लखनऊ। यूपी का दुर्दांत अपराधी विकास दुबे मारा जा चुका है। उसके खात्मे के बाद करीब 20 साल के बिकरू और करीब 22 गांवों को आजादी मिली। इस संबंध में एसआईटी जांच भी बैठाई गई है ताकि यह पता चल सके कि उसके काले साम्राज्य को कौन कौन लोग बढ़ावा दे रहे थे। लेकिन अब इस मुद्दे पर राजनीति तेज हो गई। समाजवादा पार्टी लगातार आरोप लगा रही है कि कुछ लोगों को बचाने के लिए विकास दुबे की बलि चढ़ा दी गई। इसके साथ ही आरएलडी के नेता जयंत चौधरी ने कहा कि जब पुलिस इस तरह से न्याय करेगी तो अदालतों और जजों की जरूरत ही क्या है। इन लोगों के साथ यूपी की पूर्व सीएम मायावती ने ब्राह्मण कार्ड खेला है।
ब्राह्मण समाज के जरिए साधा निशाना
बीएसपी का मानना है कि किसी गलत व्यक्ति के अपराध की सजा के तौर पर उसके पूरे समाज को प्रताड़ित व कटघरे में नहीं खड़ा करना चाहिए। इसीलिए कानपुर पुलिस हत्याकाण्ड के दुर्दान्त विकास दुबे व उसके गुर्गों के जुर्म को लेकर उसके समाज में भय व आतंक की जो चर्चा गर्म है उसे दूर करना चाहिए।
ताकि ब्राह्मण समाज भयभीत न हो
साथ ही, यूपी सरकार अब खासकर विकास दुबे-काण्ड की आड़ में राजनीति नहीं बल्कि इस सम्बंध में जनविश्वास की बहाली हेतु मजबूत तथ्यों के आधार पर ही कार्रवाई करे तो बेहतर है। सरकार ऐसा कोई काम नहीं करे जिससे अब ब्राह्मण समाज भी यहां अपने आपको भयभीत, आतंकित व असुरक्षित महसूस करे।
इसी प्रकार, यूपी में आपराधिक तत्वों के विरूद्ध अभियान की आड़ में छांटछांट कर दलित, पिछड़े व मुस्लिम समाज के लोगों को निशाना बनाना, यह भी काफी कुछ राजनीति से प्रेरित लगता है जबकि सरकार को इन सब मामलों में पूरे तौर पर निष्पक्ष व ईमानदार होना चाहिए, तभी प्रदेश अपराध-मुक्त होगा।
जानकार की राय
अब सवाल यह है कि मायावती के इस तरह के बयान के पीछे की मंशा क्या है। जानकार कहते हैं कि यह बात सच है कि विकास दुबे दुर्दांत अपराधी था। लेकिन उसके संपर्क सभी राजनीतिक दलों से थे। ऐसे में कोई भी दल खुलकर कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। जहां तक विकास और उसके साथियों के मारे जाने की बात है तो उसमें ज्यादातर आरोपी ब्राह्मण समाज से हैं। चूंकि विकास का सफाया योगी राज में हुआ है और सरकार का मुखिया अलग समाज से आता है ऐसे में विरोधी दलों को लगता है कि वो आसानी से भावना के ज्वार में ब्राह्मण समाज को अपने पाले में ला सकते हैं।
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