नई दिल्ली। कोरोना काल में प्रवासी श्रमिक किसी भी सूरत में अपने राज्य लौटना चाहते हैं। प्रवासी श्रमिकों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन का भी इंतजाम किया गया है। लेकिन हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए पैदल, साइकिल या जो भी साधन मिल रहा है इस्तेमाल कर रहे हैं। मजदूरों की पीड़ा कहें या सियासत का मौका प्रियंका गांधी की तरफ से यूपी सरकार को 1000 बसों का प्रस्ताव दिया गया। राजनीतिक खींचतान के बीच यूपी सरकार ने कांग्रेस का प्रस्ताव मान लिया। लेकिन मामले में कई मोड़ आए मसलन बस को लखनऊ भेजिए। कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं थी।
सवाल यह है कि इस बिल के पीछे की कहानी क्या है। दरअसल जब कोटा से उत्तर प्रदेश के छात्र आगरा और झांसी आए तो उनके लिए यूपी सरकार की तरफ से 560 बसें भेजी गईं। लेकिन कुछ बसों की कमी पड़ गई। इसके लिये राजस्थान राज्य परिवहन निगम की मदद ली गई। राजस्थान परिवहन विभाग के अधिकारी बसों में डीजल भराने के लिये पैसे देने पर अड़ गये। यूपी सरकार की तरफ से कहा गया कि बाद में भुगतान कर दिया जाएगा। लेकिन राजस्थान के अधिकारी नहीं माने और करीब 19 लाख रूपए चेक के जरिए अदा किये गए। लेकिन जब यूपी सरकार की तरफ से प्रियंका गांधी के प्रस्ताव पर तहकीकात की गई तो राजस्थान सरकार की तरफ से 36 लाख का बिल पकड़ा दिया गया।
यूपी सरकार की तरफ से 1000 बसों की छानबीन की गई तो पता चला कि ज्यादातर बसें अनफिट हैं, कुछ एंबुलेंस, कुछ मिनी कार, कुछ तिपहिया हैं इसके बाद सियासत की धारा बदली और कांग्रेस ने अपनी सभी बसों को वापस लेने का फैसला किया। लेकिन मामले में नया मोड़ तब आ गया जब राजस्थान सरकार की तरफ से यूपी सरकार को 36 लाख का बिल पकड़ा दिया गया। जानकार कहते हैं कि कांग्रेस की इस हरकत के बाद सवाल उठना लाजिमी है कि सियासत आखिर कौन कर रहा है। सवाल इसलिए भी है क्योंकि अगर यूपी सरकार इजाजत दे देती तो शायद कांग्रेस ऐसा काम नहीं करती। जानकार कहते हैं कि कांग्रेस की तरफ से यूपी सरकार को घेरने की कोशिश की गई थी। शायद उन्हें इस बात का अहसास नहीं था कि इस विषय पर यूपी सरकार हामी भर देगी।
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