कांग्रेस के लिए यह 'धैर्य' नहीं 'एक्शन' का समय है

देश
आलोक राव
Updated Mar 12, 2020 | 16:11 IST

Jyotiraditya Scindia : राजनीति में कमोबेश दोनों ने एक समय कदम रखा। दोनों नेताओं में अच्छी ट्यूनिंग रही है। राहुल ने खुद कहा है कि ज्योतिरादित्य के लिए उनके घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे।

Why Rahul Gandhi failed to understand his childhood friend Jyotiraditya Scindia?
कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया। 
मुख्य बातें
  • कांग्रेस से 17 साल तक सांसद रहे हैं ज्योतिरादित्य, यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे
  • सिंधिया ने थामा है भाजपा का दामन, मध्य प्रदेश से राज्यसभा जाएंगे ज्योतिरादित्य
  • मध्य प्रदेश की राजनीति में बड़ा दखल रखते हैं, आने वाले समय में एमपी हो सकता है उलटफेर

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपने ट्विटर हैंडल पर बुधवार को एक तस्वीर पोस्ट की। इस तस्वीर के मध्य में राहुल गांधी और उनके दाईं और बाएं तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ हैं। यह तस्वीर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद की है जिसे राहुल ने एक बार फिर रिट्वीट किया। ध्यान देने वाली बात है कि इस तस्वीर के साथ राहुल ने टालस्टॉय के प्रसिद्ध उद्धरण-'धैर्य एवं समय सबसे शक्तिशाली योद्धा होते हैं' को कोट किया है। कांग्रेस नेता ने इस तस्वीर के जरिए बहुत कुछ कहने की कोशिश की है। उनका जोर दो शब्दों 'धैर्य एवं समय' पर है। सवाल यह है कि कांग्रेस में पैदा हुआ मौजूदा संकट क्या 'धैर्य एवं समय' से दूर हो जाएगा? राहुल 'धैर्य एवं समय' का मंत्र किसे दे रहे हैं? 

धैर्य टूटा तो सिंधिया ने उठाया कदम
राहुल कांग्रेस के युवा नेताओं से यदि 'धैर्य' रखने की बात कह रहे हैं तो यह कांग्रेस के लिए आगे और नुकसानदायक साबित हो सकता है क्योंकि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ एवं युवा नेता 'धैर्य' की नहीं 'एक्शन' की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस के युवा नेताओं का 'धैर्य' अब जवाब देने लगा है। सिंधिया का 'धैर्य' जब जवाब दे गया तो उन्होंने अपना रास्ता तलाश लिया। ऐसा नहीं है कि ज्योतिरादित्य के 'धैर्य' का बांध अचानक से टूट गया। सब्र का पैमाना तभी छलकता है जब पैमाने पर ध्यान न रखा जाए और वह धीरे-धीरे भरता जाए। सिंधिया के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा। सिंधिया को राहुल का काफी करीबी बताया जाता है। दोनों बचपन में पढ़ाई साथ की है और विदेश में भी दोनों साथ-साथ पढ़े।

राहुल के करीबी दोस्त रहे हैं सिंधिया
राजनीति में कमोबेश दोनों ने एक समय कदम रखा। दोनों नेताओं में अच्छी ट्यूनिंग रही है। राहुल ने खुद कहा है कि ज्योतिरादित्य के लिए उनके घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। इससे राहुल के साथ सिंधिया की करीबी को समझा जा सकता है। राहुल अपने बचपन के दोस्त और अपने सबसे करीबी साथी का मन पढ़ने में जब असमर्थ रहे तो यह समझा जा सकता है कि पार्टी के अन्य युवा नेताओं के साथ उनके रिश्ते में कितनी गर्मजोशी और नजदीकी होगी। सिंधिया ने कांग्रेस को छोड़ने का फैसला कितने भारी मन से किया होगा। 

कुछ और नेता पकड़ सकते हैं सिंधिया की राह
सिंधिया का नाता तोड़ना कांग्रेस के लिए संकट के नए दौर की शुरुआत हो सकती है। कांग्रेस में ऐसे कई युवा नेता हैं जो पार्टी के मौजूदा राज-काज को पसंद नहीं करते। गाहे-बगाहे वे अपनी इस झुंझलाहट और परेशानी को उजागर भी करते रहे हैं लेकिन सिंधिया का यह कदम उन्हें बड़ा कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकती है। कांग्रेस के संदीप दीक्षित और संजय निरूपम जैसे नेता पार्टी की कार्यशैली पर असंतोष जाहिर कर चुके हैं। ये नेता बदलाव की मांग कर रहे हैं लेकिन पार्टी उनकी इस मांग को अनसुना करती आई है। 

राहुल पार्टी अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का भी मानना है कि पार्टी को अपने अध्यक्ष पद का मसला जल्द से जल्द सुलझा लेना चाहिए। सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष है। जाहिर है कि लंबे समय तक वह इस पद पर बनी नहीं रहेंगी। वह अध्यक्ष पद अपने बेटे को सौंपना चाहती हैं लेकिन राहुल बार-बार इससे इंकार कर दे रहे हैं। अध्यक्ष पद पर जल्द किसी नेता की तैनाती की बात अभिषेक मनु सिंघवी, सलमान खुर्शीद और शशि थरूर जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर चुके हैं। फिर भी कांग्रेस पार्टी इस दिशा में गंभीर प्रयास करती नहीं दिख रही है। पार्टी के गिरते पड़ते आगे बढ़ने का रवैया कांग्रेस के नेताओं को रास नहीं आ रहा है। वे चाहते हैं कि पार्टी आक्रामक एवं नए तेवर के साथ आगे बढ़े। 

क्षेत्रीय छत्रपों को बिखरने न दे कांग्रेस
कांग्रेस के लिए यह बेहतर होगा कि वह अपने अंदरूनी संकटों को दूर करते हुए क्षेत्रीय छत्रपों की शिकायतों एवं चिंताओं को समझे और उनका निदान निकाले। तेलंगाना में जगन मोहन रेड्डी और असम में हेमंता बिस्वा सरमा जैसे नेताओं की अनदेखी कांग्रेस को भारी पड़ी। इन दोनों नेताओं ने अपने बलबूते गैर-कांग्रेसी सरकार को सत्ता में स्थापित कर दिया। मध्य प्रदेश के क्षेत्रीय छत्रपों में शुमार ज्योतिरादित्य ग्वालियर के 'महाराज' हैं। इनका अपना कद और जनाधार है। जाहिर है कि इसका फायदा अब भाजपा उठाएगी और कांग्रेस को एमपी में जब-जब नुकसान होगा वह 'महाराज' को याद करेगी।

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