नई दिल्ली: भारत का हल्का लड़ाकू विमान- 'तेजस'। यह स्वदेशी फाइटर जेट भारत की हवाई ताकत का भविष्य है। इसलिए जब- जब एलसीए तेजस उपलब्धि की कोई नई उड़ान भरता है, रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता की उम्मीदों को भी पंख लग जाते हैं। इस समय भी कुछ ऐसा ही हो रहा है, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस के समुद्र में नौसेना के युद्धपोत पर उतरने की हर तरफ चर्चा हो रही है। सफल लैडिंग और टेकऑफ की खबरों के बाद अब इसके आईएनएस विक्रमादित्य से आसमान की ओर छलांग लगाने का वीडियो भी सामने आ चुका है।
तेजस ने पहली बार 12 जनवरी नौसैन्य पोत से स्की जंप किया था और उससे पहले 11 जनवरी को इसकी अरेस्ट वायर लैडिंग की खबरें सामने आई थीं। जानें देश में बने लड़ाकू विमान की नई उपलब्धियां क्यों हैं इतनी खास।
आईएनएस विक्रमादित्य से तेजस का स्की जंप-
आम तौर पर एयरबेस पर लड़ाकू विमान को उड़ने के लिए लंबा रनवे मिलता लेकिन समुद्र में चलने वाले एयरक्राफ्ट कैरियर पर सिर्फ 200 मीटर की दूरी के अंदर ही यह काम करना होता है। ऐसे में लड़ाकू विमान पूरी क्षमता से भागता है और जहाज की बनवाट इसे किनारे पर ऊपर की उछाल देती है। तेजस ने भी इसी तकनीक के आधार पर 12 जनवरी को पहली उड़ान भरी थी- जिसे स्की जंप कहते है। हाल ही में इसका वीडियो सामने आया है।
इससे पहले तेजस की अरेस्ट वायर लैडिंग का वीडियो भी सामने आया था और इस दौरान 11 जनवरी को तेजस को पहली बार एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रमादित्य पर उतारा गया था।
क्या होती है अरेस्ट वायर लैडिंग-
नौसेना के लड़ाकू विमानों को एयरक्राफ्टर कैरियर (लड़ाकू विमानों से लैस एक खास जहाज) एयरबेस की तुलना में बहुत छोटे होते हैं और साथ ही इनमें उड़ान भरने और लैंड करने के लिए बहुत कम जगह होती है। जहां उड़ने के लिए 200 मीटर की जगह मिलती है वहीं उतरने के लिए उससे भी कम 100 मीटर की जगह मिलती है। एयरक्राफ्ट कैरियर पर लैडिंग के दौरान लड़ाकू विमानों को अपनी रफ्तार को तेजी से कम करने की जरूरत होती है। इसके लिए अरेस्ट वायर का इस्तेमाल होता है।
जहाज पर धातु से बनी एक रस्सीनुमा अरेस्ट वायर मौजूद होती है और विमान में एक हुक होता है। पायलट लैडिंग के दौरान विमान के हुक का संपर्क अरेस्ट वायर से कराता है और इसकी मदद से विमान बहुत छोटी सी जगह में रुक जाता है। बड़ी बात ये है कि यह काम विमान को तेज रफ्तार में रखते हुए करना होता है ताकि अगर हुक का संपर्क अरेस्ट वायर से नहीं हो सके तो उसमें फिर से उड़ने लायक तेजी हो वरना यह जहाज से पानी में गिर सकता है। इस कठिन काम को कमोडोर जयदीप मोलांकर ने अंजाम दिया था।
क्यों खास है ये उपलब्धि-
तेजस लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना में शामिल हो चुका है जबकि इसका नौसैन्य वर्जन अभी विकसित किया जा रहा है। डीआरडीओ, नौसेना और अन्य कई एजेंसियां इस दिशा में काम कर रही हैं। तेजस की हाल में सामने आई उपलब्धियों से एक सक्षम नौसैन्य लड़ाकू विमान बनाने में भारत को मदद मिलेगी।
भारत के एयरक्राफ्ट कैरियर टेस्ट को अलग अलग मानकों और परिस्थितियों में परखा जाएगा और इससे मिले अनुभव का इस्तेमाल बेहतर लड़ाकू विमान बनाने में मिलेगा। भारत दुनिया का सिर्फ छठा देश है जिसने अपने एयरक्राफ्ट कैरियर पर अपने बनाए लड़ाकू विमान सफलतापूर्वक उतारने और उड़ान भरने में सफलता पाई है।
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