नई दिल्ली: लंदन स्थित वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत ने नीरव मोदी के प्रत्यर्पण के लिए भारत सरकार की दलील को स्वीकार कर लिया और कहा कि उसके खिलाफ सबूत ‘उसे आरोपों का सामना करने के लिए भारत प्रत्यर्पित करने का आदेश देने के वास्ते प्रथम दृष्टया पर्याप्त हैं।’ नीरव मोदी ने अपने बचाव के लिए तमाम प्रयास किए लेकिन अंतत: उसे हार मिली। यहां तक कि अपने पक्ष में गवाही देने के लिए नीरव मोदी ने पूर्व सीजेआई मार्केंडेय काटजू तक को गवाह के तौर पर पेश किया लेकिन कोर्ट के आगे एक ना चली।
काटजू की गवाही पर सवाल
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, गुरुवार को नीरव मोदी के प्रत्यर्पण का आदेश देते हुए, वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत में जिला न्यायाधीश सैम गोजी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू की गवाही विश्वसनीय नहीं थी और उनकी पहचान अपने व्यक्तिगत एजेंडे के साथ एक मुखर आलोचक की की थी। काटजू पिछले साल वेस्टमिंस्टर कोर्ट में एक विशेषज्ञ के रूप में पेश हुए थे जिन्होंने नीरव मोदी का बचाव करते हुए कहा था कि भगोड़े हीरा व्यापारी को भारत में निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिलेगी।
कोर्ट ने कही बड़ी बात
खबर के मुताबिक जज सैम गोज़ी ने कहा: 'मैं जस्टिस काटजू के विशेषज्ञ राय की बात करता हूं। 2011 में सेवानिवृत्त होने तक भारत में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश होने के बावजूद, उनके द्वारा दिए गए सबूत मेरे हिसाब से कम विश्वसनीय थे। अदालत में उनके सबूत पूर्व वरिष्ठ न्यायिक सहयोगियों के प्रति नाराजगी के साथ दिखाई दिए। इसमें उनकी पहचान मुखर आलोचक और उनके अपने निजी एजेंडे के तौर पर हुई।'
क्या कहा था काटजू ने
अपनी गवाही में, काटजू ने अदालत से कहा था कि भारत की एक खराब आर्थिक स्थिति है जिसके लिए नीरव मोदी एक बलि का बकरा बनाया गया और उसे भारत में वित्तीय संकट पैदा करने का दोषी ठहराया गया था। उन्होंने कहा कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट भारत सरकार के अधीन हो गया था। हालांकि इस पर अभी तक काटजू का कोई बयान नहीं आया है।
भारत सरकार पर संदेह का कोई कारण नहीं- कोर्ट
न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें इस मामले में विपरीत राजनीतिक प्रभाव का कोई साक्ष्य नहीं मिला जैसा कि हीरा कारोबारी के कानूनी दल ने दावा किया था। न्यायाधीश ने यह भी उल्लेख किया कि मामले में जनता और मीडिया की बड़ी दिलचस्पी को देखते हुए उन्हें नहीं लगता है कि भारत सरकार के आश्वासन पर संदेह करने का कोई कारण है। न्यायाधीश ने फैसले में लिखा है, ‘भारत और इस देश के बीच मजबूत संबंधों पर भी मैंने गौर किया है। ऐसे कोई साक्ष्य नहीं हैं कि भारत सरकार ने राजनयिक आश्वासन का उल्लंघन किया।’
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