नई दिल्ली: प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 75 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश के गरीब तबके को फोर्टिफाइड चावल देने का ऐलान किया है। इसके तहत सरकार 2024 से अपनी सभी योजनाओं में फोर्टिफाइड चावल का वितरण करने लगेगी। इस कदम के जरिए प्रधान मंत्री महिलाओं और बच्चों में एनेमिया की समस्या को खत्म करना चाहते हैं। इसी तरह का एक अभियान आज से 60 साल पहले भारत से ग्वाटर रोग को खत्म करने के लिए शुरू किया गया था। जिसके तहत नमक में आयोडीन की मात्रा मिलाकर आयोडाज्ड नमक दिया जाने लगा परिणाम यह है कि आज देश से ग्वाटर रोग खत्म हो चुका है और आयोडीन की कमी से होने बामारियों पर भी काबू पाया जा चुका है। इस अभियान में अहम भूमिका निभाने वाले डॉ चंद्रकांत एस पांडव से टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल ने एक्सक्लूसिव बातचीत की है। पांडव को आयोडीन मैन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने पद्म श्री से भी सम्मानित किया है। वह एम्स दिल्ली के विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनका कहना है कि फोर्टिफाडड चावल का कदम बेहद अहम है। और इसके जरिए अगले 5-10 साल में एनीमिया पर काबू पाया जा सकता है। आइए जानते हैं कि आयोडीन नमक के अभियान से हम चावल के फोर्टिफिकेशन से क्या सीख सकते हैं ?
आयोडीन अभियान की शुरूआत कैसे हुई
आजादी के समय ग्वाटर रोग या घेघा रोग हमारे देश की एक खास समस्या थी। मोटे तौर पर यह माना जाता था कि यह हिमालय क्षेत्र की समस्या है। साल 1951 में डॉ वी.रामालिंगा स्वामी ने यह खोज किया, कि भारत में आयोडीन की कमी से ग्वाटर रोग हो रहा है। इसके अलावा उन्होंने कांगड़ा वैली स्टडी के जरिए एक उल्लेखनीय खोज की । जिसमें उन्होंने बताया कि अगर नमक में उचित मात्रा के साथ आयोडीन मिलाया जाय तो ग्वाटर रोग को खत्म किया जा सकता है। ऐसा कर 5 साल के अंदर ग्वाटर रोग में 50 फीसदी तक कमी आ सकती है। इसके बाद साल 1962 में देश में राष्ट्रीय ग्वाटर रोग नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया। जिसके तहत नमक में आयोडीन को मिलाने की सिफारिश की गई। इसके बाद एक अहम पड़ाव 1980 में मेरे द्वारा पेश की गई एक स्टडी से आया, जिसमें यह बताया गया कि ग्वाटर रोग केवल हिमालय क्षेत्र की समस्या नही है। बल्कि यह दिल्ली और दूसरे क्षेत्र में भी मौजूद है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश-बिहार में मैंने अपनी रिसर्च में यह पाया कि आयोडीन की कमी से बच्चों के मस्तिष्क के विकास में कमी आती है। उनके आईक्यू लेवल में 14 लेवल तक की कमी आती है। इसके आधार पर साल 1984 में यूनिवर्सल सॉल्ट आयोडाइजेशन का कार्यक्रम इंदिरा गांधी सरकार द्वारा शुरू किया गया। और आज उसका परिणाम यह है कि देश में 93 फीसदी लोग आयोडीन युक्त नमक खाते हैं। और ग्वाटर रोग पर नियंत्रण पाया जा सका है।
इसकी सफलता का क्या कारण है
आयोडीन का कार्यक्रम सफल होने की सबसे बड़ी वजह यह थी कि हमारे पास वैज्ञानिक रूप से पुख्ता आधार मौजूद था। हमें यह पता था कि नमक में आयोडीन का कितनी मात्रा मिलाई जाय, जिससे ग्वाटर रोग को खत्म किया जा सकता है। इसके बाद निजी क्षेत्र से बहुत सहयोग मिला। क्योंकि भारत सरकार नमक पैदा नहीं करती, ऐसे में निजी क्षेत्र की भागीदारी बेहद अहम है। अकेले गुजरात के गांधी धाम में देश का 80 फीसदी नमक पैदा किया जाता है। और निजी क्षेत्र का सहयोग मिलने में बच्चू भाई की बेहद अहम भूमिका रही। इसके बाद बेहतर कोऑरिडेशन के लिए 2006 में सभी मंत्रालयों को एक साथ जोड़ा गया, जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया। साथ ही सामाजिक चेतना भी पैदा भी की गई। जिसका परिणाम यह हुआ कि 93 फीसदी आबादी आयोडीन युक्त नमक खाती है। और मेरी कोशिश है कि अगले 3 साल में देश की 100 फीसदी आयोडीन युक्त नमक खाएगी।
चावल में ही फोर्टिफिकेशन क्यों
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के चरण-1 की रिपोर्ट के अनुसार देश के 22 राज्य और संघ राज्य क्षेत्र हैं जहां पर सभी उम्र समूह में एनेमिया से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ी है। इसके अनुसार 16 राज्य और संघ राज्य क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें 15-49 की उम्र की लड़कियों और महिलाओं में एनीमिया के मामले बढ़े हैं। इसी तरह 17 राज्य ऐसे हैं जहां पर 6-59 महीने के बच्चों में एनीमिया के मामले बढ़े हैं। इसी तरह 12 राज्य ऐसे हैं जहां 15-59 साल के पुरूषों में एनीमिया के मामले में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में यह समस्या गंभीर होती जा रही है। चावल के फोर्टिफिकेशन की बड़ी वजह यह है कि देश की 65 फीसदी आबादी ऐसी है जो चावल खाती है। उनकी ऊर्जा का 50 फीसदी हिस्सा उसी से आता है। इसके अलावा सरकार के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम से 80 करोड़ लोगों को भोजना पहुंचाया जाता है। जिसमें चावल अहम अनाज है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार फोर्टिफाइड चावल आयरन की कमी की समस्या को 35 फीसदी तक कम सकता है।
देखिए चावल के फोर्टिफिकेशन में गुणवत्ता नियंत्रण सबसे अहम होगा। क्योंकि इसका उत्पादन नमक की तरह सीमित नहीं है। देश में सैंकड़ों चावल की प्रजातियां पाई जाती है। साथ ही चावल का फोर्टिफेकशन नमक की तुलना में कही ज्यादा जटिल है। जिसे देखते हुए इसमें ट्रेनिंग का अहम रोल रहेगा। जैसा की मैने पहले बताया कि नमक के मामले में हमारे पास ठोस पुख्ता सबूत थे, वैसे ही चावल के फोर्टिफिकेशन में आयरन की मात्रा कितनी होगी, इसकी बेहद अहम भूमिका रहेगी। साथ ही इसके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता चलाना बेहद जरूरी होगा। क्योंकि जब यह जन अभियान बनेगा तो वह एक दवाब समूह का काम करेगा। साथ ही मेरा यह मानना है कि जैसे आयोडीन के लिए देश को आयोडीन मैन मिला, वैसे ही देश को राइस मैन या वुमेन ऑफ इंडिया मिलना चाहिए। अगर इन बातों को ध्यान रखा जाता है तो अगले 5-10 साल में एनीमिया की समस्या खत्म हो सकती है।