नीतियां नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करेंगी तो अदालतें खामोश नहीं रह सकतीं : SC 

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Updated Jun 03, 2021 | 08:03 IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह नागरिकों के जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना जारी रखेगा और यह देखेगा कि जो नीतियां हैं, वे तार्किकता के अनुरूप हैं या नहीं।

SC Slams Centre's Vaccination Policy says court can not keep mum
सरकार की कोरोना नीतियों पर सुप्रीम कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी।  |  तस्वीर साभार: PTI
मुख्य बातें
  • कोरोना की नीतियों पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की खिंचाई की
  • कोर्ट ने कहा कि अधिकारों के हनन पर चुप नहीं रह सकते
  • शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार की नीतियां भेदभाव करने वाली हैं

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की कोविड टीकाकरण नीति को ‘प्रथम दृष्टया मनमानापूर्ण एवं अतार्किक’ करार दिया जिसमें पहले दो चरणों में संबंधित समूहों को टीके की मुफ्त खुराक दी गई और अब राज्यों एवं निजी अस्पतालों को 18-44 साल आयु वर्ग के लोगों से शुल्क वसूलने की अनुमति दी गई है। न्यायालय ने केंद्र को इसकी समीक्षा करने का आदेश दिया एवं कहा कि जब कार्यपालिका की नीतियां नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं तो अदालतें खामोश नहीं रह सकतीं।

शीर्ष अदालत ने केंद्र से कई सूचनाएं मांगीं 
कोविड टीकाकरण नीति का विस्तार से मूल्यांकरन करने का प्रयास करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र से कई सूचनाएं मांगीं और यह भी जानना चाहा कि टीकाकरण के लिए निर्धारित 35,000 करोड़ रुपये अबतक कैसे खर्च किए गए हैं। इसने नीति के संबंध में सभी संबंधित दस्तावेज एवं फाइल नोटिंग भी उपलब्ध कराने को कहा। 

सरकार से सवालों पर दो सप्ताह में जवाब मांगा
शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर बुधवार को अपलोड किए गए 31 मई के इस आदेश में उदारीकृत टीकाकरण नीति, केंद्र एवं राज्यों एवं निजी अस्पतालों के लिए टीके के अलग-अलग दाम, उनके आधार, ग्रामीण एवं शहरी भारत के बीच विशाल डिजिटल अंतर के बाद भी टीके के स्लॉट बुक कराने के लिए कोविन ऐप पर अनिवार्य पंजीकरण आदि को लेकर केंद्र के फैसले की आलोचना की गयी है और सरकार से सवालों पर दो सप्ताह में जवाब मांगा गया है।

हम देखेंगे कि नीतियां तार्किकता के अनुरूप हैं या नहीं-कोर्ट
न्यायालय ने कहा कि वह नागरिकों के जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना जारी रखेगा और यह देखेगा कि जो नीतियां हैं, वे तार्किकता के अनुरूप हैं या नहीं। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल. एन. राव और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट की एक विशेष पीठ ने कहा कि यह कहना सही नहीं होगा कि शक्तियों का पृथककरण संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है और नीति-निर्माण कार्यपालिका के एकमात्र अधिकार क्षेत्र में है।

'अदालतें मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकतीं'
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हमारे संविधान में यह परिकल्पित नहीं है कि जब कार्यपालिका की नीतियां नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं तो अदालतें मूकदर्शक बनी रहें। न्यायिक समीक्षा और कार्यपालिका द्वारा तैयार की गई नीतियों के लिए संवैधानिक औचित्य को परखना एक आवश्यक कार्य है, और यह काम न्यायालयों को सौंपा गया है।’

केंद्र ने दायर किया था हलफनामा
केंद्र ने अपने हलफनामे कहा था कि न्यायपालिका को नीति निर्माण के क्षेत्राधिकार में कदम नहीं रखना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि वर्तमान में वह विभिन्न हितधारकों को महामारी के प्रबंधन के संबंध में संवैधानिक शिकायतों को उठाने के लिए एक मंच प्रदान कर रहा है। पीठ ने कोविड प्रबंधन पर स्वत: संज्ञान मामले में अपना आदेश पारित किया।

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