान नीमा तेंजिन शहीद हो गए थे, जिन्‍हें लेह में लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की और 'भारत माता की जय' के नारे लगाए।

तेंजिन भारत के स्पेशल सैन्यदल 'स्पेशल फ्रंटियर फोर्स' की एक रेजिमेंट के कंपनी लीडर थे, जिन्‍होंने 29-30 अगस्‍त को भारतीय सेना और चीन की पीपुल्‍स लिबरेशन आर्मी के बीच हुई झड़प के दौरान जान गंवाई। बताया जा रहा है कि इसी ऑपरेशन के दौरान के दौरान चुशुल के नजदीक गुरुंग हिल पर वह गलती से एक माइन पर जा पहुंचे, जो 1962 से ही वहां मौजूद था। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी बताया जा रहा है कि तेंजिन को सिर में गोली लगी थी और चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प में शहीद हुए। हालांकि आधिकारिक तौर पर इस बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है।

चीन को कड़ा संदेश

मूल रूप से तिब्‍बत से ताल्‍लुक रखने वाले तेंजिन का पार्थिव शरीर बीते सप्‍ताह लेह से छह किलोमीटर दूर चोगलामसार गांव में उनके परिजनों को सौंपा गया, जो न केवल तिरंगे में लिपटा था, बल्कि 1950 में तिब्‍बत पर चीन के कब्‍जे से पहले तक एक आजाद मुल्‍क के तौर पर रहे वहां के ध्‍वज से भी ढका था। यह चीन को ये संदेश देने के लिए काफी है कि उसकी विस्‍तारवादी नीतियों के खिलाफ भारत में रह रहे निर्वासित तिब्‍बत‍ियों ने भी झंडा बुलंद कर लिया है। तेंजिन का अंतिम संस्‍कार तिब्बती-बौद्ध परंपराओं के अनुसार किया गया।

तेंजिन जिस यूनिट से संबद्ध थे, वह जांबाजों के लिए जानी जाती है और इसमें अधिकांश भारत में निर्वासित जीवन बिता रहे तिब्‍बत‍ी शामिल हैं। ये अलग बात है कि इन्‍हें बेहद गुप्‍त रखा जाता है और इसके बारे में कम ही जानकारी सामने आ पाती है। छापामार युद्ध, खुफिया अभियानों में विशेष पारंगत इस यूनिट की तैनाती आम तौर पर दुर्गम इलाकों में की जाती है और इन्‍हें गुप्‍त ऑपरेशंस का काम सौंपा जाता है। इनका इतिहास 60 बर्ष पुराना है और बताया जाता है कि 1962 में भारत-चीन युद्ध के एक सप्‍ताह बाद ही इसकी स्‍थापना की गई थी।

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