'शहर में मजदूर जैसा दर-ब-दर कोई नहीं,
जिस ने सब के घर बनाए उसका घर कोई नहीं'
प्रवासी मजदूरों के दर्द को अगर अल्फाज में ढाला जाए तो ऊपर लिखीं ये दो लाइनें काफी हैं। प्रवासी मजदूरों ने लॉकडाउन के दौरान जो तकलीफें सहीं, वो शायद उनकी जिंदगी में आया सबसे बड़ा संकट है। उन्हें अचानक से बेघर होकर रातों-रात सैकड़ों मील के सफर पर पैदल ही निकलना पड़ा। उनसे मंजिल तक पहुंचाने के वादे किए गए। कुछ जगह अमल हो रहा है तो कहीं राजनीति भी साथ चल रही है। कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश में बसों को लेकर जमकर सियासत देखी गई। राज्य की योगी सरकार और कांग्रेस के बीच खूब वार-पलटवार हुआ। हालांकि, मजदूर के बसों में सवार होने का कोई रास्ता नहीं निकल पाया। बसों के बाद अब ट्रेनों को लेकर राजनीतिक खींचतान चल रही है। प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन चलाने के मुद्दे पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार आमने-सामने हैं।
महाराष्ट्र सरकार और रेलवे के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। रेलवे ने मंगलवार को आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार प्रवासियों के मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है। रेलवे का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार यात्रियों के बारे में जानकारी नहीं उपलब्ध करा रही है, जिसकी वजह से कई श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन नहीं हो पा रहा। दरअसल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन संचालन को लेकर केंद्र पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद रेलवे ने यह आरोप लगाया। इसके बाद राज्य सरकार को जवाब देने के लिए केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल खुद मैदान में उतरे। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की राज्य सरकार यात्री नही ला पा रही है। उनकी व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि गाड़ियां खाली खड़ी हैं, नहीं तो लाखों और लोगों को उनके घर पहुंचा सकते थे।
यह पूरा विवाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के एक बयान के बाद शुरू हुआ। मुख्यमंत्री ने रविवार रात जारी संदेश में कहा था कि वह प्रवासियों के लिए 100 ट्रेन चलाना चाहते हैं, लेकिन केंद्र सरकार हर रोज इसकी आधी ट्रेन ही दे पा रही है। इस बयान के कुछ देर बाद रेल मंत्री गोयल ने महाराष्ट्र सराकर से 125 ट्रेन के मजदूरों की लिस्ट मांगी तो सियासत तेज हो गई। गोयल ने शिवसेना की खिंचाई करने की कोशिश की जबकि शिवसेना सांसद संजय राउत ने रेल मंत्री पर तंज कसा। राउत ने कहा कि पीयूष गोयल जी से विनती है कि ट्रेन वहीं पहुंचे जहां उसे पहुंचना है। गोरखपुर की ट्रेन ओडिशा ना पहुंच जाए।
रेल मंत्री और महाराष्ट्र सरकार दोनों की तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। महाराष्ट्र सरकार आरोप लगा रही है कि उन्हें पर्याप्त ट्रेन नहीं मिल रही तो वहीं रेलवे का कहना है कि ट्रेनें उपलब्ध हैं लेकिन यात्री नहीं हैं। दूसरी तरफ. सियासत की इस बिसात को नजरअंदाज कर मजदूर अपनी मंजिल की ओर लगातार बढ़ रहे है। उन्हें मालूम है कि यह विवाद इतनी जल्दी खत्म होने वाला नहीं। ऐसे में मजदूरों की राज्य से अब भी पैदल अपने घर लौटने की जद्दोजहद जारी है। प्रवासी मजदूर अपने घरों का सफर किसी भी हाल में तय करने की कोशिश में लगे हैं। मजदूर पैदल और अन्य साधनों के जरिए कई सौ किलोमीटर दूर तक सफर तय करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।
रेल मंत्री का कहना है कि सरकार ने नागरिकों की सहायता के लिए सभी संभव कदम उठाए हैं। देश भर में लाखों कामगारों को भारतीय रेल ने सुरक्षित और सुविधाजनक तरीके से उनके घर पहुंचाया है। उंगली उठाने वालों को समझना चाहिए कि ऐसा नही है कि वो कुछ भी कहेंगे और लोग उसे मान लेंगे। लोग झूठ ना सुनते हैं और ना मानते हैं। उन्होंने बताया कि 26 मई तक भारतीय रेल ने प्रवासी कामगारों के लिए 3,274 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया, जिनके द्वारा 44 लाख से अधिक यात्रियों को उनके गृहराज्य पहुंचाया गया। उन्होंने बताया कि यात्रा के दौरान मजदूरों के लिए 74 लाख से अधिक निशुल्क भोजन और 1 करोड़ से अधिक पानी की बोतल भी रेलवे ने उपलब्ध कराई गईं।
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