क्या कन्हैया कुमार खुद के लिए किसी और राजनीतिक दल की तलाश में हैं, क्या उन्हें लगता है कि सीपीआई में उनका राजनीतिक भविष्य सुरक्षित नहीं है। क्या उन्हें ऐसा लगता है कि जिस मकसद के साथ वो बीजेपी या मोदी सरकार का विरोध करते हैं उसके लिए सीपीआई उनके लिए प्रभावी प्लेटफॉर्म नहीं है। दरअसल ये सब बातें इसलिए उठीं जब खबर आई कि उन्होंने राहुल गांधी से मंगलवार देर रात लंबी मुलाकात की। वैसे उन्हें जानने वाले कहते हैं कि वो राहुल गांधी से कई दफा मिल चुके हैं। लेकिन दो सियासी शख्सियतों की मुलाकात गैर सियासी नहीं होती है।
किसी और ठिकाने की तलाश
बताया जा रहा है कि कन्हैया कुमार को ऐसा लगता है कि सीपीआई में उनका भविष्य बेहतर नहीं हो पाएगा लिहाजा किसी और ठिकाने की तरफ देखना चाहिए। बिहार में लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से उन्होंने सीपीआई के कुछ कैडर्स पर आरोप लगाया था कि उन्हें मदद नहीं मिली उसके बाद सीपीआई के राज्यस्तरीय नेता खुश नहीं थे। अब इस तरह की सूरत में कन्हैया कुमार के राजनीतिक करियर पर ग्रहण ना लग जाए इसके लिए किसी बेहतर विकल्प की जरूरत थी और वो उम्मीद कांग्रेस के रूप में पूरी हो सकती है।
कन्हैया कुमार की भूमिका पर उधेड़बून
कन्हैया से जुड़े लोगों का कहना है कि इस मुलाकात को सियासी चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। राजनीति में नेता एक दूसरे से मिलते रहते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसमें किसी तरह का राजनीतिक निहितार्थ हो। लेकिन जानकार कहते हैं कि यह तो करीब करीब तय है कि कन्हैया कुमार कांग्रेस का दामन थाम लेंगे हालांकि सवाल यह है कि कांग्रेस उन्हें किस भूमिका में लाना पसंद करेगी। क्या कन्हैया को राज्य स्तर पर जिम्मेदारी दी जाएगी या वो राष्ट्रीय फलक का हिस्सा होंगे यह देखने वाली बात होगी।
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