नई दिल्ली. भारत के उत्तर पश्चिमी राज्य राजस्थान के थार रेगिस्तान के बीचो बीच स्थित बीकानेर को राजस्थान का दिल कहा जाता है। बीकानेर राजस्थान के चुनिंदा सबसे खूबसूरत और समृद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है।
इतिहास के पन्ने खंगोलने पर पता चलता है कि इस राज्य की स्थापना महाभारत काल में हुई थी, उस समय इस शहर को जांगल देश के नाम से संबोधित किया जाता था।
राजस्थान का यह शहर ऐतिहासिक विरासत, संस्कृति और रोमांस का एक शानदार संगम है। आज भी इस शहर की गाथाएं इतिहास में दोहराई जाती हैं। इस शहर की स्थापना राठौड़ राजकुमार राव बीका जी ने 1488 में की थी।
यह शहर आज भी अपनी राजपुताना सभ्यता, संस्कृति और ऐतिहासिक किलों और सुंदर महलों के सदियों पुराने इतिहास को सजोए खड़ा है। चमकीले रेतों से बने किले बीकानेर की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं।
बीकानेरी नमकीन और भुजिया
बीकानेरी नमकीन और भुजिया का चस्का पूरी दुनिया को लगाने वाले हल्दी राम की शुरुआत राजस्थान के शहर बीकानेर से ही हुई है। बीकानेर शहर में साल 1937 में छोटी सी दुकान से शुरुआत करने वाले गंगाबेनजी अग्रवाल को पूरी दुनिया हल्दीराम के नाम से जानती है।
हल्दी राम नाम से आज सैकड़ो आउटलेट्स है। कहा जाता है कि बीकानेर भुजिया की शुरुआत उन्होंने ही की थी, शुरुआत में भुजिया सेव के नाम से भुजिया नमकीन बनाया जाता था। लेकिन अब हल्दीराम के नाम से कई सारे उत्पाद बाजार में आने लगे हैं।
नमकीन के साथ मिठाई और कुछ खास तरह की चीजों के लिए हल्दीराम का डंका पूरे देश दुनिया में बजता है। ऐसे में आप बीकानेर दौरे के दौरान हल्दीराम की सबसे प्राचीन दुकान पर इसके स्नैक्स और मिठाइयों का मजा ले सकते हैं।
ऊंट महोत्सव, बीकानेर
यह शहर बीकेनेर की भुजिया के अलावा पूरे देश दुनिया में ऊंट महोत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है। रेत की नगरी राजस्थान में हर साल ऊंट महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
राजस्थानी लिबाज और रंग में लिपटे ऊंटों को देखने के लिए हर साल सैकड़ों की संख्या में देश विदेश से पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। यह उत्सव राजस्थान की आन बान शान को प्रकट करता है। इस उत्सव में ऊंटों को राजस्थानी वेशभूषा में तैयार किया जाता है।
ऊंट महोत्सव को लेकर कहा जाता है कि राजपूत राजा राजकुमार राव बीकाजी ने यहां पर सबसे पहले ऊंट की प्रजाति का पालन पोषण किया। यही वह जगह है जहां पर सेना के लिए ऊंटों को तैयार किया जाता था।
इस महोत्सव के दौरान यहां पर आने वाले पर्यटकों के लिए कई तरह की प्रतियोगियाओं का आयोजन किया जाता है। तथा आप यहां पर ऊंट के दूध की मिठाई और ऊंट के दूध की चाय को भी चख सकते हैं। ऐसे में राजस्थान के ऊंट महोत्सव में अवश्य शामिल हों।
राजा बीका के शासन से लगभग 100 वर्ष बाद बीकानेर का शासन राजा राय सिंह के अधीन आ गया था, जिन्होंने बाद में मुगलों के अधिपत्य को स्वीकार कर मुगलों के दरबार में मुख्य सेनापति का पद संभाला था।
जूनागढ़ किले के निर्माण में लगभग 5 वर्ष से अधिक का समय लगा था। यह किला भारत के सबसे ऊंचे किलों में से एक है, जिसकी औसत ऊंचाई लगभग 230 मीटर है।
चबूतरे से घिरे इस किले में अनूप महल, गंगा निवास, रंग महल, चंद्र महल, फूल महल, करण महल और शीश महल जैसे कई खूबसूरत महल हैं।
करण महल भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ नमूना पेश करता है।
इसमें एक सुंदर बाग, पत्थर और लकड़ी के बने स्तंभ, नक्काशीदार बालकनी और खिड़कियां सम्मिलित है। जिनका निर्माण करण सिंह ने मुगल सम्राट औरंगजेब से अपनी जीत को चिन्हित करने के लिए किया था।
आपको बता दें यहां एक आर्ट गैलरी बनाई गई है और हरभरे घांस के मैदान इस किले की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। यदि आप इतिहास में रुचि रखते हैं और भारतीय वास्तुकला को नजदीक से देखना चाहते हैं तो बीकानेर के जूनागढ़ किले का दीदार अवश्य करें।
मां करणी का मंदिर
राजस्थान के बीकानेर शहर में स्थित मां करणी का मंदिर पूरे देश दुनिया में प्रसिद्ध है। यह स्थान यहां रहने वाले चूहों की घनी आबादी के लिए जाना जाता है। बीकानेर का यह मंदिर देवी दुर्गा के अवतारों में से एक मां करंणी को समर्पित है।
इस मंदिर में लगभग 20 हजार से अधिक चूहे परिसर में निवास करते हैं और निसंदेह पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। करणी माता के इस मंदिर को संगमरमर पत्थरों से तरासा गया है। मंदिर में महाराणा गंगा सिंह द्वारा बनवाए गए चांदी के गेट लगे हुए हैं।
गजनेर पैलेस
गजनेर पैलेस बीकानेर के दर्शनीय स्थलों में शुमार एक लोकप्रिय स्थलों में से एक है। जो कि एक झील के किनारे पर स्थित है। महाराणा गंगा सिंह द्वारा निर्मित गजनेर पैलेस का उपयोग प्राचीनकाल में शिकार और छुट्टियां बिताने के लिए किया जाता था। यहां पर एक घना जंगल है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां पर आपको जंगली जानवर देखने को मिल जाएंगे।
लालगढ़ पैलेस
लालगढ़ महल की खूबसूरती को देख आप इस पर मोहित हो उठेंगे। इस किले का निर्माण महाराजा गंगा सिंह की आज्ञानुसार 20वीं शताब्दी के दौरान करवाया गया था। लेकिन वर्तमान में यह महल एक होटल के रूप में तबदील हो गया है।
राजपूताना अंदाज में बना यह महल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। आपको बता दें इस पैलेस में एक संग्रहालय भी निर्मित किया गया है, जो कि गंगा निवास के अंदर बनाया गया है। इस महल में एक पुस्तकालय भी स्थापित है
कैमल फार्म
आपको बता दें ऊंट अनुसंधान बीकानेर में स्थित एक शानदार स्थल है। यहां पर एक बार हर कोई आना चाहेगा। यहा पर तीन नसलों के कम से कम 230 ऊंट हैं। यहां पर ऊंट की सवारी पर्यटकों को सबसे ज्यादा आकर्षित करती है, जिसका लुत्फ यहां पर आने वाला हर पर्यटक उठाना चाहता है
कोडमडेसर मंदिर
कोडमदेशर मंदिर का निर्माण बीकानेर शहर के निर्माता राव बीकाजी ने करवाया था, जिसे कोडमदेशर मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर भैरव जी महाराज को समर्पित है। जो कि भगवान शिव का ही रूप हैं।
भगवान भैरव की यहां पर एक मूर्ती स्थापित है, जो कि संगमरमर के फर्श के चारों ओर से घिरी हुई है। यहां पर लगने वाला भाद्रपद मेला काफी लोकप्रिय है। ऐसे में यदि आप बीकानेर जाने की योजना बना रहे हैं तो भैरव महाराज के इस मंदिर को अपनी सूची में अवश्य शामिल करें।
आपको बता दें दिल्ली से बीकानेर की दूरी लगभग 434 किलोमीटर है। यहां पर पहुंचने के लिए रेल मार्ग, बस मार्ग और हवाई मार्ग उपलब्ध है। ऐसे में आप इस तरह यहां पर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग
दिल्ली से बीकानेर पहुंचने के लिए रेल मार्ग द्वारा 7 घंटे 33 मिनट का समय लगता है। आपको बता दें बीकानेर रेलवे स्टेशन दिल्ली, हावड़ा, कालका, भटिंडा जैसे प्रमुख स्थानों से जुड़ा हुआ है। यहां पर आप रेल मार्ग द्वारा दिल्ली से डायरेक्ट बीकानेर पहुंच सकते हैं।
बस मार्ग
दिल्ली से बीकानेर बस मार्ग से पहुंचने में करीब 9 घंटे का सफर तय करना पड़ता है। यहां पर आनंद विहार और कश्मीरी गेट से बीकानेर के लिए बस सेवाएं उपलब्ध हैं। तथा बीकानेर बस स्टैंड लालगढ़ पैलेस होटल के सामने है। देर रात पहुंचने पर आप यहां होटल में रुक सकते हैं।
हवाई मार्ग
बीकानेर से सबसे निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर है। यहां से बीकानेर की दूरी लगभग 250 किलोमीटर है। यहां पर पहुंचने के लिए आप दिल्ली इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से फ्लाइट ले सकते हैं। इसके बाद बीकानेर पहुंचने के लिए जोधपुर से टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं।