नई दिल्ली। दिल्ली और एनसीआर में स्वच्छ हवा में सांस लेना अब किसी सपने की तरह है। एयर क्वालिटी इंडेक्स को मांपने वाली संस्था भी सिर्फ तीन अंकों में प्रदूषण की गुणवत्ता को मांप रही है। रविवार को दिल्ली और एनसीआर के कई इलाकों में एक्यूआई का स्तर 1600 के पार था और उसका सीधा असर दिखाई भी दे रहा था।
प्रदूषण पर नजर रखने की जिम्मेदारी अब प्रधानमंत्री कार्यालय ने अपने कंधों पर उठा ली है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों से व्यक्तिगत स्तर पर निगहबानी के लिए कहा गया है। इन सबके बीच हम कुछ ऐसे देशों का जिक्र करेंगे जिन्होंने प्रदूषण के खिलाफ जंग को कुछ इस तरह जीता।
जर्मनी
प्रदूषण की समस्या से निजात पाने के लिए जर्मनी ने कुछ अहम कदम उठाए। यातायात पर नियंत्रण के लिए जर्मनी ने कार्बन शुल्क लगाया है इसके तहत प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों के साथ साथ आम वाहनों पर इस शुल्क को लागू किया गया है और उसका सकारात्मक असर भी दिखाई दे रहा है।
लंदन
जर्मनी की तरह लंदन भी जब प्रदूषण की चपेट में आया तो इससे निपटने के लिए टॉक्सिक चार्ज की व्यवस्था को अमल में लाया गया। इसके तहत 10 पाउंड का टॉक्सिक चार्ज वसूल किया जाता है। 2003 से मध्य लंदन में प्रवेश करने वाले पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों पर ये कर लगाया गया है और उसका बेहतर परिणाम लंदन की फिजा में दिखाई भी देता है।
नीदरलैंड
यूरोप के जर्मनी और लंदन की तरह नीदरलैंड में भी इसी तरह की व्यवस्था को अपनाया गया है। यहां पर सरकार लोगों को साइकिल चलाने के लिए प्रेरित करती है। यही नहीं 2025 तक सभी वाहनों को बिजली और हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों में बदलने का लक्ष्य रखा गया है।
चीन
एशिया के सबसे बड़े मुल्कों में चीन शामिल है। यहां पर औद्योगिक विकास का असर आसमां पर दिखाई भी देता है। बीजिंग जैसे शहर का औसत एक्यूआई खतरनाक श्रेणी में ही रहा करता था। लेकिन चीन सरकार की सख्ती और कुछ कायदों और कानून की वजह से प्रदूषण की समस्या पर जीत हासिल की। चीन में सख्ती के साथ ऑड- ईवन को लागू किया जाता है। इसके साथ ही यहां पर अब एप आधारित मिनी बस सुविधा शुरू की गई है।
पेरिस
चीन की तरह जब फ्रांस में वायु गुणवत्ता खराब हुई तो सरकार की तरफ से ऑड ईवन का फैसला लिया गया। इसके साथ ही सार्वजनिक परिवहन को मुफ्त किया गया। पेरिस में अब हर महीने एक रविवार को लोगों को कार न चलाने की सलाह दी गई है और उसके बेहतर नतीजे अब सामने भी आ रहे हैं।
पर्यावरण सूचकांक में भारत इस समय 177वें नंबर पर हैं। यह रिपोर्ट हर दो साल पर जारी की जाती है। 2016 में भारत का स्थान 141 वें नंबर पर था। यदि ताजा रैंकिंग को देखें तो पर्यावरण के मुद्दे पर भारत की रैंकिंग में और गिरावट दर्ज की गई है।
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