शांत नहीं बैठे हैं राफेल, हिमाचल प्रदेश में अपनी तैयारियों को दे रहे धार

Rafale practising in Himachal Pradesh: फ्रांस से पांच राफेल लड़ाकू विमान गत 29 जुलाई को भारतीय वायु सेना (IAF) के अंबाला एयरबेस पर उतरे। अब ये लड़ाकू विमान हिमाचल प्रदेश में अपना रात्रिकालीन अभ्यास कर रहे हैं।

Rafale practising night flying in mountainous terrain of Himachal Pradesh
शांत नहीं बैठे हैं राफेल, हिमाचल प्रदेश में अपनी तैयारियों के दे रहे धार।  |  तस्वीर साभार: PTI
मुख्य बातें
  • गत 29 जुलाई को अंबाला एयरबेस पर उतरे पांच राफेल लड़ाकू विमान
  • फ्रांस से आए इन फाइटर जेट्स को गोल्डेन एरोज विंग में शामिल किया गया है
  • इन दिनों में ये लड़ाकू विमान हिमाचल प्रदेश में रात्रिकालीन अभ्यास में जुटे हैं

नई दिल्ली : भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के बेड़े में शामिल हो चुके राफेल लड़ाकू विमान इन दिनों हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय इलाकों में अपने रात्रिकालीन अभ्यास को अंजाम दे रहे हैं। एक तरह से वे युद्ध की सूरत बनने पर बाजी पलटने वाले अपने दांव एवं हथियारों को परखने में जुटे हैं। हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में इस अभ्यास की जानकारी रखने वाले लोगों के हवाले से कहा है कि चूंकि फ्रांस से आए पांच राफेल आईएएफ के गोल्डेन एरोज स्क्ववाड्रन का हिस्सा हैं। लद्दाख सेक्टर सहित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर युद्ध जैसी स्थिति यदि बनती है तो उस सूरत में ये लड़ाकू विमान हवा से हवा एवं विजुअल रेंज से बाहर जाकर मार करने वाली मिटियोर एवं हवा सतह पर मार करने वाली अपनी स्कैल्प मिसाइल को इस्तेमाल के लिए तैयार रखना चाहते हैं। 

29 जुलाई को भारत पहुंचे 5 राफेल
रिपोर्ट में साउथ ब्लॉक के अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि फ्रांस से पहली खेप में 29 जुलाई को पांच राफेल लड़ाकू विमान अंबाला एयरबेस पर उतरे। ये पांचों लड़ाकू विमान पूरी तरह से 'पूरी तरह से ऑपरेशनल' हैं। अधिकारियों का कहना है कि अंबाला में 18 राफेल लड़ाकू विमानों के लिए प्लेटफॉर्म और अगले 18 फाइटर्स के लिए प्लेटफॉर्म भूटान से लगने वाली सीमा के समीप हासीमारा एयरबेस पर बनाए जाएंगे। भारत ने फ्रांस की दसौं एविएशन से 36 राफेल खरीदने का सौदा किया है। 

Rafale

एलएसी से दूरी बनाकर भर रहे उड़ान
एक अधिकारी ने बताया कि अग्रिम पंक्ति के ये लड़ाकू विमान एलएसी से दूरी बनाकर अपना रात्रिकालीन अभ्यास कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अक्साई चिन में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के रडार लगे हैं। एलएसी के समीप उड़ान भरने की सूरत में ये रडार राफेल की फ्रिक्वेंसी सिग्नेचर की पहचान और युद्ध की सूरत में इस फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल जेट्स को जैम करने में कर सकते हैं। 

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अपनी फ्रिक्वेंसी बदल सकते हैं राफेल
हालांकि, कुछ सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इन राफेल लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल लद्दाख सेक्टर में प्रशिक्षण के लिए भी किया जा सकता है क्योंकि ये सभी लड़ाकू विमान जरूरत पड़ने पर अपनी सिग्नल फ्रिक्वेंसी को बदलने में माहिर हैं। एक विशेषज्ञ का कहना है कि पीएलए ने अपने इलेक्ट्रानिक इंटेलिजेंस रडार अपने कब्जे वाले अक्साई चिन की चोटियों पर लगाए हैं लेकिन युद्ध के समय राफेल की सिग्नेचर फ्रिक्वेंसी अभ्यास की फ्रिक्वेंसी से अलग होती है। एयरक्रॉफ्ट की पहचान करने वाले पीएलए के रडार अच्छे हैं क्योंकि उन्हें अमेरिकी वायु सेना को ध्यान में रखकर बनाया गया है। 

वायु सेना की ताकत में हुआ इजाफा
राफेल के आ जाने से आईएएफ की मारक क्षमता में काफी इजाफा हो गया है। सेमी स्टील्थ फीचर वाले राफेल 4.5 पीढ़ी का विमान है। यह दुनिया के बेहतरीन लड़ाकू विमानों में शामिल है। मिटियोर, स्कैल्प, हैमर जैसी मिसाइलों एवं हथियारों से लैस हो जाने के बाद यह बेहद घातक हो जाता है। यह अपने भार से डेढ़ गुना वजन लेकर उड़ान भर सकता है। साथ ही राफेल एक बार की अपनी उड़ान में कई अभियान पूरा कर सकता है। राफेल के पास सीरिया, अफगानिस्तान और लीबिया में युद्ध अभियान में शामिल होकर अपनी काबिलियत साबित कर चुका है जबकि चीन के जे-20 के पास इस तरह का कोई अनुभव नहीं है।    

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